महापूर्णाहुति वर्ष में महाक्राँति के सात महत्वपूर्ण आँदोलन

May 2000

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महापूर्णाहुति वर्ष विभिन्न प्रतिभाओं-नैष्ठिकों के लिए सोद्देश्य कार्यक्रम लेकर आया है। इसी अंक में प्रज्ञापुँजों-प्रकाशस्तंभों द्वारा किए जाने वाले पंचसूत्री कार्यक्रम की चर्चा है। वह विशिष्ट स्तर का पुरुषार्थ उन सात आँदोलनों से उभरकर आएगा, जो प्रारंभिक कसौटी बनेंगे। इस वर्ष की महाक्राँति के इन सात महत्वपूर्ण घटकों के व्यावहारिक स्वरूप को थोड़ा संक्षेप में यहाँ दिया जा रहा है। आगामी अंक में विस्तार से पाठक-परिजन पढ़ सकेंगे।

(1) साधना

महाक्राँति के लिए जो प्रखर व्यक्तित्व तैयार किए जाने हैं और जो वातावरण बनाया जाना है, उसके लिए साधना का सहारा अनिवार्य रूप से लेना पड़ेगा। परिजनों को याद होना चाहिए कि अपना यह विराट अभियान तीन विशिष्ट पुरुषार्थ के संयोग से आगे बढ़ रहा है। वे हैं-

(क) ईश्वर की योजना और शक्ति।

(ख) ऋषियों (पीरों-पैगम्बरों) का संरक्षण एवं मार्गदर्शन।

(ग) मनुष्यों का भावभरा सहयोग और पुरुषार्थ।

इन तीनों को एक साथ नियोजित करना केवल साधना के सहारे ही संभव है। इसलिए इसे प्रारंभ से ही अनिवार्य चरण के रूप में मान्यता दी जाती रही है। साधना अभियान को व्यापक आँदोलन का रूप देने के लिए इस क्षेत्र में विश्वास रखने वाली तमाम प्रतिभाओं को इस दिशा में संकल्पपूर्वक लगाया जाना है। साधक किसी भी संप्रदाय विशेष की उपासनापद्धति को मानने वाला हो,उसे युगसाधना के लिए सहमत करना जरा भी कठिन नहीं है। लेकिन इसके लिए उन्हें जप-पूजा, कर्मकाँड, उपासना और जीवन-साधना का अंतर भली प्रकार समझना होगा। उनसे कहा जाएगा कि वे भले ही उपासना, कर्मकाँड और मंत्र आदि से कोई भी अपनाएं, लेकिन उपासना की शक्ति से आत्मपरिष्कार और लोककल्याण का भाव बनाए रखें । इसके लिए साधनावर्ष के लिए निर्धारित साधनाक्रम की पुस्तिका में दिए गए मार्गदर्शन का लाभ उठाया और दिया जा सकता है। साधकों को उनकी मनः स्थिति और परिस्थिति के अनुसार उपासनाक्रम एवं शेष दिन के लिए सुझाए गए साधना के विभिन्न चरणों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। सृजनशिल्पियों-युग साधकों को अपनी क्षमता और कौशल में इतना विकास करना है कि किसी भी उपासनापद्धति से जुड़े नैष्ठिकों को जीवन-साधना हेतु प्रेरित करके उन्हें नवसृजन के लिए विकसित करने का चक्र चला सके।

(2) शिक्षा-

मनुष्य के व्यक्तित्व का स्तर बहुत अंशों में उसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा के आधार पर विकसित होता है। साक्षरता और विभिन्न विषयों की जानकारी को शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग तो कहा जा सकता है, लेकिन उसे वहीं तक सीमित नहीं किया जा सकता। उसके साथ जीवन की विभिन्न-धाराओं को समझने और उनका सदुपयोग करने की कला-विद्या को भी जोड़ा जाना आवश्यक है।

इस आँदोलन को गति देने के लिए विभिन्न, शिक्षण संस्थानों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया जा सकता है। वहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों को जीवनविद्या के प्रति जागरुक रहने के प्रेरणा देकर उन्हें मिल-जुल कर सार्थक प्रयास करने के लिए सहमत किया जा सकता है। इस हेतु प्रज्ञा मंडल और महिला-मंडलों की तरह छात्रों और शिक्षकों के संस्कृति-मंडल गठित किए जा सकते हैं। जगह-जगह छोटे सत्रों की व्यवस्था बनाई जा सकती है। उक्त दोनों कार्यों के लिए मार्गदर्शिका के रूप में दो छोटी-छोटी पुस्तिकाएं शांतिकुंज शिक्षा संकाय द्वारा तैयार कर दी गई हैं। शाँतिकुँज से अपनी आवश्यकता के अनुरूप इन्हें मंगाया जा सकता है।

