नगद धर्म का पालन करने वाला देवता

May 1992

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देवताओं से अनेकों से अनेक प्रकार की कामनायें, प्रार्थनाएँ की जाती हैं पर वे मूकवत् ही बने रहते हैं। उनका अनुग्रह मिलने का भी कोई निश्चय नहीं रहता पूजा उपचार में लगे पैसे का उलाहना भी मन ही मन दिया जा सकता है। क्योंकि उनका न तो कुछ पता ठिकाना है और न दृश्य शरीर । ऐसी दशा में कुछ मिलने-न मिलने का भी निश्चय नहीं बँधता । संदेह बना रहता है कि कहीं कोरी कल्पनाओं का भटकाव मात्र ही न हो। इच्छा फलित होने पर भी देवता की कृपा हुई निश्चित नहीं माना जाता, अपना पुरुषार्थ, भाग्य, समय का सुयोग, अमुक का सहयोग जैसी बातें भी ध्यान में आती हैं। इसलिए असफलता में देवता को कोसा तो जाता है पर सफलता का पूरा श्रेय उसे नहीं मिलता । अँधेरे में ढेला फेंकने जैसी मनःस्थिति रहती है।

तब क्या इस संदर्भ में सोची जाने वाली बातें सभी अनिश्चित है? इस संदर्भ में एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि एक देवता ऐसा है जो प्रत्यक्ष दीखता भी है साथ ही रहता भी और आवश्यकताओं की पूर्ति में पूरी तरह समर्थ भी है। उसकी रीति-नीति भी मर्यादित सुव्यवस्थित है। ऐसी दशा में उसकी श्रद्धापूर्वक की गई पूजा-अर्चा के निरर्थक जाने जैसा असमंजस भी नहीं रहता। उसके दरबार में इस हाथ दे उस हाथ ले का अनुशासन चलता और नकद धर्म का पालन होता है।

उस देवता का नाम है “ जीवन” । उसका सदुपयोग करने वाला निहाल हो जाता है, साथ ही यह भी निश्चित है कि उपेक्षा अवमानना करने वाले खाली हाथ रहते हैं और जिनने भी दुरुपयोग करने का दुःसाहस किया वे क्रोध के भाजन भी बनते हैं अभिशापजन्य कष्ट सहते हैं। जीवन देवता का तिरस्कार करने वाले पतन के गर्त में गिरने, पिछड़ेपन का त्रास उपहास सहे बिना बचते नहीं।

मनुष्य भगवान का राजकुमार है युवराज। पर सच्चा युवराज वह है जिसके पास तद्नुरूप साधन या अधिकार भी हो। ईश्वर ने इसमें भी कोताही नहीं रखी है। जीवनरूपी ऐसा वैभव प्रदान किया है, जिसे अक्षय भण्डार भी कह सकते हैं।

पुरातन इतिहास और वर्तमान का प्रचलन इस बात की साक्षी है कि जिनने भी सच्चे मन से उसे सँभाला सँजोया है वह निहाल होकर रहा है। पतन पराभव उन्हीं के हिस्से में आया है जो उसका तिरस्कार करते हैं। जिनने उसका महत्व समझा और सदुपयोग किया उनमें से किसी को भी शिकायत करने या कोसने की आवश्यकता नहीं पड़ी है।

इस संसार में सब कुछ प्रत्यक्ष है। परोक्ष की प्रेरणा भर रहती है। पर जो कुछ करना होता है जो किया जाता है वह सब कुछ स्पष्ट दीखता है। बुद्धि का थोड़ा सा उपयोग कर लेने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि पुराने लोगों की यह मान्यता शत प्रतिशत सही है कि मनुष्य अपने भाग्य का विधाता आप है।

जीवन समय के टुकड़ों से मिलकर बना है। इसमें से प्रत्येक घटक ऐसा है जिसकी बहुमूल्यता असाधारण है। उसकी बरबादी करना हाथ में आये हुए मणिमुक्तकों को बखेर देना है। उनका दुरुपयोग करना तो एक प्रकार से आत्मघात है। उसके लगाये हुए घाव ऐसे हैं जो कालान्तर में बड़ी कठिनाई से ही भरते हैं। जिसे सफल और श्रेयाधिकारी बनना हो उसे जीवन का महत्व समझना चाहिए और उसके सदुपयोग में निरन्तर संलग्न रहना चाहिए। इस तत्परता का प्रत्यक्ष फल उन सभी के जीवन में देखना चाहिए जिनने अपने आपको सँभाला और समय का सतर्कतापूर्वक उपयुक्त कार्यों में सदुपयोग किया और उसका कल्पवृक्ष की साधना जैसा प्रतिफल प्राप्त करके धन्य हो गये।

