परिष्कृत चेतन तत्व की अनुभूतियाँ

December 1993

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अनुभूतियाँ क्या हैं ? मानसिक उपज ? भ्राँति ? या सच्चाई ? इन पर यदि गहराई से विचार किया जाय, तो ज्ञात होगा कि न तो यह मन की कल्पना है न भ्रम। ऐसा इसलिए प्रतीत होता है, क्योंकि तब घटित हमारे लिए अघटित स्तर के बने रहते हैं, किंतु जब घटना की स्फुरणा से सही-सही संगति बैठ जाती है, तब ज्ञात होता है कि उसमें कितनी सच्चाई थी और तभी यह भी विदित होता है कि कोई अलौकिक सत्ता हमारी चेतना से छेड़-छाड़ करती रहती है। इस प्रकार का प्रसंग जब कभी भी घटित होता है, तो मनुष्य में उसका परिणाम अघटित की अनुभूति के रूप में सामने आता एवं अनागम की महत्वपूर्ण जानकारी देता है।

घटना 28 जून 1954 की है। न्यूयार्क अमेरिका के डॉक्टर रेमर की पत्नी एल्सा विश्राम कर रही थी । उनकी पुत्री जेस्सी एक माह पूर्व ही कैलीफोर्निया जा चुकी थी। माँ-बेटी के बीच की भौगोलिक दूरी 3 हजार किलो मीटर थी। अकस्मात एल्सा चीख कर पलंग से उठ बैठी। रेमर ने जब इसका कारण जानना चाहा तो कहा कि अभी-अभी उसने जेस्सी की भयपूर्ण चीख सुनी, ऐसा लगा कि वह किसी विपदा में है। डॉक्टर ने अपनी पत्नी का शारीरिक परीक्षण किया। हृदय, नाड़ी, रक्तचाप सभी असामान्य थे। यह पूछे जाने पर कि उसने कोई भयंकर स्वप्न तो नहीं देखा, एल्सा ने कहा कि वह बिल्कुल जाग्रत अवस्था में थी और केवल जेस्सी की तीक्ष्ण चीख सुनी।

उस समय और कोई बात नहीं हुई। दो दिन बीत गये। इन दो दिनों तक घर का वातावरण बड़ा उदास बना रहा। तीसरे दिन वह उदासी पूर्ण विषाद में तब बदल गई, जब सचमुच जेस्सी के दुर्घटनाग्रस्त होने का तार मिला। आश्चर्य की बात यह थी कि एल्सा ने जिस समय यह चीख सुनी, ठीक उसी समय कैलीफोर्निया में कार दुर्घटना में उसका प्राणाँत हुआ।

एक अन्य घटना फ्राँस के रियर एडमिरल गैलरी की आत्मकथा से उद्धत है। “आठ घंटियाँ” (एट बेल्स) नामक उक्त आत्मकथा में गैलरी लिखते हैं कि उन्हें सोमवार को अपनी ड्यूटी पर जाना था। रविवार की रात जब वे सोये, तो एक स्वप्न देखा कि वे अपने जहाज पर बैठे हैं। जहाज चलने की तैयारी में है। यात्रीगण जल्दी-जल्दी ऊपर आ रहे हैं। इनमें दो युवक भी हैं। वे उन दोनों से नाम पूछते हैं। एक ने अपना नाम डिकग्रेन्स तथा दूसरे ने पॉप कनवे बताया। तभी जहाज में अचानक विस्फोट होता है। दोनों युवक घायल हो जाते हैं। बाद में पॉप की मृत्यु हो जाती है। शेष सभी यात्री सुरक्षित बच जाते हैं। वे लिखते हैं कि स्वप्न इतना स्पष्ट ओर गंभीर था कि सोकर उठने के उपराँत भी मानस पटल पर वह ज्यों-का-क्यों बना रहा।

आश्चर्य वहाँ से प्रारंभ हुआ, जब उनने आफिस जाकर जहाज के यात्रियों की सूची देखी। उन्हें यह देखकर भारी हैरानी हुई कि जो नाम उनने स्वप्न में देखे थे, वे सचमुच उस लिस्ट में सम्मिलित थे। उनके मन में एक अज्ञात भय समा गया, पर उन्हें ड्यूटी में तो हर हालत में जाना ही था, अतः बुझे मन से जहाज में सवार हुए। जलयान ने ठीक समय पर प्रस्थान किया, पर उसने अभी ठीक तरह बंदरगाह भी नहीं छोड़ा था कि एक इंजन में विस्फोट हुआ। निकट बैठे हुए वही दो युवक घायल हुए, जिनमें से पॉप कनवे की थोड़ी देर पश्चात् मौत हो गई।

एक तीसरी घटना डरहम की एक स्त्री से संबंधित है। क्रिस्टीना की लड़की लोला अपने छोटे भाई के साथ समुद्र स्नान के लिए एक दिन गई हुई थी। अभी दो घंटे भी नहीं बीते होंगे कि क्रिस्टीना ने चिल्लाना आरंभ कर दिया। पति ने जब कारण पूछा, तो बोली लोला डूब रही है, उसे बचालो। पति ने आरम्भ में इसे पत्नी की अति कल्पनाशीलता समझी, पर पत्नी के बार-बार के आग्रह पर पति को तथ्य का पता लगाने के लिए जाना ही पड़ा। जब वह समुद्री किनारे पर पहुँचा, तब सचमुच लोला डूब चुकी थी और उसका छोटा पुत्र डिकी बैठा विलाप कर रहा था।

