परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

May 1992

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इस अंक में प्रस्तुत है परम पूज्य गुरुदेव द्वारा शान्तिकुञ्ज परिसर में 26 फरवरी 1976 को दिया गया एक ऐतिहासिक उद्बोधन । प्रस्तुत उद्बोधन में साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष के परिप्रेक्ष्य में युगशक्ति गायत्री के अवतरण की उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं की एवं मानव मात्र के कल्याण हेतु गायत्री के तत्त्वदर्शन की महत्ता का प्रतिपादन है। भारतीय संस्कृति का आधार स्तम्भ है-गायत्री आज हम ज्यों ज्यों बीसवीं सदी के अंतिम दशक में कदम दर कदम आगे बढ़ रहे हैं, यह समग्र तत्त्वदर्शन उतना ही सामयिक और युगानुकूल होता चला जा रहा है, प्रस्तुत है-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी।

देवियों एवं भाइयों! ये जमीन जिस दिन भगवान ने बनायी उसी दिन प्राणियों को भी बनाया उसी दिन सूरज को भी बनाया। मुद्दतें हो गयीं किसी का किसी से कोई खास संबंध नहीं हो सका। जब मनुष्य की बुद्धि का विकास हुआ तो उसने सूरज की धूप को, रोशनी को, अपने कब्जे में करने की कोशिश की । सबसे पहले मिली उसे आग । जिस दिन उसे अग्नि प्राप्त हो गयी, मनुष्य और जानवर के बीच फर्क पड़ना शुरू हो गया। आग ने मनुष्य का कायाकल्प कर दिया। आदमी की भौतिक जिन्दगी में प्रगति की एक क्रान्ति खड़ी हो गयी। मुद्दतें बीत गई । मुद्दतों के बाद एक और आग मनुष्य के हाथ लगी जिसका नाम है विद्युत-बिजली आज से पाँच सौ-चार सौ साल पहले बिजली आदमी के हाथ में आयी व इसने आदमी की दुनिया ही बदल दी। पाँच सौ साल पहले के आदमी की और आज के आदमी की तुलना आप नहीं कर सकते। आज बिजली के कारण इतनी सुविधायें हैं। तब की कल्पना कीजिए जब आदमी आज से पाँच सौ साल पहले बिना बिजली के अँधेरे में बिना यंत्रों के काम करता होगा। टार्च की रोशनी से लेकर अनेक कामों तक व टेलीफोन से लेकर कितने ही कामों तक बड़ी- बड़ी फैक्ट्रियाँ चलाने तक आदमी के काम बिजली ही आयी व इसने मानव जीवन को एक क्रान्ति ला दी । ताप की एक तीसरी और शक्ति मनुष्य के हाथ में आयी। तीसरे ताप का नाम क्या है, “एटम” । “एटम” की, अणु की शक्ति आदमी के हाथ न आयी होती तो अब तक इतनी लड़ाइयाँ लड़ी गयीं होतीं कि दुनिया से तीन चौथाई आदमी खत्म हो गए होते। फर्स्ट वर्ल्ड वार हुआ, सेकेण्ड वर्ल्ड वार हुआ लेकिन उसके बाद माहौल में गरमी इतनी अधिक बढ़ी-चढ़ी थी स्वार्थ इतने बढ़े हुए थे कि अगर ये एटॉमिक हथियार हाथ में न आये होते तो आज तक न जाने कितनी लड़ाइयाँ हो चुकी होती और हर जगह न जाने क्या-क्या मुसीबतें आ गयी होतीं । ताप ने, ‘एटम’ की शक्ति ने रोक दिया मनुष्य को कि लड़ना मत। जो कोई भी लड़ेगा-मारा जाएगा। छोटे मोटे हमले आप लोग कर सकते हैं पर बड़ा युद्ध तो हमला करने वाले को भी तहस नहस कर देगा। बड़ी तादाद में आपने कदम बढ़ाए तो यह एटॉमिक एनर्जी आपको खत्म करके रख देगी।

