नाथ ! पाकर सहारा तुम्हारा (kavita)

December 1993

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धन्य है जिंदगी यह हमारी, नाथ ! पाकर सहारा तुम्हारा, हे प्रभो ! हम समर्पित खड़े हैं, शेष जीवन है सार तुम्हारा।

हर तरफ था भयंकर समुँदर, जीर्ण थी नाथ ! जीवन की नैया, क्या पता, यह कहाँ डूब जाती, जो न मिलता किनारा तुम्हारा।

कामना है, तुम्हें जिंदगी में, सुन सकें जागते और सोते, हर निमिष बाँसुरी के सुरों-सा, पा सकें हम इशारा तुम्हारा।

तेज तूफान में, आँधियों में, पाँव ये जब कभी डगमगाएँ, बस तभी दौड़कर हम पकड़ लें, हाथ भगवन् ! दुबारा तुम्हारा।

पुत्र सा प्यार पाते रहें हम, पाँव निर्भय बढ़ाते रहें हम, जन्म-जन्माँतरों तक रहे ये, नाथ ! रिश्ता हमारा तुम्हारा।

हर तरफ जब अँधेरा घिरा हो, और कोई नहीं आसरा हो, रास्ता तब दिखाए गगन से, ध्रुव सरीखा सितारा तुम्हारा।

बुद्धि वह दो कि जो भी मिला है, लोकहित में उसे हम लगाएँ, ताकि भगवन् ! हमारे लिये ही, फिर खुला हो दुआरा तुम्हारा।

शचीन्द्र भटनागर


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