साँप से न तो भयभीत हों, न उसके जैसा बनें

July 1987

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संसार के जल-थल में, कितने साँप रहते हैं? यह कहना तो कठिन है। निश्चय ही वे मनुष्यों से कहीं अधिक होंगे। खोजकर्त्ताओं ने उसकी हजार प्रजातियों का विवरण तैयार किया है। इनमें से मात्र 400 प्रजातियाँ जहरीली पाई गईं। अर्थात छः पीछे पाँच निर्दोष और एक को विषैला कहा जा सकता है। विषैले सर्पों का काम मनुष्यों को काटना और मार डालना ही नहीं है। वे भी अन्य कीड़े-मकोड़े की तरह डरपोक होते हैं और आदमी की आहट पाकर बचने-भागने और छिपने का प्रयत्न करते हैं।

साँप का क्रोधी स्वभाव तो है, पर वह उसे उतारता तभी है, जब कोई उसे छेड़ता-टोकता है अथवा उसे यह अनुभव हो कि मुझ पर आक्रमण होने वाला है, तब वह अपने बचाव के लिए आक्रमण कर बैठता है। उसके दाँत पोले होते हैं उनकी जड़ में एक थैली होती हैं, जिसमें जहर धीरे-धीरे जमा होता रहता है। जब वह अपने पोले दाँत किसी में चुभोता है तो विष कोथरी पर दबाव पड़ता है और दाँतों के रास्ते जहर उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है, जिसे काटा गया है। यदि जहर ऊँचे दर्जे का है तो मौत जल्दी हो जाती है। कम शक्ति का विष हो तो अफीम का नशा चढ़ने जैसी खुमारी प्रतीत होती है। ऐसे रोगी पर विष का प्रभाव उपचार से अथवा शरीर की जीवनीशक्ति द्वारा निरस्त हो जाता है। अति जहरीले साँप अफ्रीका के जंगलों में पाए जाते हैं। वह फनधर कहलाता है। जब सिर ऊँचा करके लहराता है, तो उसके फन पर गाय के खुर जैसा सफेद गोलाकार निशान उभर आता है। इसके नीचे सर्पमणि पाई जाने की किंवदंती है। वस्तुतः जंतु विज्ञान के अनुसार साँप के सिर, फन, मुँह या किसी हिस्से में कोई मणि नहीं होती।

सर्प की शक्ल देखते ही लोग बौखला जाते हैं और उसे मारने दौड़ते हैं, उसे शत्रु समझा जाता है, पर साथ ही मित्र भी है। सर्प पालने के संसार में अनेकों बड़े-बड़े फार्म हैं। उनमें उनका विष दुहा जाता है। जो सोने से भी अधिक मोल का बिकता है। उससे दमा, हैजा आदि की औषधियाँ बनाई जाती हैं। बुद्धिमत्तापूर्वक पाला जाए तो शत्रु प्रतीत होने वाले से भीं, मित्र जैसा लाभ उठाया जा सकता है। साँप के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ हैं। वह छेड़ने वाले से बदला लेकर छोड़ता है। खजाने की रखवाली करता है। बीन की धुन मस्त होकर सुनता है। उसे सपने में देखा जाए तो मृत्यु का संदेश समझा जाता है। इन सभी बातों में कोई सचाई नहीं है। सर्प बहरा होता है। बीन हिलाने पर, वह भी उसे दुसरे सर्प की तरह समझता है और उसके आक्रमण से बचने के लिए हिलने की हरकत पर दाँव-पेंच लड़ाता है। खजाना पहचानने की बुद्धि उसमें कहाँ है? सीलन भरे अँधेरे स्थानों में कीड़े-मकोड़े अधिक होते हैं। उनसे अपना पेट भरने के लिए ऐसे स्थानों में जा पहुँचता है। कभी संयोगवश वहाँ किसी को खजाना मिल गया होगा और तभी से, यह किंवदंती चल पड़ी होगी कि सर्प खजाने की रखवाली करता है।

छोटे कीड़ों को खाना और पचाना उसने लिए सरल है। इसलिए वह जिन खेतों, घरों, झोपड़ियों में जा विराजता है, वहाँ उसकी गंध पाते ही हानिकारक कीड़े भाग खड़े होते हैं या उसकी खुराक बन जाते हैं। चूहे आदि बड़े जंतुओं को भी वह खाकर हमारी हानि बचाता रहता है। इतना लाभ तो प्रत्यक्ष ही है कि उसे देखने या गंध पाने पर कीड़े उसके इर्द-गिर्द से पलायन कर जाते हैं।

साँप के मुँह में, कदाचित पूँछ में भी जहर पाया जाता है। इसे काट-पीककर कहीं-कहीं लोग मध्य भाग की तरकारी बनाते व उसे खाते हैं। जहर मनुष्य की जीभ में होता है। कटुभाषण, अपमान, निंदा, चुगली आदि की आदत पड़ने पर मित्रों की संख्या घटती और शत्रुओं की बढ़ती जाती है। तब उससे वे साँप की तरह बचते हैं या उसका सिर कुचलते हैं।


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