पिता की नजर नगर सेठ की दौलत पर थी। उसने कहा “बेटा लड़की का रंग काला है, तो क्या हुआ। दुनिया में दो ही तो रंग है,” “किन्तु पिताजी लड़की कुछ हकलाती-तुतलाती भी है।” पिता ने कहा “बेटा तुझे कौन-से शास्त्र पढ़ने है उससे।” बेटा फिर बोला “सुना है लड़की कम सुनती है।” पिता बोला “यह तो और अच्छा है। तू कुछ भी कहेगा भला-बुरा कभी झगड़ा होगा ही नहीं”। अब लड़का क्या करे? पिता जी शादी कराने पर तुला बैठे थे। आखिरी बार हिम्मत जुटाकर लड़का बोला “मगर पिता जी वह लड़की तो 20 साल बड़ी है उम्र में हमारी उसकी जोड़ी माँ बेटे जैसे लगेगी।” पिता ने कहा “बस इतनी छोटी-सी बात पर ऐसा सुयोग अवसर चूकता है। धन दौलत की बात तेरे दिमाग में क्यों नहीं आती?”
आदमी धन के लालच में न जाने कितने विपरीत तर्क खोज लेता है। तर्क नंगी तलवार है। पक्ष विपक्ष दोनों को काट सकती है।
मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षा भवन में एक ही कक्षा के विद्यार्थियों को दो भागों में विभक्त करके अलग-अलग बैठाया। आधे विद्यार्थियों को प्रश्न पत्र देने से पूर्व समझाया कि प्रश्नपत्र इतना सरल है कि तुम्हारे से नीची क्लास के विद्यार्थी भी हल कर सकते हैं, किन्तु तुम लोगों से इसलिए हल कराया जा रहा है ताकि यह ज्ञात हो सके कि क्या तुम में भी कोई ऐसा विद्यार्थी है, जो इसे हल नहीं कर सकता। वही प्रश्न पत्र दूसरे हॉल में विद्यार्थियों को दिया गया और उन्हें कहा गया कि प्रश्न पत्र जरा कठिन है। यह देखने के लिए दिया गया है कि क्या तुममें से कोई इसे हल भी कर पाता है या नहीं। बस धारणा बन गई और दिमागों पर छा गई । जिन्हें कहा गया था प्रश्न पत्र सरल है उन 15 विद्यार्थियों में से 14 ने प्रश्न पत्र हल कर दिये और जिन्हें कठिन बताया गया था, उन 15 में से मात्र एक विद्यार्थी ही प्रश्न पत्र हल कर पाया।
किसी बात को बिना जाँचे-परखे ही उससे संबंधित कोई दृढ़ धारणा अथवा मान्यता बना लेना नासमझी है।