परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - महायज्ञों का स्वरूप व उद्देश्य

December 1993

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आज स्थान-स्थान पर भारत व विश्व में अश्वमेध यज्ञ हो रहे हैं। भारत वर्ष में ज्ञान यज्ञों व अश्वमेध यज्ञों की परंपरा रही है। यह क्यों व किस लिए होते थे, इसकी जानकारी देने वाला एक सामयिक उद्बोधन परम पूज्य गुरुदेव का इस अंक में प्रस्तुत है जो उनने 29 सितम्बर 1978 को शाँतिकुँज प्राँगण में उपस्थित शिविरार्थी समुदाय के समक्ष दिया था। पढ़ें, मनन करें, अमृतवाणी का।

गायत्री मंत्र साथ-साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो

देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

मनुष्य के सामने अनेकों समस्यायें हैं। आइये विचार विनिमय करने के पश्चात् उनका समाधान करें। प्राचीन काल से यही तरीका रहा है। तब सरकारें भी अपना काम करती थीं, पर समाज सरकारों पर आश्रित नहीं था। सरकार का अपना एक दायरा है छोटा सा, कि चोर उचक्कों को पकड़ना चाहिए। देश की सुरक्षा के लिए अगर खतरा पैदा हो, तो सामना करना चाहिए और जो टैक्स वसूल होता है, उसे प्रजा की उन्नति में खर्च करना चाहिए। बस यही दायरा है सरकार का, इससे ज्यादा नहीं। मनुष्यों के विचारों पर, भावनाओं पर सरकार का कोई असर नहीं होता। पैसे का असर होता है, पैसा आपको देना पड़ेगा, लेकिन अगर यह कहा जाय कि आप ब्रह्मचर्य से रहिये, तो कहेंगे कि नहीं। आप हमें पकड़ कर गिरफ्तार कर लीजिए, फेमिली प्लानिंग तो आप जबरदस्ती भी कर सकते हैं, पर आपके कहने से नहीं हो सकता। आप कौन होते हैं कहने वाले ? विचारों के ऊपर भावनाओं के ऊपर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता तब इन पर किसका नियंत्रण नहीं होता जब इन पर किसका नियंत्रण नहीं होता तब इन पर किसका नियंत्रण होता है-समाज का नियंत्रण होता है, विचारशीलों का नियंत्रण होता है। विचार तैयार करना, समाज की परंपराओं को तैयार करना और उनको दिशा देना विचारशीलों का काम है।

हमारी समाज व्यवस्था ऐसी है कि उसमें बार-बार उनका समाधान ढूंढ़ने की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए बार-बार हम विचारशील लोगों को एकत्रित होना पड़ता है। प्राचीन काल में विचारशीलों के एकत्रित होने की पद्धति विचार विनिमय की पद्धति समस्याओं के समाधान करने की पद्धति का नाम था यज्ञ। दो तरह के यज्ञ होते थे। प्राचीन काल के यज्ञों का जब हम इतिहास देखते हैं तो दो तरह के बड़े यज्ञों का वर्णन मिलता है। एक इतिहास मिलता है राजसूय यज्ञों का। राजसूय यज्ञ कैसे होते थे ? जैसा युधिष्ठिर ने किया था। अश्वमेध कैसे होते थे ? जैसा कि रामचंद्र जी के जमाने में हुआ था। अश्वमेध का घोड़ा छोड़ करके उन्होंने उसके द्वारा विचारशीलों को निमंत्रण भेजा था और यह कहा था कि आप लोग एक स्थान पर एकत्रित हों-संघबद्ध हों। एक दूसरे का कहना मानें मिलजुल कर चलें। राजसूय यज्ञ इसी प्रकार राजनीतिक दिग्विजय के लिए होते थे। इस तरह के बड़े-बड़े यज्ञ होते थे, जहाँ सब लोग जमा होते थे और राजनीतिक समस्याओं के ऊपर विचार विनिमय होते थे और जो फैसले होते थे, वे सर्वमान्य होते थे। इनमें सामूहिक हवन भी होता था। तब प्रत्येक आदमी के दैनिक जीवन के क्रिया-कृत्य में भी हवन होता था, पर सामूहिक यज्ञों में ऐसा नहीं होता था, कि दस ग्यारह हजार आदमी आ गये और कहने लगें कि लाइये 10-11 हजार हवन कुँड खोदिये। 10 हजार चौके चलाइये। 10 हजार चिमटे और तवे लाइये। जब एक स्थल पर खाना पक सकता है, मिलजुल कर सामूहिक दावत खाई जा सकती है तो एक ही स्थल पर हवन क्यों नहीं हो सकता ? सामूहिक हवन कैसे हो सकता है ? ऐसे ही जैसे हम और आप एक सौ कुँडीय यज्ञों के बड़े आयोजनों में करते हैं। लोग पारी-पारी से आते जाते हैं। उनसे यही कहा जाता है कि अपनी पारी से आते जाइये, परिक्रमा एक साथ लगाते जाइये और जयकारा एक साथ बोलते जाइये, सामूहिकता का मजा भी आयेगा और सुविधा व्यवस्था भी रहेगी। राजसूय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ सामूहिक होते थे, जिनमें हवन मुख्य होता है।