ताप की इन तीन शक्तियों ने मनुष्य के हाथों में साधन दिए, उसकी भौतिक उन्नति कर उसे न जाने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया लेकिन एक शक्ति ऐसी है ताप की जो पहले से मौजूद थी व जिसने आदमी का कायाकल्प किया है। वह है ज्ञान की शक्ति । एक ज्ञान वह है जो शिक्षा के रूप में, उसकी भौतिक शक्ति के रूप में, हमारे समक्ष है। जिससे हम डॉक्टर बन जाते हैं, मास्टर, वकील बन जाते हैं, शिल्पी बन जाते हैं, कलाकार बन जाते हैं । हथियार, पैसे की तरह यह भी भौतिक शक्ति है। आदमी की खुशहाली के काम आती है लेकिन यह वह नहीं है जिससे आदमी-आदमी बनता है जीवन को ऊँचा उठाना सीखता है। वह शक्ति जो आदमी को खुशी देती है शांति देती है, उसके जीवन में संवेदना का रस पैदा करती है, मानव-मानव के मध्य सहयोग की भाषा सिखाती है, परस्पर स्नेह और दुलार पैदा करती है, सहकारिता की आधार शक्ति है वह विद्या है। यह थी तो पहले से लेकिन आदमी के हाथ में जब से आयी, आदमी न जाने क्या से क्या होता चला गया। जानवर से आगे बढ़कर सही अर्थों में मानव बन गया। यह ज्ञान की शक्ति, विद्या की शक्ति, अवतरण कब धरती पर हुआ? यह हम देखते हैं तो पाते हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में आकाशवाणी हुई थी व ब्रह्माजी को यह कहा गया था कि आपको तप से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तब उनके हाथ गायत्री मंत्र आया । ब्रह्माजी ने गायत्री मंत्र के चार चरणों को चार व्याख्यानों में विभाजित कर उसको प्रतिपादित करना आरंभ कर दिया। इन चार व्याख्यानों का नाम पड़ गया चार वेद। कब की बात है यह? यह बड़ी पुरानी बात है। वेदों की उस सभ्यता व संस्कृति का आगमन क्या हुआ, आदमी-आदमी नहीं रह गया, देवता बन गया। इस देश में रहने वाले सभी जीवधारी जिनका नर तन था, तैंतीस कोटि देवताओं में गिने जाने लगे।

