ऐतिहासिक विश्वधर्म संसद, जिसने मानवधर्म का पथ प्रशस्त किया

December 1993

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भारतीय संस्कृति ही सर्वप्रथम वह संस्कृति है, जिसने विश्व-मात्र को जीवन जीने की कला का शिक्षण ही नहीं दिया, भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद-सभ्यता एवं संस्कृति के समन्वय का तत्वदर्शन भी सिखाया। हमारे ऋषियों ने ही “तेन त्यक्त्वा भुञजीया” का उपदेश देकर आज भोगवाद से ग्रसित मानवजाति के लिए संदेश दिया कि भोग तो किया जाना चाहिए साधनों का सुख सुविधाओं का, किंतु निर्लिप्त भाव से तथा त्याग को जीवन में प्रतिष्ठित करके।” वर्ल्ड पार्लियामेण्ट ऑफ रिलीजन (विश्व धर्म संसद) जो प्रथम शताब्दी वर्षगाँठ के रूप में इस वर्ष शिकागो में 28 अगस्त से 4 सितंबर 1993 की तारीखों में मनायी गयी, संस्कृति का यही स्वर चारों ओर से मुखरित हो रहा था। सर्वविदित है कि आज से प्रायः सौ वर्ष पूर्व 11 सितंबर 1893 से लेकर सत्रह दिन तक शिकागो (इलीनाँय) संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार सभी धर्मों के प्रतिनिधि-गणों ने मिलकर धर्म की परिभाषा करते हुए उसकी विश्व मानवता के लिए उपादेयता पर तथा विभिन्न संप्रदायों के मूल में छिपे एक ही शाश्वत संदेश पर गहन चिंतन किया था। हिंदुत्व-हिंदू धर्म-देवसंस्कृति पर अपने विचार रखने वाले स्वामी विवेकानंद को सारे विश्व ने इस धर्म संसद के बाद ही पहचाना व जाना था उनके माध्यम से इस संस्कृति के मूल तत्वों व महानतम आदर्शों को।

शाँतिकुँज को आज से सवा वर्ष पूर्व ही “वर्ल्ड पार्लियामेण्ट ऑफ रिलीजन” के आयोजक मंडल की ओर से भागीदारी का आमंत्रण मिल चुका था। तब सारे अमेरिका में संपन्न गायत्री परिवार के विभिन्न कार्यक्रमों ने जन-जन में व्यापक हलचल मचायी थी। वेदाँत सोसायटी में हुए चर्चा परामर्श व मिशिगन लेक के समीप स्थित आश्रम ‘गैन्जेज’ (गंगा) में स्वामी चिदानंद जी से विगत वर्ष हुए परामर्श के बाद सुनियोजित रूप से इस धर्म संसद में प्रतिनिधित्व करने का परामर्श परस्पर किया गया। इस बीच डेनमार्क, नार्वे, इंग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, फिजी, जिम्बाब्वे, दक्षिण अफ्रीका तथा पूर्वी अफ्रीका में संपन्न कार्यक्रमों के बाद तीन अश्वमेध यज्ञ भी भारत की धरती से बाहर लेस्टर (यू॰ के), टोरोण्टो (कैनेडा) तथा लॉस एंजेल्स (यू॰ एस॰ ए॰) में संपन्न हो गए तथा जन-जन तक देव संस्कृति दिग्विजय अभियान की जानकारी पहुँच गयी। ‘विजन-2000’ (वाशिंगटन) में संपन्न कार्यक्रम से भी सारे अमेरिका में हिंदू संस्कृति का स्वर मुखरित हुआ। इसी कारण वर्ल्ड पार्लियामेण्ट में इस मिशन की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण थी।