उस जमाने में हवन किये बिना कोई रोटी भी नहीं खाता था। अग्निहोत्र हमारा स्वाभाविक दैनिक कृत्य है। जिस प्रकार स्नान, भजन, भोजन दैनिक कृत्य है, उसी प्रकार गायत्री उपासना और यज्ञ हमारा आध्यात्मिक नित्य कर्म है और होना ही चाहिए। बड़े यज्ञ कभी-कभी होते थे। उनमें बड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने के लिए, बड़ी जन-गोष्ठियाँ होती थीं। इनमें राजनीतिज्ञ, समाज विज्ञानी, तथा समाज पर अधिकार प्रभाव रखने वाले श्रेष्ठजन जमा होते थे और सामाजिक समस्याओं, आर्थिक समस्याओं एवं अन्यान्य समस्याओं का मिलजुल कर समाधान खोजते थे। इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था, वरन् उसे कहा जाता था कि आपको ऐसा मानना चाहिए और कानून बनाना चाहिए। इसीलिए प्राचीनकाल में राजनीतिक क्षेत्र के लोग राष्ट्रीय विद्रोह के नाम पर जगह-जगह जमा होते थे और स्थानीय समस्याओं तथा सामाजिक के समाधान किये जाते थे। बीच-बीच में कभी-कभी राजनीतिक असेम्बलियों की धार्मिक असेम्बलियों की अलग-अलग मीटिंग होती थी। इसका एक और पक्ष था जिसका नाम था-वाजपेय यज्ञ। वाजपेय यज्ञ में मोक्ष की भावनात्मक और चिंतन-परक, नैतिक, आध्यात्मिक जो भी समस्यायें होती थीं, उनका समाधान करने के लिए वे लोग एकत्र होते थे जिन्हें हम धार्मिक कह सकते हैं। उनके भी आयोजन होते थे। उन आयोजनों का ही नाम था वाजपेय यज्ञ। (एक लाइन मिसिंग है)डडडडडडडडडडडडडडड किया था और उसमें चार लाख आदमी आये थे और पाँच दिन ठहरे थे। पाँच दिन में 40 लाख आदमियों को भोजन कराया 50 लाख रुपये खर्च हुए थे-40 लाख भोजन में और 10 लाख अन्यान्य व्यवस्थाओं में। कहाँ से आया था ? बस यही नहीं बता सकता आपको कि कहाँ से आया था, लेकिन हम आपको यह बताते हैं कि यह जो आयोजन है, यह जो इतनी बड़ी व्यवस्था है-यह प्रज्ञावतार की व्यवस्था है और यह फैलती हुई चली जायेगी। आप लोग भाग्यवान हैं कि जिन लोगों ने आगे आ करके इस संकल्प को अपने जिम्मे लिए हैं। जिनने अपने जिम्मे लिये हैं वे क्या पूरे हो जायेंगे ? हाँ पूरे हो जायेंगे, यदि आपका शौर्य, साहस और पराक्रम घटिया दर्जे का होगा, तभी यज्ञ असफल होगा और आपके योग्यता की घोषणा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तब आपको अयोग्य ठहराना पड़ेगा। यज्ञ तो हमारे लिए पूरे हो जायेंगे, कोई भी चिंता मत करना, लेकिन आपको यहाँ से जाना है तो अपने पुरुषार्थ और पराक्रम की तैयारियाँ करके जाना चाहिए। यह काम बड़ा है और श्रेय भी आपको खूब मिलेगा। आप समय पर जाग गये, यह बहुत अच्छी बात है। समय पर न जागते तो काम तो हो जाता, पर आपको जो श्रेय मिल रहा था, वह नहीं मिल सकता था। स्वतंत्रता आँदोलन में जिनको तीन-तीन महीने की सजा हो गयी, उनको अब 300 रुपये पेंशन मिलती है और वे स्वतंत्रता सेनानी मा ताम्रपत्र लिए फिरते हैं। यह वक्त भी ऐसा है कि अगर आप नहीं चूकते हैं तो अच्छा है। अगर आप इस समय को पहचान लें, समय की प्रधानता को देख लें, भगवान की इच्छा और भगवान की महानता को समझ लें तो ज्यादा अच्छा है। फिर आपका भी नंबर उसी तरीके से आ जाता है जैसे कि हम बार-बार गिलहरी को और जटायु गिद्ध को याद करते रहते हैं। गिद्ध और गिलहरी ने समय को पहचान लिया था। उसने अपनी जुर्रत दिखाई-हिम्मत दिखाई कि किस समय पर क्या करना चाहिए। उनमें हिम्मत थी हौसला था भावना थी और वे अजर-अमर हो गये। गिलहरी वाला वक्त, गिद्ध वाला वक्त, जेल जाने वाला वक्त, फिर से आ गया है। आज आप चाहें तो प्रज्ञावतार का हाथ बँटा सकते हैं। आप चाहें तो युग परिवर्तन की बेला में आगे वाली पंक्ति में, चलने वाली सेना में अपना नाम लिखा सकते हैं।