आदमी नहीं। आदमी तो मामूली होते हैं, पेट भरते हैं और जिन्दा रहते हैं किसी तरह देवता वे होते हैं जो खुश रखा करते हैं। खीज़ उनके पास कभी आ नहीं सकती क्योंकि शैतान उनके पास नहीं आता। हैरानी, बीमारी, खीज़, चिन्ता, दुख, क्लेश ये सब पाप की-शैतान की देन है। जब आदमी देवता बन गया तो ये सब संताप चले गये ।देवता दिव्य होता है, खूबसूरत होता है, जवान होता है, हर आदमी की जरूरतें पूरी करता है। देवता बड़ा जबर्दस्त होता है और हर भारतीय नागरिक किसी जमाने में देवता था। कब से था? जब से वह ताप हाथ में आया, जिसे मैं ज्ञान का ताप कहता हूँ, विद्या का ताप कहता हूँ और दूसरे शब्दों में गायत्री का ताप कहता हूँ । इसके आते ही आदमी देवता बन गया, निहाल हो गया। उस समय धन दौलत तो कम थी पर प्रसन्नता-संतोष ज्यादा था और वही सबसे बड़ी सम्पत्ति है। तब अपेक्षाकृत गरीबी थी लेकिन गरीब होते हुए भी मनुष्य कितना सुखी , कितना मोहब्बत-दुलार सहयोग-खुशी से भरा था मैं आपको क्या बताऊँ मित्रों! सौ वर्ष तक जिन्दा रहते थे लोग क्योंकि मजेदार जिन्दगी थी। आज हमारी आत्मा इंकार करती है, कहती है हम जिन्दा नहीं रहना चाहते । आत्मा जब कभी नाखुश होती है तो शरीर कहता है कि ठीक है आप जाइए जैसी आपकी मरजी हो। आत्मा चली जाती है, जल्दी मर जाती है, शरीर किसी तरह जिन्दा रहता है। आत्मा विहीन जिन्दगी-यह बड़ी घिनौनी जिन्दगी है जो जी रहा है, आज का आदमी । इसमें भीतर सब कुछ जलता रहता है- रोम रोम, नस-नस अंतःकरण जलते रहते हैं। कोई भी ठण्डी चीज इस आग को मिटा नहीं सकती। मित्रों पुराने जमाने की मैं याद करता हूँ तो यह बात सही मालूम पड़ती है “स्वर्गादपि गरीयसी” स्वर्ग से श्रेष्ठ यह भूमि किसी जमाने में रही होगी, मैं यह विश्वास करता हूँ। न बस थी न टेलीफोन थे किन्तु फिर भी स्वर्गादपि गरीयसी थी । स्वर्ग किसे कहते हैं जहाँ आदमी रहते हैं और आदमी-आदमी के बीच वे रिश्ते होते हैं जिन्हें देखकर आदमी की हिम्मत बँध जाती है धीरज बँध जाता है। मेहमान को “अतिथि देवोभव” कहकर घर में सम्मान सहित बिठाया जाता था। आज तो यदि अतिथि आ जाय तो आप सावधान रहना । उसे ठहरने मत देना । सारी आफत मचा देगा वह। होशियार रहना उससे कहना “भाई साहब! आप होटल में ठहरिए “। अतिथि आपके घर ठहरने लगा तो आपकी बहन बेटियों का कोई ठिकाना नहीं। मित्रों ! आज जीवन नरक बन गया है क्योंकि सामान बहुत है, पैसा बहुत पर उसका उपयोग करने की अकल देनी वाली विद्या कहीं नहीं। वह विद्या, वह ज्ञान जिससे खुशहाली आती थी । जिसे संक्षेप में गायत्री मंत्र कहते हैं।

