मृत्यु भय कैसा (kahani)

December 1993

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श्रीराम कृष्ण परमहंस शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। वे समझा रहे थे कि जीवन में आये अवसरों को व्यक्ति साहस तथा ज्ञान की कमी के कारण खो देते हैं। अज्ञान के कारण उस अवसर का महत्व नहीं समझ पाते। शिष्यों की समझ में यह बात ठीक ढंग से न आ सकी। तब श्रीरामकृष्ण परमहंस बोले अच्छा-नरेन्द्र कल्पना कर तू एक मक्खी है। सामने एक कटोरे में अमृत भरा है। तुझे पता है यह अमृत है, बता उसमें एकदम कूदेगा या किनारे बैठकर स्पर्श करने का प्रयास करेगा।

उत्तर मिला “किनारे बैठकर चखने का प्रयास करूंगा। बीच में कूद पड़ने से तो जीवन अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा।” साथियों ने नरेन्द्र की विचार-शीलता को सराहा। किंतु परमहंस जी मुसकराये और बोले।”अरे मूर्ख ! जिसके स्पर्श से तू अमरता की बात करता है। उसके बीच में कूदकर भला मृत्यु भय कैसा” बात स्पष्ट हो गई।


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