मारने वाला बड़ा कि बचाने वाला ?

December 1993

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ईश्वर समद्रष्टा, न्यायकारी, सत्ता है। अन्याय और अनीति को उसके राज्य में कोई स्थान नहीं। जो इनका आक्षेप करते हैं, वस्तुतः वह अपने पिछले पाप-कर्म ही भोगते रहते हैं, अन्यथा न्याय-निष्ठा में यहाँ राई-रत्ती भर भी अंतर आने वाला नहीं। दुर्जन उसके विधान में दंड पाते हैं और नीति मार्ग पर चलने वाले सज्जन-सत्पुरुष पुरस्कार के अधिकारी होते हैं। जब कभी दुष्टतापूर्वक, कुयोग वश या भ्रांतिवश इन्हें उलझाने की, फँसाने की अथवा मार डालने की कोशिश की जाती है, तो वह सत्ता बीच में हस्तक्षेप कर उन्हें बचाती और पग-पग पर उनकी सहायता कर उनके निर्दोष होने का प्रमाण-परिचय देती है।

फ्रैंक एडवार्ड्स के “स्ट्रेंज पीपुल” नामक ग्रंथ में एक ऐसी ही घटना का उल्लेख है। सन् 1803 में सिडनी, आस्ट्रेलिया में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। मौत का कारण चोरों द्वारा प्राणघातक आक्रमण था। आक्रमण के उपराँत चोर उनके सोने के मोहरों से भरा बक्सा उठा ले गये। शीघ्र ही जोसेफ सैमुएल्स नामक एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर आरोप था कि उसी ने चोरी की है। सैमुएल्स ने अपने निरपराध होने की लाख दलीलें और साक्षियाँ दीं, पर उसकी एक न सुनी गई और प्राण दंड घोषित कर दिया गया। जल्दी ही आइजक साइमण्ड्स नामक एक अन्य व्यक्ति को पकड़ा गया। उस पर भी अपराध में सम्मिलित होने का अभियोग था, पर वह इसे स्वीकार नहीं रहा था। सैनिक न्यायाधीश ने सोचा कि शायद सैमुएल्स की यातनापूर्ण फाँसी से डरे कर वह अपराध स्वीकार ले, इसीलिए उसके सार्वजनिक फाँसी के अवसर पर न्यायाधीश ने साइमण्ड्स को भी वहाँ उपस्थित रखने का आदेश दिया।

नियत दिन सैमुएल्स को दंड के लिए लाया गया। फाँसी का तख्ता एक घोड़े-गाड़ी से बँधा था और उसी के द्वारा खींचा जाना था। निर्धारित समय पर फँदा अपराधी के गले में डाला गया, उसमें झूलने से पूर्व वह उपस्थित लोगों के समक्ष कुछ बोलना चाहता था। अधिकारियों ने इसे उसकी अंतिम इच्छा समझ कर अनुमति दे दी। फाँसी कुछ देर के लिए रोक दी गई। उसने उपस्थित जन-समुदाय को संबोधित किया, कहा कि वह बिल्कुल निर्दोष है। आरोप एकदम निराधार है। यदि भगवान सचमुच ही सर्वोपरि न्यायनिष्ठ सत्ता है, तो आज यहाँ कोई-न-कोई चमत्कार होना ही चाहिए।

इतना कहकर वह मौन हो गया। फंदा एक बार पुनः उसके गले में झूलने लगा। तख्ते का निरीक्षण हुआ और साथ ही अधिकारी का संकेत भी। इशारे के साथ घोड़ों पर चाबुक पड़ी। घोड़े उछल कर आगे बढ़े। तख्ता खिंच चुका था और सैमुएल्स रस्से से लटकने लगा। अभी कुछ ही क्षण बीते थे कि मोटा सा रस्सा न जाने कैसे टूट गया और अभियुक्त संज्ञाहीन होकर नीचे लुढ़क पड़ा। उपस्थित गार्डों ने तुरंत उसे घेर लिया। अधिकारी दूसरे फंदे की तैयारी करने लगें अविलंब ही नया वलय अपराधी की गर्दन से लिपट गया। उसे एक कुर्सी पर बैठा कर तख्ते पर रखा गया, किंतु इस बार भी सैमुएल्स बच गया। इस बार रस्से से लटकते ही मजबूती से बँधा रस्सा धीरे-धीरे कर खुलने लगा, लंबाई बढ़ती गई और कुछ ही पल में दंड प्राप्त व्यक्ति के पैर जमीन को छूने लगे।

अधिकारी इतने पर भी रुके नहीं। निष्फलता को अपनी ही कमियाँ मानते रहे। तीसरा प्रयास आरंभ हुआ। इस बार रस्सा सैमुएल्स के सिर के ऊपर से टूट गया और प्राणदंड पूरा नहीं हो सका। इसके बाद वहाँ के गवर्नर ने फाँसी रुकवा दी और उसे अपराध-मुक्त घोषित कर दिया।

इस असफलता से उपस्थित न्यायाधीश को शंका हुई। उसने समझा कि रस्सों के साथ किसी-न-किसी प्रकार की छेड़छाड़ एवं गड़बड़ अवश्य ही की गई है, अस्तु उसने इनकी जाँच करने का निश्चय किया। निरीक्षण से जो निष्कर्ष प्राप्त हुआ, उससे न्यायाधीश आश्चर्यचकित रह गया। रस्सों के साथ किसी प्रकार की कोई छेड़खानी नहीं की गई थी, फिर भी वे टूट कैसे गये ? यही उसकी समझ में नहीं आ रहा था। तीसरा फंदा तो एकदम नये रस्से का बनाया गया था। अधिकारियों ने इसकी भार-वहन क्षमता की पुनः परीक्षा की। धीरे-धीरे कर चार सौ पाउण्ड वजन उससे लटकाया गया। वह यथावत् बना रहा। फिर उसमें की तीन बटी रस्सियों में से दो को काट दिया गया। उसकी एक लड़ भी उक्त भार ढोने के लिए पर्याप्त मजबूत साबित हुई, फिर अपेक्षाकृत कम भार वाले अपराधी के लटकने पर वह धागे के समान क्यों कर टूट गया ? यह किसी की समझ में नहीं आ सका।

बाद में इस अद्भुत मुकदमे की समीक्षा करते हुए एक गोष्ठी के दौरान न्यायाधीश ने इसमें किसी परोक्ष सत्ता का हाथ होने की बात स्वीकारते हुए टिप्पणी की थी “मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।” इस उक्ति की सत्यता सिद्ध होते तब देर नहीं लगती, यदि उस सत्ता के प्रति अगाध श्रद्धा, अटूट निष्ठा और अटल विश्वास पैदा किया जा सके, तो यह भी अनुभव किया जा सकेगा कि कोई अलौकिक शक्ति काया की छाया की तरह लिपटी रहकर हर प्रकार की समर्थ सहायता करने के लिए सदा तत्पर रहती है।


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