ब्रह्माजी को दिया हुआ यह हथियार गायत्री मंत्र जिस दिन से मनुष्य जाति को मिला, उसी समय से उसे ज्ञान, चैन, संतोष नैतिकता, प्रेम, सहयोग मिलने का सिलसिला चालू हो गया। यह इनसान की जिन्दगी में सौभाग्य का दिन था। उसी ने आपको-हमको सबको एक धागे से जोड़ रखा है। हमको सबको एक धागे में पिरो दिया। ब्रह्माजी ने वेदों के ज्ञान रूप में ऋषियों को यह विभूति दी है और वही गायत्री अब युगशक्ति बनने जा रही है। इसी गायत्री का एक छोटा वाला रूप है “प्रतीक पूजा”। क्या होती है प्रतीक पूजा? बेटा। प्रतीक उसे कहते हैं जिसमें किसी चीज का छोटा सा रूप सामने रख देते हैं, यह प्रतीक कहलाता है। प्रतीक नमूने को कहते हैं। जैसे आप हमारा फोटो ले जायँ। फोटो को आप माला चढ़ा दें । क्या है यह? यह प्रतीक पूजन है। वस्तुतः कागज में कुछ भी नहीं है। कागज के पीछे जो व्यक्ति है, उसमें आपकी गहन श्रद्धा है- गहरी जान पहचान है। उसके प्रति आप अपनी मोहब्बत को, श्रद्धा को कायम रखने के लिए प्रतीक पूजन करते हैं। गायत्री की प्रतीक पूजा वह है जो हमने आपको आज से तीस साल पहले सिखायी थी । हमने यह बताया था कि कैसे पंचपात्र हाथ में लेकर आचमन करना चाहिए चोटी गाँठ लगानी चाहिए। चौकी पर एक तस्वीर रखकर धूप, दीप , रोली , अक्षत चढ़ाना चाहिए। माला जपनी चाहिए। यह क्या यह प्रतीक था। यह आपने क्यों कराया प्रतीक इसलिए कराया कि आपको उसकी बारीकियाँ, गहराइयाँ समझने का मौका मिले। हमें जानकारी बनी रहे कि गायत्री मंत्र क्या है कितना महान है? घड़ी हमें अपने कर्तव्यों को भान कराने के लिए घण्टे बजाता है इसी तरह हम आप से कहते थे कि रोजाना पूजन करना चाहिए आपकी भौतिक व आध्यात्मिक प्रगति इस पर टिकी हुई है इसीलिए हमने आपसे नियमित गायत्री करने को कहा । किन्तु यदि आपने गायत्री मंत्र की क्षमताएँ व उसके भीतर छिपे रहस्य नहीं जाने तो क्या कहेंगे- मैं उसे नित्यकर्म कहूँगा। नित्यकर्म उन बहुत कामों को कहते हैं जो रोज करना जरूरी है। यदि आप रोज नहाएँ तो क्या बाल बच्चे हो जायेंगे, रुपया मिल जायेगा । नहीं बेटे। हम वायदा नहीं कर सकते । आपकी मर्जी है आप रोज नहाएँ चाहें न नहाएँ। नहीं नहाएँगे तो बीमार पड़ेंगे। पर नहाने से कोई पुण्य मिलेगा। यह भी जरूरी नहीं है। इसे नित्य कर्म कहते हैं। रोज मन पर छाने वाली धूल को गन्दगी को साफ करने के लिए गायत्री मंत्र के उस स्वरूप की जरूरत है, जिसे हम प्रतीक पूजा कहते हैं। वो काफी है और उसका महत्व फिर शुरू होता है। उसी की आज सबसे बड़ी जरूरत है। ऐसा साहस देने वाला है यह गायत्री का अगला वाला स्वरूप, जो आदमी को व्यक्तित्ववान बनाता है महापुरुष बनाता है, ज्ञानवान बनाता है, तपस्वी बनता है। गायत्री मंत्र जिसे हम याद करते हैं बार-बार कहते हैं हमें बताता है कि गय का त्राण करने वाली गायत्री । मनुष्य के जीवन में प्रवेश करती है, उसके अंदर प्राण भर देती है जीवट भर देती है। जीवट वह जो अंदर से कुछ कर गुजरने की उमंग पैदा करती है। गायत्री व्यक्तिगत जीवन को समुन्नत बनाती है खुशहाल बनाती है, समृद्ध बनाती है, दीर्घजीवी तथा मजबूत बनाती है। ऐसी गायत्री सिखाती है कि दौलतमंद तो बनो पर अंदर की हिम्मत भी इकट्ठी करो तभी दौलत का सही उपयोग कर सकोगे। पैसा कभी भी ताकत नहीं बन सकता। ताकत कौन सी? वह जो आदमी का व्यक्तित्व है, उसके भीतर का दृष्टिकोण है वह ताकत । आज जो आदमी कमजोर होता चला जा रहा है ज्ञान के हिसाब से समृद्धि के हिसाब से, व्यक्तित्व के हिसाब से, तो एक ही चीज की जरूरत थी वह थी हमारे भीतर की प्राण शक्ति की। प्राणों का विस्तार करते हैं, आप से गायत्री का जप करने को कहते हैं।

गायत्री एक साइंस है। एटम की साइंस से भी बड़ी ताकत है। ऐसी शक्ति है जो सारी मनुष्य जाति ही नहीं, प्राणी मात्र ही नहीं सारे प्राणी मात्र ही नहीं सारे ब्रह्माण्ड से संबंध रखती है। ऐसी ताकत है जो आदमी के भीतर उमंगों के रूप में, आदर्शों के रूप में, श्रेष्ठताओं के रूप में आती है व जीवन का कायाकल्प करती चली जाती है। इसी गायत्री के अवतार की बात हम आप से कह रहे थे। कह रहे थे, युगशक्ति का अवतार होने जा रहा है। कैसे होगा? यह होगा छोटे-छोटे मनुष्यों की चेतना के विकास के रूप में। चेतना का विकास अगले दिनों होकर रहेगा। इनसान के अंदर का फिर देवता पैदा होगा, भगवान पैदा होगा। मानव में देवत्व आएगा और धरती पर स्वर्ग आएगा। हर व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में हिस्सा बँटाएगा।