तो क्या यह यज्ञ आगे फैलेगा ? हाँ यह यज्ञ आगे बहुत फैलेगा और गायत्री माता सुनिश्चित रूप से विश्वव्यापी बनेंगी आप देख लेना। हम तो रहेंगे नहीं और आप भी शायद न रहें, पर आपकी औलाद जरूर रहेगी। आप देखना सारे विश्व का जो यह नवीनीकरण हो रहा है, उस नवीनीकरण में गायत्री की फिलॉसफी और यज्ञ की कार्य पद्धति की मुख्य भूमिका रहेगी। आदमी का व्यवहार कैसा होगा यह प्रेरणा हमको यज्ञ से मिलेगी और मनुष्य का चिंतन कैसा होगा, व्यक्ति का, समाज का, राष्ट्र का और विश्व का चिंतन कैसा होगा ? यह सारी की सारी प्रेरणायें गायत्री के उस बीज मंत्र से मिलेंगी जो चिरपुरातन और चिरनवीन है। चिरपुरातन और चिरनवीन का ऐसा संयोग कदाचित ही कहीं मिलेगा। नवीनतम युग और प्राचीनतम संस्कृति दोनों का समन्वय करने के लिए हम बहुत महत्वपूर्ण प्रयत्न कर रहे हैं। आप उसमें सम्मिलित हो रहे हैं, यह अधिक खुशी की बात है।

