मरने के बाद की एक निराली दुनिया

May 2000

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सन् 1949 में 46 वर्षीय एडमंड विलबोर्न को निमोनिया का तीव्र अटैक हुआ। जिसमें वह असहनीय पीड़ा से अचेत हो गया और जब साँस लेने में अत्यधिक तकलीफ होने लगी, तब उसे इंग्लैंड के मेनचेस्टर नगर के एक अस्पताल में भरती कराया गया। अस्पताल में उसकी हालत और चिंताजनक हो गई। चिकित्सकों ने उसे बचाने के लिए भरसक प्रयत्न किये, लेकिन उसकी दशा बिगड़ती ही गई। आखिर में निराश होकर डॉक्टरों ने उसे डेंजर लिस्ट का रोगी घोषित कर दिया। इस बीच ‘विलबोर्न’ ने स्वयं भी अपनी संकल्पशक्ति का प्रयोग करते हुए जीवित रहने का भरपूर प्रयत्न किया, परंतु उसकी एक न चली । वह चल बसा। डॉक्टरों ने भी उसकी मौत का प्रमाणपत्र जारी कर दिया और लिखा कि उसकी मौत निमोनिया के कारण हुई।

उसे दफनाया जाता, इसके पहले वह अचानक जी उठा और अपनी पत्नी जोन एरथ के साथ लंदन में हँसी खुशी के दिन बिताने लगा। उन दिनों वह चर्च आर्मी में कैप्टन था। इस घटना का जिक्र करते हुए उसने कहा, “इसमें रत्तीभर भी संदेह नहीं है कि मैं मर गया था और मैंने अपनी अपनी आत्मा को शरीर छोड़ते हुए देखा था। उस समय मैं अपनी आत्मा को शरीर छोड़ते हुए देखा था उस समय मैं अपने अंतःचक्षुओं से देख रहा था कि नर्स मेरे मुरदा शरीर को मुरदाखाने में भिजवाने की व्यवस्था कर रही है और मेरी आत्मा लाल रंग के डोरे से मेरे नश्वर शरीर से जुड़ी है। फिर मैंने देखा कि पास ही अस्पताल में एक कर्मचारी ट्राली ढकेलता हुआ मेरे शरीर के पास आया। फिर कुछ आदमियों ने मिलकर मुझे उठाया और ट्राली पर लिटा दिया। ट्राली के हरकत में आते ही वह लाल डोर टूट गई, जिसने मेरी आत्मा को मेरे शरीर से बाँध रखा था।

जिस समय वह इस घटना को बयान कर रहा था, उस समय इस घटना को हुए 36 वर्ष बीत चुके थे। घटना के समय उसकी उम्र मात्र 23 वर्ष की थी। घटना को बयान करते हुए उसने अपने मस्तिष्क पर जोर देते हुए बताया- “मैं शून्य में अकल्पनीय गति के साथ उड़ता हुआ दूसरे लोक में जा पहुँचा। वहाँ मुझे आत्मिक आनंद और प्रसन्नता का अहसास हुआ, क्योंकि वहाँ चारों ओर प्रकाश और रंग की अनोखी छटा थी । शाँति, कोमलता और पवित्रता की आनंददायक अनुभूति थी। जिसने मुझे अपने सुख भरे आलिंगन में लपेट लिया। हर ओर सौंदर्य फैला था। मधुर संगीत से वातावरण आनंदमय हो रहा था। वहाँ प्रेम और आत्मीयता की भरमार थी।”

“फिर भी इस साँसारिक जीवन से मेरा संबंध नहीं टूटा था। एक आवाज थी, जिसने इस संसार से मेरा संबंध जोड़ रखा था। वह आवाज एक निरंतरता के साथ सुनाई दे रही थी। वह किसी स्त्री की आवाज थी, जो बड़े ही करुणापूर्ण स्वर में दोहरा रही थी-हे दयालु ईश्वर इस युवावस्था में एडमंड को क्यों तूने पास बुला लिया। अभी उसे यही रहने दे। अभी उसे संसार में तेरे लिए बहुत से काम करने हैं। उसे यहीं रहने दे। पता है यह किसकी आवाज थी? यह मरी लैंड लेडी की आवाज थी। वह मेरे पलंग की पट्टी से लगी मेरी वापसी के लिए प्रार्थना कर रही थी।

जब एडमंड इस भौतिक संसार में दोबारा वापस आया, तो उसने अपने आपको पत्थर की एक चौड़ी सिल पर लेटे हुए पाया और यह चौड़ी सिल अस्पताल के मुरदाघर की थी। तीन घंटे मौत से साक्षात्कार करने के बाद आखिरकार उसने आँखें खोल दी । अपनी इस अनुभूति का उपसंहार करते हुए एडमंड ने दृढ़ स्वर में कहा-मेरा ख्याल है कि लैंड लेडी की भक्तिपूर्ण प्रार्थना के कारण मुझे दोबारा जीवन मिल सका।