इस अपने ही तरह की निराली अशासकीय स्तर की किंतु विश्वस्तरीय संसद की तैयारी विगत पाँच वर्षों से चल रही थी। समापन दिवस की पूर्व वेला में जिमकेनी जो ट्रस्टी मंडल के प्रमुख कर्ताधर्ता थे, ने जब अपनी इस तैयारी के विविध चरणों व आने वाले अवरोधों से लेकर दैवी अनुकंपाओं की तरह मिलती रहने वाली सहायताओं का वर्णन किया तो लगा कि यह नियति का विधान ही है कि अगले दिनों ऐसा ही कुछ मिलन-परामर्श की प्रक्रियाओं द्वारा सर्वधर्म समभाव का स्वरूप निखरकर आएगा, विज्ञान व धर्म परस्पर मिलेंगे तथा प्रगतिशील अध्यात्म जन-जन का मार्गदर्शन कर समग्र मानवजाति को इक्कीसवीं सदी के सुनहरे सूर्योदय की ओर अग्रसर करेगा। जिमकेनी ने अपने प्रयासों की चर्चा करते हुए बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन का जिक्र किया व कहा कि हम सभी संप्रदायों को यदि एक चक्र (व्हील) के तानों (स्पोक्स) के रूप में देखें तो पाते हैं कि वे जैसे जैसे केन्द्र की ओर आते हैं, एक दूसरे के समीप आकर एक धुरी पर मिल जाते हैं। जब तक वे एक-दूसरे से दूर हैं, तब तक उन्हें यह नजर आ रहा है कि यह नहीं, वह धर्म संप्रदाय उससे भिन्न दूर या कनिष्ठ है।

उद्घाटन 28 सितंबर 1993 के दिवस था व उस दिन सभी संप्रदायों के प्रमुखों का प्रोसेशन-एक जुलूस या शोभायात्रा आयोजित थी। चित्र-विचित्र वेषभूषा वाले व्यक्तियों ने कैमरा मैनों व प्रेस को अधिक आकर्षित किया। जहाँ प्रथम धर्म संसद “आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो” जो मिशिगन एवेन्यू पर स्थित है, आयोजित थी, वहाँ यह द्वितीय धर्म संसद होटल हिल्टन में आयोजित थी। शिकागो डाऊनटाऊन का यह 12 मंजिला होटल व इसकी एनेक्सीज पुराने स्थल से प्रायः 2 मील दूर स्थित था। जहाँ पुरानी संसद में भागीदारों की संख्या अधिक से अधिक सात सौ थी तथा एक ही केन्द्रीय हॉल में सारी गतिविधियाँ संपन्न हुईं थीं, वहाँ इसमें भाग लेने वालों की संख्या साढ़े सात हजार से अधिक थी, एक ही समय में प्रायः साठ से अधिक स्थानों पर मेजर प्रजेण्टेसन, वर्कशाप, सेमीनार, सिम्पोजियम, साँस्कृतिक गतिविधियाँ, वीडियो फिल्म शो, ध्यान शिक्षण, स्लाइड शो आदि संपन्न हो रहे थे। एक व्यक्ति अधिक से अधिक पाँच या छह गतिविधि में एक दिन में भाग ले सकता था। साथ में एक शानदार प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी जिसमें विभिन्न धर्म, संप्रदायों की ओर से स्टाल्स लगाए गए थे। क्रिश्चियन व उनके विभिन्न संप्रदाय, मुस्लिम धर्म व उनके विभिन्न मतों, बुद्ध धर्म, शिन्तों, जैन योग, जैन धर्म, सिक्ख पंथ तथा हिंदू धर्म की ओर से विभिन्न स्टाल्स लगे थे। इनमें से हिंदू धर्म की ओर से हिंदू होस्ट कमेटी शिकागो व गायत्री परिवार शाँतिकुँज यह दो ही स्टाल्स थे, शेष प्रायः अस्सी से अधिक स्टाल्स धर्म-संप्रदायों के वैविध्यपूर्ण रूप की झाँकी करा रहे थे भारी संख्या में सभी वक्ताओं श्रोताओं तथा भिन्न-भिन्न रूपों में भागीदारी करने वाले अमेरिकन, ब्रिटिश, फ्रेंच, स्पेनिश, बौद्ध कोरियन-जापानी-तैवानी तथा मध्यपूर्व से व अफ्रीका से प्रतिनिधित्व करने वाले मुस्लिम वर्ग के व्यक्तियों ने इन प्रदर्शनियों को देखा परम पूज्य गुरुदेव के कर्तृत्व व व्यक्तित्व पर, ब्रह्मवर्चस् के विज्ञान व अध्यात्म के समन्वयात्मक स्वरूप पर तथा देव संस्कृति के विज्ञान सम्मत विवेचन पर शाँतिकुँज स्टाल पर एक प्रदर्शनी लगायी गयी थी जिसे देखने के लिए सतत् भीड़ लगी रहती थी। मिशन का अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती व अन्य भाषाओं का साहित्य भी वहाँ उपलब्ध था। शाँतिकुँज से गयी टोली के कार्यकर्ता सर्वश्री प्रताप, शाँतिलाल, ओंकार राजकुमार तथा टोली के लिए अपना पूरा समय दे रहे शिकागो के कार्यकर्ता कुसुम पटेल, डा॰ किशोर व शुला राणा तथा हंसमुख पटेल सतत् सबके समाधान हेतु उपलब्ध थे। समय समय पर अपनी वर्कशाप व वक्तव्यों-परामर्शों के बीच से लौटकर डा॰ प्रणव पण्ड्या ने भी बीच-बीच में आकर सबसे मुलाकात की व उन्हें मिशन के उद्देश्यों के विषय में विस्तार से बताया। एक टेलीविजन भी उस प्रदर्शनी में लगाया गया था, जिसमें परमवंदनीया माताजी एवं पूज्यवर के प्रवचन (इंग्लिश टाइटल्स के साथ) तथा मिशन की गतिविधियाँ सतत् दिखाई जाती रहती थीं।