अब क्या करना चाहिए ? अब आप एक काम करना कि पहले वाले यज्ञों और इन यज्ञों में क्या मौलिक फर्क है, यह समझ कर जाना। इसी के लिए आपको यहाँ बुलाया है। पहले वाले यज्ञों में पैसा प्रमुख था। पैसा हमको दे दीजिए और जो भी आप कहेंगे हम लाकर के आपको दे देंगे। आप चाहे 100 कुँडीय यज्ञ करा लें, चाहे हजार कुँडीय सब व्यवस्था घर बैठे हो जायेगी। लेकिन इन यज्ञों में पैसा नहीं जन शक्ति मुख्य है। जनशक्ति का वह अंश जो धर्म-श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। उसका संग्रह करना बहुत बड़ा काम है। इसके लिए हम यहाँ से कलावा बाँध कर आपको भेज देंगे और अपने घर जाकर हमारी ‘टीम’ के साथ काम करना। हमें कमेटी नहीं, ‘टीम’ चाहिए। खिलाड़ियों की एक टीम होती है जो जीने-मरने और हंसने-खेलने में एक साथ रहती है। दस आदमियों की एक टीम हम यहाँ से भेज देंगे, आप उसके साथ काम करना। आपका काम सफल हो जायेगा। सफल न होगा तो हम सफल कर देंगे। सफलता-असफलता की आप चिंता मत करना। आपको जो हमने काम सौंपे हैं उसे एक निष्ठ हो करके एक भाव से तत्पर हो करके करें। इसमें परीक्षा आपकी सफलता की नहीं वरन् इस बात की है कि आपने कितनी मेहनत की भाग दौड़ करने में कितना समय लगाया। अगर आप यह काम कर सकेंगे, जो अत्यधिक महत्वपूर्ण आयोजन जिसको हम ‘वाजपेय यज्ञ’ कहते हैं, नवयुग के आगमन की पुनीत वेला का शुभ आयोजन कहते हैं। प्रभात-कालीन नवयुग आने की आरती कहते हैं, धर्मानुष्ठान कहते हैं,आप धन्य हो जायेंगे। यह इतना महत्वपूर्ण कार्य है जो देखने-सुनने में छोटा मालूम होता है। गाँधी जी के नमक सत्याग्रह का लोग मखौल उड़ाते थे कि नमक बना करके स्वराज्य ले लेंगे। नमक से स्वराज्य आता है कहीं ? आज हम देखते हैं कि नमक सत्याग्रह कैसे सफल हुआ।

25 कुण्डीय यज्ञों का आयोजन भी गायत्री महापुरश्चरण की शृंखला मिला करके मालूम पड़ता है कि यह कोई साधारण कृत्य है, धर्मानुष्ठान है, पूजा पाठ है। देखने में इसका रूप जो भी हो, इसकी संभावना बहुत बड़ी है। इसके आधार पर मनुष्य के तीनों शरीरों के स्वास्थ्य संवर्धन का, मनुष्य समाज को नये ढंग से शिक्षित करने का शालीन बनाने का विश्वव्यापी आँदोलन का यह हमारा शुभारंभ है। आप यह मानकर चलना कि विश्व का नया निर्माण करने के लिए हमारा यह अनुष्ठान उसी तरह का आयोजन है जिसमें कि मनुष्य के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण के लिए जो दैवी शक्तियाँ काम कर रही हैं जिसके शुभारंभ और श्रीगणेश के दिन यह हमारा गायत्री महापुरश्चरण संपन्न होता है। इसमें सहयोग देने के लिए, इस अवसर का लाभ उठाने के लिए आप लोग हमारे साथ आइये। गोवर्धन उठाया जा रहा है आप उसमें हिस्सा बँटाने के लिए अपनी लाठी लेकर खड़े हो जाइये। हमें प्रसन्नता है कि आप जरूर लाठी लेकर खड़े होंगे और गोवर्धन उठाने में सहायता करेंगे। सेतु बाँधा जा रहा है, हमें खुशी है कि आप लोग भी अपने पत्थर और लकड़ी लेकर के इसमें सहयोग देने के लिए आ गये। आपका यह सहयोग जितना सराहनीय है, उतना ही मानव जाति के नये निर्माण में सहायक सिद्ध होगा। यह आपका सौभाग्य है जो आप लोगों को यहाँ खींच करके ले आया। यह सौभाग्य आप लोगों को बहुत कुछ प्रदान करे, ऐसी परब्रह्म परमात्मा से प्रार्थना है। ॥ ॐ शांति॥


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