क्या यह सचमुच ही संभव है कि लोग मरकर जीवित हो जाएं ? इस संदर्भ में चिकित्सकों की एक प्रसिद्ध पत्रिका ‘पल्स’ के चीफ एडवाइजर डॉक्टर टॉम स्मिथ ने कुछ विस्मयकारी घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि चिकित्साविज्ञान के रूप में इसकी कोई विशेष व्याख्या नहीं प्रस्तुत की जा सकती । लेकिन इसमें संदेह नहीं कि ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं और मैं उनका अवलोकन कर चुका हूँ।

ऐसी ही एक घटना क्रिस्टोफर के संदर्भ में है । उसका अटल विश्वास है कि वह एक दरिया में डूबकर मर गया था। यह घटना सन् 1974 ई. की है। क्रिस्टोफर उस समय अपनी अठारहवीं सालगिरह के समारोह के सिलसिले में साउथ वेल्स के दरिया ‘टाफ’ के किनारे अपने साथियों के साथ उछलकूद कर रहा था। कि अचानक उसे ठोकर लगी और वह लुढ़कता हुआ दरिया में जा गिरा। पानी गहरा था और सख्त सरदी के कारण अति शीत हो रहा था। जब उसके साथी उसे दरिया से बाहर निकालने में असफल रहे, तब पुलिस को फोन किया गया। कोई 20 मिनट बाद पुलिस के प्रयास से क्रिस्टोफर मिल गया। अस्पताल में उसे बचाने का भरसक प्रयास किया गया, जो व्यर्थ गया। वह मर चुका था। डॉक्टरों ने भली प्रकार जाँच के बाद उसे मुरदाघर पहुँचाने का निश्चय किया। तभी एक डॉक्टर एकाएक हैरान हो उठा। आखिर क्रिस्टोफर की नाड़ी अचानक चलने कैसे लगी ? हालाँकि उसकी गति अभी भी बहुत धीमी थी।

कमरे में मौजूद सभी व्यक्ति दम साधे खड़े थे । क्रिस्टोफर धीरे धीरे जाग्रत होता गया और अंत में उसने आँखें खोल दीं। डॉक्टर विस्मित रह गए, क्योंकि उनके अनुसार तो वह मर गया था। क्रिस्टोफर ने बताया कि मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मैं बरफ की तरह ठंडे पानी में गिरा, तो पहले कुछ सेकिण्ड मैंने बेहद शारीरिक कष्ट अनुभव किया। लेकिन उसके बाद मैं अपने को गरम महसूस करने लगा और यह तपिश इतनी उल्लासपूर्ण और आनंददाई थी कि मरे अंग अंग से खुशी के गीत फूटने लगे। यों लगता था जैसे मैं सपनों के सुनहरे संसार में प्रवेश कर गया हूँ। क्रिस्टोफर ने एक बहुत विचित्र बात बताई ।उसने कहा-”मरने के अनुभव से व्यावहारिक रूप से गुजरने के बाद मुझे मौत का कोई भय नहीं रहा, क्योंकि मैं जान चुका हूँ कि मौत कैसी होती है।”

शिकागो विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानवेत्ता डा. राल्फग्रीन की भी गणना उन लोगों में होती है, जो इस बात को एक वैज्ञानिक सच्चाई मानते हैं कि जीवन सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं है। शरीर से तो मात्र उसकी इस संसार में अभिव्यक्ति होती है। नश्वर शरीर में अनश्वर आत्मा का वास ही हमें इस दुनिया की अनुभूति कराता रहता है। उनका कहना है कि यही कारण है कि लोग मरने के बाद भी जीवित हो सकते हैं। ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख उन्होंने अपने अध्ययन-अनुसंधान में किया है।

सन् 1961 ई॰ की बात है कि लंदन क्लीनिक में विश्वविख्यात अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर की एक खतरनाक बीमारी के दौरान साँस रुक गई । वह बताती है, मैंने उठकर बिस्तर की चेष्टा की, लेकिन मैं इतनी कमजोर हो चुकी थी कि मेरे लिए हरकत करना संभव नहीं था। फिर अचानक मेरी नजरों के सामने एक शून्य प्रकट हुआ और मैं अपने आपको बेहद शाँत और सहन की रेशमी गोद में महसूस करने लगी। यूँ लगता था जैसे मैं गरम पानी के एक समुद्र की हलकी हलकी लहरों पर तैर रही हूँ। इसके साथ ही मैं अपने शरीर को बिस्तर पर लेटा हुआ भी महसूस कर रही थी। दरअसल इस समय मैं अपने शरीर से पूर्ण रूप से अलग हो गई थी और मैं अपने शरीर पर यूँ मंडरा रही थी जैसे कोई पंछी अपने बच्चे पर मँडराता है। बाद में मुझे पता चला कि मेरी साँस कुछ देर के लिए रुक गई थी और एक इमरजेंसी आप्रेशन के द्वारा मेरी श्वास नली खोली गई, जिससे मेरे प्राण बच गए थे, लेकिन सच पूछा जाए तो मैं कुछ देर के लिए मैं मर गई थी।

