अपने कर्मचारियों की सुस्ती पर मालिक बड़ा परेशान था। सभी आलसी। कारोबार बहुत बड़ा था।
बन्द भी नहीं किया जा सकता था। श्रम विशेषज्ञ, मानव संसाधन पर काम करने वाले व्यवहार वैज्ञानिक बुलवाए गये व पूछा गया कि आप ही रास्ता बताइए। उनकी राय एक स्वर से यही थी कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। उस महा आलसी को इनमें से निकालकर अलग कर दिया जाय जो सब में प्रमाद की दीर्घसूत्रता का घुन लगा रहा है।
विशेषज्ञों ने गोष्ठी ली। सबको संबोधित करके कहा कि “तुम में जो सबसे बड़ा आलसी हो, निकलकर बाहर आ जाए। उसे नौकरी से बाहर नहीं करेंगे, हलका काम दे देंगे। वेतन वही रहेगा। सारा वातावरण खराब न हो इसलिए तुम में से जो काम से सबसे ज्यादा जी चुराता हो, वह अलग होकर एक तरफ खड़ा हो जाए।” कोई नहीं आया। सब यथावत बैठे रहे। सब बड़े परेशान हुए। मालिक से बात करके शर्तें उदार कर दी गया व कहा गया कि जो स्वेच्छा से बाहर आएगा उसे एक तरक्की मिल जायगी। तरक्की व हलके काम का आश्वासन सुनकर एक को छोड़कर सब बाहर निकल आए। उस एक से पूछा गया कि “क्यों भाई तुम्हें शर्तें मंजूर नहीं है क्या?” उसका जवाब था-कौन उठकर खड़ा हो। हम तो यहीं ठीक है।” दो कदम चलने के लिए भी जो तैयार नहीं है ऐसी महान विभूतियाँ अपने समाज में अनगिनत है।