ऊपर लगभग एक ही तरह की तीन घटनाओं का उल्लेख है। यह घटनाएँ न तो भाव-संप्रेषण (टेलीपैथी) हैं और न ही दूरदर्शन (क्लेयरवायेन्स), वरन् इन्हें एक सर्वथा पृथक श्रेणी में रखा जा सकता है, जिसे प्रायः ‘अनुभूति’ कहते हैं। टेलीपैथी यह इसलिए नहीं हो सकतीं, क्योंकि इसमें प्रयासपूर्वक ग्रहण और संप्रेषण की कार्यविधि अपनायी जाती है। दोनों पक्षों के बीच गहन भावनात्मक तादात्म्य होता है और उनके मध्य इसे संपन्न करने के लिए एक निश्चित समय निर्धारित किया जाता है। ऐसे ही भौगोलिक दूरी को किसी अतीन्द्रिय क्षमता के माध्यम से पार किसी प्रसंग का आभास प्राप्त कर लेना-संपूर्ण घटनाचक्र को दृश्यमान बना लेना, दूरदर्शन है। उपरोक्त घटनाओं में से एक वर्तमान से संबंधित है और शेष दो भविष्य से। जो हो रहा है, उसे देखा जा सकता है। जो हो चुका है, उसे भी जाना जा सकता है, किंतु जो अभी भविष्य के गर्भ में है, यदि उसकी जानकारी येन-केन प्रकारेण होती है, तो इसे न तो दूरसंचार कहा जायेगा, न दूर संप्रेषण। यह आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हैं, जो यदा-कदा जीवन में प्रकट होती रहती हैं-माध्यम चाहे स्वप्न हो, जागृति या तुरीयावस्था हो।

वेदांत दर्शन के अनुसार सृष्टि में ब्राह्मी चेतना या परमात्मा ही एक ऐसा तत्व है, जो सर्वव्यापी है। इसे प्रकाराँतर से यों भी कह सकते हैं कि ब्रह्माँड उसी में अवस्थित है। वह काल की सीमा से परे है, अर्थात् भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों ही उसमें समाहित हैं।

“एक्सप्लोरिंग साइकिक फेनामेना बियाँड मैटर” नामक कृति में डी॰ स्काँट रोगो इस संबंध में अपना विचार प्रकट करते हुए लिखते हैं कि विचारणाएँ तथा भावनाएँ प्राणशक्ति का उत्सर्जन (डिस्चार्ज ऑफ वाईटल फोर्स) हैं। यही उत्सर्जन अंतःकरण में यदा-कदा स्फुरणा बनकर प्रकट होते हैं। इस स्फुरणा की क्रिया-प्रणाली जब दो व्यक्तियों के मध्य संपन्न होती है, तब वह टेलीपैथी होती है, किंतु जब वह समय की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए सूचना सुदूर भविष्य की देती है, तो इसका आधारभूत कारण ब्राह्मीचेतना होती है। इस चेतना की कल्पना आइन्स्टीन ने भी सापेक्षवाद के सिद्धाँत में की है और लिखा है कि यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जायेगा। दूसरे शब्दों में वहाँ बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा। भारतीय शास्त्र ब्राह्मी चेतना को ही ऐसा परम तत्व बताते हैं और मनुष्य व उसमें गहन संबंध होने का पग-पग पर उल्लेख करते हैं। उपरोक्त घटनाएँ इसी सत्या की पुष्टि करती हैं, साथ ही यह भी बताती हैं कि जब उस सत्ता का क्षणिक संपर्क इतना आश्चर्यजनक हो सकता है, तो संपूर्ण संपर्क कितनी सामर्थ्य प्रदान करने वाला होगा-यह विचारणीय है।

ऋग्वेद में एक ऋचा आती है-अग्निना अग्नि समिध्यते, अर्थात् अग्नि से अग्नि प्रदीप्त होती है। ब्रह्मानुभूति से ब्रह्म प्राप्ति इसी सिद्धाँत पर आधारित है कि हम अधिकाधिक अपने आप-को आत्मचेतना को उस ब्राह्मी चेतना के समीप लायें और फिर अंततः उसी में अपना विलय-विसर्जन कर दें। आत्म चेतना परमात्म चेतना बन जाय और परमात्म चेतना आत्मचेतना की अनुभूति कराये। यह एकात्म-अद्वैत की स्थिति है। सर्वसाधारण में यह स्तर विकसित नहीं हो पाने के कारण ही “काल” रहस्यमय बना रहता है। जहाँ जिस अनुपात में दो सत्ताओं का सम्मिलन होता है, वहाँ उसी अंश में अविज्ञात ज्ञात बनता चलता है। उपरोक्त घटनाएँ उसी शृंखला की कड़ियाँ हैं, और आत्मजाग्रति की क्षणिक अनुभूतियाँ भी। विस्तृत अनुभूति, ज्ञान प्राप्ति और ईश्वर साक्षात्कार के लिए तो आत्म परिष्कार की गहन साधना अपनानी पड़ती है, जिसके उपराँत ही अनुभूतियों के निमित्त कारण को भलीभाँति जाना और समझा जा सकता है।


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