प्रमुख वक्तव्य के रूप में 31 अगस्त के दिन शाम पाँच से छह के बीच होटल हिल्टन की छठी मंजिल पर पारलट एच में “इन्टरकम्युनीयन ऑफ साइंस विथ रिलीजन” विषय पर डा॰ प्रणव पण्ड्या की वक्तृता रखी गयी थी। 45 मिनट के लेक्चर के बाद स्लाइड्स प्रजेण्टेशन तथा प्रश्नोत्तरी का क्रम था। प्रबंध मंडल ने साढ़े सात सौ की उपस्थिति वाले उस हाल को ना काफी बताते हुए बड़ा प्रयास किया कि

उस समय कोई बड़ा कक्ष उपलब्ध हो जाय किंतु वक्ताओं की बढ़ती संख्या, प्रायः साढ़े चार सौ से अधिक धर्म संप्रदाय के प्रमुखों की उपस्थिति व प्रत्येक को मौका दिये जाने की विवषता में वहीं पर आयोजन किये जाने की प्रार्थना की। भारी संख्या में अमेरिकन, नागरिक, क्रिश्चियन धर्म गुरु, जैन व मुस्लिम पंथ के पक्षधर श्रोतागण इस अपने अनूठे विषय का लाभ लेने आए। स्थान पूरा भरा होने के कारण कई खड़े रहे। स्वतंत्र रूप से कई टेलीविजन रिकार्डिंग एजेन्सीज पूरा वक्तव्य रिकार्ड करने आयीं। युग ऋषि के तर्क सम्मत प्रतिपादन को सभी ने सराहा तथा व्याख्यान समापन के बाद भी वहीं रुके रहकर अपनी-अपनी शंकाओं का समाधान किया। प्रबंध मंडल के प्रतिनिधि ने भी अपनी उपस्थिति जतायी तथा यह अनुशंसा की कि एक बड़े हॉल में यह व्याख्यान समग्र रूप से पुनः होना चाहिए किंतु स्थानाभाव व जैसा कि ऊपर बताया गया अधिकाधिक वक्ताओं की संख्या के कारण यह संभव न हो सका । किंतु जिस कार्य के लिए दल गया था, वह हो गया, चर्चा विद्युत की तरह सब ओर फैल गयी। प्रबंध तंत्र ने अगले दिन ही वह आडियो कैसेट सबको उपलब्ध करा दिया एवं तुरंत प्रायः पाँच सौ प्रतियाँ (प्रत्येक 9 डालर में) बिक गयीं। मेजबानों के स्टाल पर बड़े-बड़े अक्षरों में भाषण कर्ता व प्रवचन विषय लिखे थे, उनमें अधिकाधिक व्यक्ति “विज्ञान व अध्यात्म का समन्वय” विषय वाला प्रवचन ही खरीदते दीखे व यह सब ओर चर्चा का विषय बन गया।