अपने क्षेत्र में प्रौढ़-शिक्षा, निरक्षरता-उन्मूलन जैसे कार्यक्रम अपने संगठन एवं सहयोगियों की क्षमता के अनुरूप बनाए और चलाएं जा सकते हैं। लोकशिक्षण का कार्य गोष्ठी, सत्संग, संगीत, अभिनय आदि के माध्यम से भी किया जा सकता है। इन सब विधाओं में दखल रखने वाले प्रतिभावानों को प्रेरित-प्रशिक्षित करके लोकशिक्षण की दिशा में बहुत कुछ किया जा सकता है।

(3) स्वास्थ्य

जीवन को सुखी और प्रगतिशील बनाने के लिए शरीर और मन का स्वस्थ होना आवश्यक है। अपने देश में लंबे समय से स्वास्थ्य के आवश्यक नियमों के प्रति उपेक्षा बरती जाने लगी है। स्वच्छता, आहार-विहार का संतुलन, उचित व्यायाम एवं श्रम रोगों के कारण और निवारण, वनौषधियों से शरीर की जीवनीशक्ति का संवर्द्धन आदि ऐसे विषय हैं, जो थोड़े-से प्रयास से नर-नारियों को समझाए और सिखाए जा सकते हैं। इस हेतु जन-जन में यह सब सीखने-अपनाने का उत्साह जगाना और इन विषयों के जानकारों को जनहित के लिए थोड़ा समय नियमित रूप से लगाते रहने के लिए प्रेरित-सहमत करना अभीष्ट है।

(4) स्वावलंबन

शांतिकुंज के रचनात्मक संकाय द्वारा ग्राम विकास, कुटीर उद्योग, गौ-संरक्षण आदि विषयों पर समुचित साहित्य प्रकाशित किया जा चुका है । विभिन्न समाजसेवी संगठनों और सरकारी योजनाओं के अंतर्गत भी इस दिशा में तरह-तरह के प्रयास चलाए जा रहे हैं।उनका लाभ-जन तक पहुंचे, इसके लिए सुसंगठित-सुनियोजित प्रयास किए और कराए जाने अभीष्ट हैं।

(5) व्यसन मुक्ति-कुरीति उन्मूलन

अपने देश में व्यसनों और कुरीतियों में इतनी अधिक शक्ति नष्ट हो रही है कि यदि उसे बचाकर सुनियोजित किया जा सके तो जनहित के तमाम सृजनात्मक कार्य पूरे किये जा सकते हैं। साधना एवं स्वाध्याय से उभरे विवेक के आधार पर हर किसी को यह समझाया जा सकता है कि किस प्रकार हम अपने ही साधनों से अपना हित कर रहे हैं और इन्हें सही दिशा में लगाकर हम कितना लाभ और पुण्य कमा सकते हैं। विभिन्न नशों, फैशनपरस्ती, मनोरंजन के नाम पर समय और आदतें खराब करने के चलन, प्रचलित परंपराओं के नाम पर चल रही तमाम कुरीतियों को दूर करने के लिए प्राणवान अभियान विचारशीलों और कर्मठों के द्वारा हर क्षेत्र में चलाए जा सकते हैं।

(6) पर्यावरण

मनुष्य ने अपने थोड़े से सुख और स्वार्थों के लिए स्थूल और सूक्ष्म पर्यावरण को बुरी तरह बिगाड़ा है। इसे ठीक करने के लिए अपने सुख के स्थान पर अपने हित था संकीर्ण स्वार्थों के स्थान पर सबके हित को ध्यान में रखकर अपने स्वभाव और पुरुषार्थ को निखरना होगा। इस दिशा में हर कोई कुछ न कुछ कर सकता है। जैसे-

वृक्षारोपण, हरीतिमा-संवर्द्धन के लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं संस्था स्तर पर लक्ष्य निर्धारित करके पुरुषार्थ करना और कराना। इसके लिए तुलसी स्थापना, घरेलू वाटिका, स्मृति उपवन जैसे तमाम आँदोलन चलाए जा सकते हैं।

(7) महिला जागरण

यह अकेला आँदोलन विश्व की पचास फीसदी जनसंख्या से संबंधित हैं। इस संबंध में अपना संगठन बहुत कुछ कर रहा है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है। इसके लिए आगे भी विभिन्न व्यावहारिक चरण बनाए और क्रियान्वित किए जाते रहेंगे।

कहना न होगा कि राष्ट्र व विश्वनिमार्ण की प्रक्रिया इन सात महत्वपूर्ण आँदोलनों में नियोजित प्रतिभाओं के माध्यम से न केवल गति पकड़ेगी, आगामी दो वर्षों में महाक्राँति के समग्र स्वरूप को ‘वसुधैव कुटुँबकम्’ की परिकल्पना को, बृहत्तर भारत को समस्त विश्व के साँस्कृतिक अगुआ के रूप में स्थापित करेगी। राजनीति आजादी के बाद की यह सबसे बड़ी महाक्राँति है, जिसका संचालन परोक्ष स्तर पर दैवी तंत्र कर रहा है। निमित्त प्रमाण मात्र बनने के लिए आप हम सबको आगे आना है।


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