जीवन साधना के अनुष्ठान का शुभारंभ कब से किस प्रकार किया जाय? इसका तरीका भी बहुत सुलभ है और मुहूर्त निकालना हो तो आज का दिन ही श्रेष्ठतम शुभारंभ है। विधान ऐसा है जिसमें कुछ खर्च करना नहीं पड़ता और किन्हीं ऐसे साधनों को जुटाना नहीं पड़ता जो कष्टसाध्य हों जिन्हें तलाशने कहीं अन्यत्र जाना पड़े ।

प्रातःकाल जब भी नींद खुले बिस्तर पर पड़े-पड़े ही यह मान्यता विकसित करनी चाहिए कि आज ही जन्म हुआ है, अभी अभी । इसकी अवधि एक दिन लम्बी ही है। इसलिए ऐसा प्रयास करना चाहिए जिसमें एक घड़ी भी निठल्ले बैठने निरुद्देश्य काम करने या न करने योग्य करने में उसका अपव्यय होने लगे। इसके लिए यही उपयुक्त है कि उठने से लेकर सोने तक की ऐसी दिनचर्या बना ली जाय जिसमें समय के प्रत्येक क्षण का मस्तिष्क प्रत्येक विचार तरंग का श्रेष्ठतम उपयोग होता रहे।

इसके बाद बिस्तर छोड़ना चाहिए और घड़ी की सहायता से प्रत्येक क्षण को इस प्रकार व्यतीत करना चाहिए कि वह रबड़ की तरह खिंचकर अपेक्षाकृत अधिक लम्बा हो जाय। आलसी का दिन सिकुड़ जाता है। ऐसे वैसे उलट-पुलट करते ही समाप्त हो जाता है। अब का काम फिर टालने की आदत ऐसी बेहूदी है कि उसके कारण ढेरों महत्वपूर्ण काम पीछे कभी के लिए जमा होते रहते हैं और कचरे की तरह उनका ढेर जमा हो जाता है। किन्तु यदि मुस्तैदी बरती जाय, शरीर में स्फूर्ति और मन में उत्साह रहे तो एक काम के साथ-साथ चार काम और भी अनायास ही होने लगते हैं। इस रीति से जिया गया थोड़ा जीवन भी इतना महत्वपूर्ण होता है जिसमें हजारों शतायुओं को निछावर किया जा सके।

रात को सोने के लिए बिस्तर पर जाते समय दिन भर के कार्यों का लेखा-जोखा लेना चाहिए। बैंक का दफ्तर तब बंद होता है जब एक-एक पैसे का हिसाब ठीक मिल जाता है। जहाँ प्रमाद बरता गया हो, वह प्रसंग नोट कर लेना चाहिए और दूसरे दिन उसका प्रायश्चित करने की ऐसी योजना बनानी चाहिए जिससे आज के छूटे या बिगड़े काम कल सुधारे एवं पूरे किए जा सकें। प्रायश्चित इसी को कहते हैं कि भूल को समझा और सुधारा जाय। इतना ही नहीं जो क्षति बन पड़ी है उसे जल्दी ही पूरा किया जाय। इस चिन्तन के साथ “हर रात नई मौत” की भावना लेकर शान्तिपूर्वक सो जाना चाहिए।

“हर दिन नया जन्म और हर रात नई मौत” का चिन्तन करते हुए ही प्रातःकाल जगना और रात्रि को सोना चाहिए । यह क्रम नित्य नियमित रूप से चलता रहे। कल की अपनी सुव्यवस्थित जीवनचर्या को सफलता मानना चाहिए और प्रसन्न होना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखने योग्य है कि जो भूलें रहीं हों उस पर दुःख मनाते हुए उनकी क्षतिपूर्ति जल्दी से जल्दी कर ली जाय। यह सिलसिला नियमित रूप से चलता रहे। समय सम्पदा को श्रेष्ठतम क्रियाकलाप में नियोजित किया जाय। यह क्रम ऐसा है जिसे तत्परतापूर्वक चलाते रहा जाय तो समय सम्पदा का श्रेष्ठतम सदुपयोग हो सकता है।

समय, श्रम, मनोरोग ऐसी धन−सम्पदा है, जिसके बदले संसार की हर भली बुरी वस्तु खरीदी जा सकती है। यह अपनी बुद्धिमत्ता पर निर्भर है कि हीरे को काँच का टुकड़ा समझ कर उसे उपेक्षापूर्वक फेंक देते हैं या जौहरी बाज़ार में जाकर उसका पूरा मूल्य उठाते हैं। अपनी बुद्धिमानी इस कसौटी पर खरी उतरे, इसके लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए।


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