प्रकृति के अजूबे, जिन्हें विज्ञान नकारता है

December 1993

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प्रकृति रहस्यमय है। उसकी पहेलियों को समझ पाना सामान्य बुद्धि के लिए संभव नहीं। कई बार स्थूल बुद्धि उसकी अपने ढंग से व्याख्या तो कर देती है, पर यह बता पाने में समर्थ नहीं हो पाती कि प्रकृति-नियमों की सर्वथा अवहेलना करते हुए यह विचित्रताएँ यत्र-तत्र क्यों कर पैदा हुई ? वास्तविकता तो यह है कि जब तक सृष्टि के मूल को न समझा जाय उसके रहस्यों को समझ पाना कठिन ही नहीं, असंभव भी है। इसी बात की उद्घोषणा करते हुए निसर्ग में ऐसी कितनी ही अद्भुतताएँ अब भी अस्तित्व में हैं, जो अविज्ञात स्तर की आश्चर्य बनी हुई है।

इन्हीं विलक्षणताओं में से एक है-क्रोय ब्राई, आयर-स्ट्रेथक्लाइड, स्काटलैंड का दृष्टि भ्रम। जब कोई मोटर गाड़ी इस रास्ते से होकर गुजरती है, तो उसका चालक बहुत उलझन में पड़ जाता है ओर गाड़ी को वहाँ से सुरक्षित निकाल ले जाने में मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इस स्थान पर जब उत्तर की दिशा से कोई मोटर आती है, तो उसके चालक को बड़ी अद्भुत अनुभूति होती है। वह संभ्रम में पड़ जाता है। रोड वहाँ ढलवाँ दिखाई पड़ती है। चालक जब उसकी गति धीमी करता है, तो गाड़ी ढलान में तेजी से लुढ़कने की बजाय धीरे-धीरे कर रुक जाती है और फिर पीछे की ओर लुढ़कने लगती है।

इसी प्रकार जब गाड़ी दक्षिण की दिशा से आती है, तो चालक रास्ते की चढ़ाई को देखकर गति तीव्र कर लेता है, पर यह क्या ! गति जितनी बढ़ायी गयी थी, उससे भी तेज रफ्तार से गाड़ी दौड़ने लगती है और चालक विस्मय-विमूढ़ बना रहता है।

इस तरह की अद्भुतता मात्र आयर की की एक मात्र घटना नहीं है। विश्व के कई स्थानों में ऐसी विचित्रता देखी गई है। एक ऐसी ही स्थान कनाडा के न्यूब्रून्सविक, मोंक्टन नामक स्थल पर “मैगनेटिक हिल” है। जनश्रुति के अनुसार इस जगह की विलक्षणता का पता पहली बार सन् 1930 में तब चला, जब एक दूध बेचने वाला गाड़ीवान उक्त पहाड़ी की तलहटी में गाड़ी खड़ी कर ग्राहकों को दूध देने गया। वापस लौटा, तो आश्चर्यचकित रह गया। गाड़ी आधी चढ़ाई चढ़ कर दूर जा चुकी थी, जबकि घोड़ा लगभग उसी स्थान पर अब भी चर रहा था, जहाँ वह छोड़ गया था। पहले तो इसे उसने किसी की शरारत समझी, अतः उस ओर विशेष ध्यान न दिया, पर जब प्रायः प्रतिदिन ऐसा होने लगा, तो उसे चिंता हुई। उसने शरारती का पता लगाने का निश्चय किया।

एक दिन उक्त स्थान पर गाड़ी खड़ी करके उसने घोड़े को खोल दिया और स्वयं एक झाड़ी के पीछे छिप गया। अभी कुछ ही क्षण बीते होंगे, हल्की हवा चली और इसी के साथ गाड़ी चढ़ाई पर तेजी से चढ़ने लगी। वह स्तब्ध रह गया। उसने बहुत माथा-पच्ची की, पर उसकी एवं अन्य स्थानीय लोगों की समझ मं कुछ न आया। अंततः उसे स्थान का रहस्य मानकर उसने संतोष कर लिया।

इसी प्रकार का एक उल्लेख कई वर्ष पूर्व प्रसिद्ध “द टाइम्स” में छपा था। संपादक के नाम पत्र में एक ब्रिटिश नागरिक हेनरी आर॰ बेक ने अपनी उस अनुभूति की चर्चा की थी, जो उसे कनाडा यात्रा के दौरान वैंकुवर के एक निकटवर्ती स्थान में हुई थी। वे लिखते हैं कि उक्त स्थल के भ्रमण के दौरान एक जगह गाड़ी खड़ी कर दी गई। गाड़ी रोड पर जहाँ पार्क की गई थी, वहीं से चढ़ाई की शुरुआत होती थी। कार में कुल आठ यात्री थे। ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दी। इससे पूर्व कि लोग उससे बाहर निकल पाते, कार बंद स्थिति में ही तेजी से चढ़ाई चढ़ने लगी। एक यात्री ने जल्दी से कार के बाहर छलाँग लगायी, थोड़ी ही दूर पर स्थित एक नल से पानी लाया और उसे कार के सामने रोड पर यह सोच कर उड़ेल दिया कि शायद इससे पहिए फिसलने लगें और वह ऊपर न चढ़ पायें, पर इसके उपराँत जो कुछ हुआ, उससे सभी अचंभे में पड़ गये। पानी स्वयं भी ऊपर चढ़ने लगा। लोगों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने बार-बार आँखें मलीं, किंतु दृश्य यथावत् बना रहा। गाड़ी और जल दोनों ही ऊपर चढ़ते अब भी दृष्टिगोचर हो रहे थे। इस अलौकिक पहेली को उनमें से कोई सुलझा न सका।

यरुशलम जाने वाली सड़क पर जबल मुकाबर गाँव के समीप इसराइल में भी दृष्टिभ्रम पैदा करने वाला एक ऐसा ही क्षेत्र है।

कुल मिलाकर इन सब स्थलों में स्थिति महाभारत के “जल में थल एवं थल में जल” जैसी ही है, जहाँ दुर्योधन को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। विशेषज्ञ बताते हैं कि जहाँ हमारी आँखें चढ़ायी पर गाड़ी चढ़ती देखती हैं, वस्तुतः वह चढ़ाई न होकर ढलवाँ सड़क होती है, किंतु किसी कारणवश हमारी इन्द्रियाँ वहाँ चढ़ाई को ढलाव और ढलाव को चढ़ाई देखने व अनुभव करने लगती हैं, इसी कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष में यह विरोधाभास पैदा होता है। वैज्ञानिक इस नैसर्गिक कौतुक की विज्ञान सम्मत व्याख्या कर पाने में अब तक विफल रहे हैं। हाँ, उसने इस संबंध में तरह-तरह के अनुमान अवश्य लगाये हैं। एक अनुमान के अनुसार ऐसा उन क्षेत्रों की स्थानीय चुँबकीयता में विविधता के कारण है। यह भू-चुँबकीय भिन्नता संभवतः हमारी इन्द्रियों को प्रभावित करती हो, फलतः उन-उन भागों में हमारी दृष्टि और अनुभूति परिवर्तित हो जाती है। दूसरी संभाव्यता के बारे में विशेषज्ञ वहाँ की विशिष्ट टोपोग्राफी (स्थानाकृति-विज्ञान) को जिम्मेदार ठहराते हैं, किंतु सब संभावना मात्र हैः यथार्थ रहस्य का उद्घाटन तो तभी हो सकेगा, जब प्रकृति के गर्भ में प्रवेश कर सकने की सामर्थ्य हम में हो।


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