वह स्वर्ण रेखा नदी की रेत छान रहा था। ताकि उसमें से सोना मिल जाए। संयोग की बात उस दिन उसे एक अशर्फी मिल गई। दारिद्र दूर हो गया।
यह दृश्य देखता हुआ जागीरदार उधर से गुजरा था। बहुत दिन बाद वापस लौटा तो फिर व्यक्ति को रेत छानते देखा, पूछा— "पिछली बार तुम्हें अशर्फी मिली थी। काम चल गया होगा। अब फिर रेत छानने की आवश्यकता क्यों पड़ी?"
व्यक्ति ने हँसते हुए कहा— "भविष्य में अधिक सोना मिलने की आशा छोड़कर निठाल क्यों बैठें?"