31 अगस्त से चार सितंबर तक लोगों के शाँतिकुँज के स्टाल पर आने व सतत् परामर्श करते रहने का क्रम चलता रहा। पूज्यवर की वाजपेय यज्ञ परंपरा के अंतर्गत ज्ञान-यज्ञ प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए टोली के सदस्य सतत् अन्यान्य व्याख्यानों में व मिलते-जुलते विषयों पर भागीदारी हेतु जाते रहें ताकि सभी क्या कह रहे हैं, इसकी जानकारी मिले। भागीदारी करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में जो थे उनके नाम हैं-रिचर्ड डेली, जिमएडगर, डेनियल, गोमेज, दादी प्रकाशमणि, स्वामी चिदानंद सरस्वती (डिवाइन लाइफ सोसायटी), भाई मोहिंदर सिंह, विषप शेल्डन ड्यूकर, डॉ॰ इरफान खान, अल्फ्रेड याजी, श्री चिन्मय, डॉ॰ एल॰ एम॰ सिंधवी, पालोस ग्रेगोरियोस, डॉ॰ विल्भा एलीस, वाँग, दस्तूर डॉ॰ केर्सी एण्टिया, डॉ॰ जेरॉल्ड बार्नी, रब्बी एलन ब्रेगमेन, डॉ॰ सी॰ कबील सिंधा, जिमकेनी, बाबा विरसासिंह, श्री दलाई लामा, रायना ऐजलर, एर्जा सर्गुमान, आत्मानंदजी, श्री सुशील मुनि, स्वा॰ मित्रानंद, सी॰ फंगचाम, स्वा॰ घनानंद, केरी ब्राऊन, डॉ॰ लक्ष्मी कुमारी, परिव्राजिका अमलप्राण, माँ जयभगवती, राधा बर्नियर, शिवमूर्ति शिवाचार्य, स्वा॰ दयानंद सरस्वती, सद्गुरुसंत केशवदास, माँ अमृतानंदमयी, बहन जयंती, डॉ॰ कर्णसिंह, स्वा॰ शिवाया सुब्रह्यणियम (हिंदुइज्म टुडे), साधु वास्वानी, थॉमस बेरी, जेम्सफोर्ब्स आदि।

4 सितंबर को श्री दलाई लामा के समापन उद्बोधन के साथ ही धर्म संसद को समाप्त घोषित किया गया। हर तरह से उपलब्धियों से भरी इस संसद ने निश्चित ही सभी धर्मों व संस्कृतियों के समन्वय का पथ प्रशस्त किया है, जो कि भवितव्यता है। टोली के सदस्य शिकागो में 151 कुँडी यज्ञ संपन्न कर, शिकागो अश्वमेध (29, 30, 31 जुलाई 1994) की प्रयाज प्रक्रिया हेतु प्रायः स्थानों पर नयी शाखाएँ स्थापित कर अटलाण्टा में एक सौ आठ कुँडी तथा मियामी (फ्लोरिडा) में 51 कुँडी गायत्री यज्ञों के साथ विभिन्न सेमीनार्स संपन्न कर 17 सितंबर को भारत अपनी अनेकानेक उपलब्धियों के साथ लौट आयी। अगला वर्ष कितना युगाँतरकारी होगा, इसका आभास इस वर्ष की गतिविधियों से किसी को भी हो सकता है।

अपनों से अपनी बात-


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