बुद्ध गम्भीर हो गये (Kahani)

May 1992

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प्रव्रज्या पर जाने से पूर्व तथागत ने शिष्यों को अपने पास बुलाकर पूछा-जिस नये प्रदेश में तुम प्रचार-प्रसार के लिए जा रहे हो, यदि वहाँ के निवासियों ने तुम्हारी बात नहीं सुनी, तो तुम क्या करोगे?

एक शिष्य ने कहा-भगवन् हम समझेंगे कि ये लोग बहुत अच्छे हैं। कम-से-कम गालियाँ और उपालम्भ तो नहीं दिये।”

तब फिर बुद्धदेव ने पूछा-यदि गालियाँ दीं, तो क्या करोगे?” तब दूसरा शिष्य बोल उठा “हम सोचेंगे, चलो मारा तो नहीं।”

तथागत ने पुनः प्रश्न किया-यदि मारा तो?” तब तीसरा शिष्य बोला-तब हम समझेंगे कि इनके अन्तःकरण में दया अब भी शेष है। कम-से-कम हमारे प्राण तो नहीं लिए इन्होंने।”

अब भगवान बुद्ध गम्भीर हो गये। अपने शिष्यों की कर्मठता, व लगन विनम्रता के प्रति विश्वास गहरा हो आया और अन्तिम आदेश दिया “जाओ वत्स! तुम कहीं भी संसार में चले जाओ, इन गुणों के रहते तुम सदैव सफलता और प्रतिष्ठा पाते रहोगे।”


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