प्रभु-चर्चा (kavita)

December 1993

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मेरे साथ जहाँ मेरा प्रभु, वही तपोवन मेरा। उसकी नमता लेकर ही, उर बना श्यामघन मेरा॥

यत्न किया जीवन भर लेकिन, जग आसक्ति न छूटी। जब उसकी स्मृति में जग भूले, वही मुक्ति क्षण मेरा॥

जग के हाहाकारों में, गुजरा है सारा जीवन। जहाँ मुरली स्वर स्नेही जन के, वह वृंदावन मेरा ॥

जब श्रद्धा से झुका माथ यह, प्रभुवर के चरणों में। तभी सार्थक लगा मुझे, धारण करना तन मेरा॥

केवल नाम सुना हिमगिरि का, पहुँच कहाँ संभव थी। जहाँ तेज बरसा सविता का, वह नंदन-वन मेरा॥

राजनीति, इतिहास, ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि भोजन था। प्रभु चर्चा में चैन हृदय का, पाता है मन मेरा॥

माया वर्मा


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