इनसान अपने आप तक सीमित नहीं रह सकता अब। इनसान सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। पीड़ा और पतन में दो कसौटियाँ भगवान ने दी हैं इनसान की परख करने के लिए । व्यवहार की पीड़ा और बौद्धिक पतन मनुष्य का कम करने में हम क्या मदद कर सकते हैं? यह भगवान हमसे पूछता है। आप कर सकते हैं तो आप अच्छे इनसान हैं और खरे सोने के समान हैं। यही खुशहाली लाने वाला मानव मात्र को एक बनाने वाला तीसरा चरण है जिसके ऊपर नवयुग की आधार शिला रखी जाने वाली है।

मित्रों । इस समय मनुष्य जाति के भाग्य का उदय होने वाला है। इनसान फिर सिर उठाकर चलेगा। इनसान का गर्दन झुकाकर चलना मुझे नापसन्द है। आदमी की कमर झुकी हो तो कोई बात नहीं किन्तु सिर झुका हुआ नहीं रहना चाहिए। आग की लौ की तरह से, अग्नि देव की लपटों के तरीके से, आदमी को सिर उठाकर ऊँचा करके चलना चाहिए । यही गायत्री मंत्र का चमत्कार होगा-युग शक्ति का चमत्कार होगा कि कमजोर से आदमी में इतनी हिम्मत, इतनी ताकत आ जाएगी कि वह सिर उठाकर चलना सीख लेगा। युगशक्ति का अवतार अर्थात् एक ऐसी जीवट का पैदा होना जिसमें सिद्धान्तों को और आदर्शों के परिपालन की बहादुरी आदमी में पैदा हो सके। दूसरा चमत्कार होने जा रहा है धरती पर स्वर्ग के अवतरण का । धरती स्वर्ग बनने जा रही है। जिसमें आदमी-आदमी से प्यार करना सीखेगा। प्यार के साथ सहयोग भी करेगा। सहयोग और प्यार जब साथ-साथ रहें तो मैं समझता हूँ कि धरती पर स्वर्ग आ गया खुशहाली आ गयी। गरीबी रहेगी तो रहे, कोई हर्ज की बात नहीं है किन्तु कृपणता नहीं रहना चाहिए। संतों में से हर एक के पास गरीबी थी, पर वे कृपण नहीं थे। गरीबी से आदमी दुखी नहीं होता। दुखी कृपणता से होता है। कृपण कौन? तंग दिल, प्यार-मोहब्बत न बाँटकर संकीर्णता फैलाने वाला दरिद्र व्यक्ति जो बाहर से न सही, चिंतन की दृष्टि से दरिद्र है।