एक और व्यक्ति ह्नयूग्रीन का कहना है कि कुछ वर्ष पूर्व वह एक कार दुर्घटना में मर गया था अपने इस अनुभव को बताते हुए उसने कहा कि मुझे अच्छी तरह से याद है कि असहनीय पीड़ा के कारण मैं कार की पिछली सीट पर पड़ा हुआ तड़प रहा था कि अचानक पीड़ा का अहसास जाता रहा और फिर बाहर निकलकर मैं अपने शरीर को देखने लगा। शरीर से बाहर निकलने के बाद के क्षणों में मुझे किसी भी तरह की पीड़ा नहीं महसूस हुई। यहाँ तक कि मुझे कोई भय भी नहीं रहा। लेकिन मैं महसूस कर रहा था कि मुझे असहनीय यातना से मुक्ति मिल गई है। उसके बाद एकाएक चारों ओर अंधेरा छा गया और जब मुझे होश आया, तो मैं चिकित्साधीन था। मुझे पूरा विश्वास है कि मैं थोड़ी देर के लिए मर गया था और मैंने स्पष्ट अनुभव किया कि शारीरिक अवस्था से परे कोई आत्मिक अवस्था भी है।

अमेरिका की एक अध्यापिका श्रीमती आइरिस जेलमैन ने भी कुछ इसी तरह का अनुभव किया। उन दिनों उनकी तबियत खराब थी। अचानक उनको दिल का दौरा पड़ा और वे मर गईं। मृतावस्था में उन्होंने सुना, डॉक्टर कह रहा था-मैंने इसे खो दिया। जेलमैन ने आगे बताया कि मुझे लगा कि कोहरे जैसी धुँध में मेरा सारा अस्तित्व घिर गया है और मैं छत की तरफ उठ रही हूँ।पहले तो मैं उस अपरिचित धुँध के कारण कुछ देख नहीं पाई, फिर मैंने पाया कि मैं बिस्तर पर पड़े अपने शरीर को देख रही हूँ। मैं हैरान थी कि मैं तो होश में हूँ, फिर यह सब क्या है ? फिर मैंने पाया कि मैं ऐ लंबी अंधेरी गुफा जैसी सुरंग के भीतर चली जा रही हूँ। मैं उन क्षणों में दूर दिख रहे एक उज्ज्वल प्रकाश की ओर बढ़ रही थी और कुछ सम्मोहक आवाजें मेरे कानों में पड़ रही थीं। उस उज्ज्वल प्रकाश से एकाकार होने के लिए मैं तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी और तभी अचानक मुझे अपने पति का ख्याल और उनकी याद सताने लगी। मैं समझ रही थी कि या तो मैं उस प्रकाश में लीन हो जाऊंगी या फिर वापस लौट जाऊंगी। कुछ अजीब-सी आकृतियाँ मेरे चारों ओर चक्कर काट रहीं थीं । मैं रुक गई और मैंने वापस लौटने का निर्णय कर लिया था। इतने में मेरे कानों में एक गंभीर सी आवाज टकराई, “तुमने ठीक निर्णय लिया है। तुम लौट जाओगी।” और मैंने आँखें खोलीं, तो देखा मेरे सामने डॉक्टर खड़े थे।

उक्त घटनाएँ यही सत्य उद्घाटित करतीं है कि पारलौकिक जगत के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। उसका पारलौकिक जगत की सत्ता और सत्य को स्वीकार कर लिया है । उनका कहना है कि इस दुनिया से भी कहीं सुँदर, रमणीक और आकर्षक वह दुनिया है। मगर वह है कहाँ, यह नहीं बताया जा सकता। हाँ एक बात अवश्य है कि मनुष्य की जैसी विचारधारा, व्यक्तिगत धारणा और जैसा उसका सामाजिक-धार्मिक संस्कार होता है, उसी के अनुसार मरणोपरान्त उसे अनुभव होता है और होता है पारलौकिक जगत का साक्षात्कार भी। इन अनुभवों में विविधता भले ही हो, पर एक सत्य शाश्वत, सार्वकालिक एवं सबके लिए है कि आत्मा अमर है, अविनाशी है । सभी अवस्थाओं में उसका अस्तित्व बना रहता है, इसमें संदेह नहीं।


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