स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायी स्वामी सहजानंद के चरणों में सूरत निवासी आत्मराम नामक दरजी ने एक सुँदर अँगरखा भेंट किया तो उपस्थित भक्तगण उसे देखत ही रह गए।
पास में ही भावनगर के राजा विजयसिंह जी बैठे थे । उन्हें वह अँगरखा बहुत पसंद आया। उन्होंने दरजी से कहा-”क्या तुम इससे भी अच्छा एक अँगरखा मेरे लिए बना सकते हो।” दरजी ने कहा-”राजन् इससे अच्छा बन सका होता तो पहले ही बना दिया होता। मैं जो भी काम करता हूँ, सर्वश्रेष्ठ जानकर पूर करता हूँ।
कर्म-कौशल हर स्वाभिमानी के लिए गौरव का विषय होता है। हर अच्छे काम ऐसे ही व्यक्तियों द्वारा संपन्न हुए हैं। जिन्होंने अपनी क्रिया-कुशलता का उत्कृष्टता की सीमा तक पहुँचाने का श्रम किया है।