आप प्यार बाँटेंगे तो बदले में प्यार मिलेगा। आप बच्चों

को प्यार नहीं दे सके इसीलिए आप बच्चों के प्यार से महरुम हैं, आपने बाप को प्यार दिया नहीं इसलिए आप उनके आशीर्वाद से महरुम रह गए। आपने समाज के कर्तव्यों का पालन किया नहीं इसलिए आपकी समाज ने उपेक्षा की, कोई सहायता नहीं की। प्यार से ही सहयोग मिलता है, सम्मान मिलता है। ऐसी धरती की कल्पना, मित्रों मैं करता हूँ जिसमें सब एक दूसरे के साथ प्यार व सहकार करेंगे। कब? जब जन-जन तक गायत्री का संदेश पहुँचेगा तब ! लेकिन गायत्री एकाकी नहीं है। गायत्री ज्ञान पक्ष है और यज्ञ उसका कर्म पक्ष है। ज्ञान एकाकी नहीं हो सकता। एकाकी ज्ञान में कोई दम नहीं है। एकाकी ज्ञान पण्डितों के पास होता है, फिलॉसफरों के पास होता है । ज्ञान और कर्म का समन्वय होना चाहिए। इसलिए आपके समक्ष इस साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष में हमने एक कार्यक्रम सुपुर्द किया है कि इस तत्त्वज्ञान को घर-घर पहुँचाने का जिम्मा उठाइए। हम आपको बदले में इनाम देंगे । दौड़ लगा के दिखाइये, इनाम पाइए । नहीं साहब, वैसे ही दे दीजिए । नहीं मित्रों ! भगवान इस युग में जितनी भी देवात्माएँ हैं, उन्हें कुछ उपहार देना चाहता है। इतिहास की भूमिका में आपके लिए यह एक सुनहरा मौका है। इसके बाद युगों-युगों तक ऐसा मौका नहीं आने वाला। गाँधी फिल्म आयी थी उसमें नमक सत्याग्रह वालों को जाते हुए हम देखते रहे । यह महादेव भाई जा रहे हैं, यह प्यारे लाल जा रहे हैं, यह हरिभाऊ उपाध्याय जा रहे हैं । हम नाबालिग थे अतः नहीं जा पाए। हम पछताते रह गए। आए हुए समय को चूकने वाला पछताता ही रहता है। अब आप जेल जाएँगे तो स्वतंत्रता सेनानी की न पेंशन मिलेगी न मिनिस्टर का पद। वो जो समय आया था न वह चूक गए। अब कुछ नहीं हो सकता।

मैंने आपको इस समय इसलिए बुलाया कि यह चूकने

का समय नहीं है। खाने-कमाने के लिए पूरी जिन्दगी आपकी है। सारी जिन्दगी थी व जो आपकी बची हुई है वह भी उसी में लगने वाली है। गायत्री माता की कृपा आपके भीतर नहीं होने वाली और कभी। यह एक महत्वपूर्ण समय है-युगपरिवर्तन का समय है। इसमें आपका सहयोग बन सके तो उन कार्यों को करिए जो भगवान ने हमारे गुरुदेव के सुपुर्द किए और हमारे गुरुदेव ने हमें सुपुर्द किए। हम आपके सुपुर्द करना चाहते हैं ताकि सारे संसार में गायत्री मंत्र का विस्तार हो। यह मात्र हिन्दुओं तक सीमित न रहे। यह ब्राह्मणों का मंत्र मात्र बनकर न रह जाए बल्कि विश्व मानव का मंत्र बने। कभी यह गायत्री वेदमाता थी। कब थी जब वह ज्ञान के रूप में आग के रूप में ताप के रूप में अवतरित हुई थी। अब क्या हो गयीं? अब यह नाम बदल गया। अब वह वेदमाता हो गयीं -देवत्व जिनके रोम रोम में उतर जाए उनकी माता और अब बनने जा रही हैं विश्वमाता। विश्वमाता से क्या मतलब है सारा विश्व एक नये आधार पर बनने जा रहा है। एक नयी संस्कृति आ रही है। एक नया सार्वभौम धर्म आ रहा है । सारी दुनिया इस एक ही केन्द्र के ऊपर इकट्ठी होने जा रही है, बँधने जा रहे इस विश्व के निर्माण में आपकी भागीदारी हो, इसके लिए आपको मैं इस महापुरश्चरण में, धर्मानुष्ठान में भागीदारी करने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

मैंने उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे हैं और सबको दिखाए हैं। मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो सतत् डराते रहते हैं । सूरज की तबाही कभी नहीं आएगी। आएगा तो अब उज्ज्वल भविष्य धरती पर स्वर्ग व आधार बनेगा मानव में देवत्व । कैसे? गायत्री के तत्त्वज्ञान से, भारतीय संस्कृति के अनुगमन से आप समय रहते उससे जुड़ सकें, औरों को जोड़ सकें, इससे बड़ी समझदारी और क्या हो सकती है?

मेरी बात समाप्त। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।


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