एक दरिद्र पंडित राज-दरबार में कुछ प्राप्त करने की इच्छा से पहुँचा। बोला— "मैं आपका अतिथि हूँ। मेरे उचित आतिथ्य की व्यवस्था कीजिए"
राजा चकित रह गया। "ऐसे फटेहाल को निमंत्रित किसने किया? यह अपरिचित किस प्रकार सत्कार के योग्य अतिथि बना?"
राजा ने परिचय पूछा और आगमन हेतु तथा आतिथ्य का दबाव देने का कारण बताने के लिए कहा पंडित मुस्करा दिया, बोला— "भूलते क्यों हैं। मैं आपका मौसेरा भाई हूँ।"
राजा का आश्चर्य और भी बढ़ा। कौन-सी मौसी का पुत्र है, यह व्यक्ति सो उनने उसकी माता का नाम और स्थान बताने के लिए कहा।
पंडित ने एक संस्कृत श्लोक सुनाया — आपद मम माता च, तव माता च सम्पदा। अपापद सम्पदे भ्गिन्यौ, तेनाहं तत्र बान्धवा ।
मेरी माता का नाम आपदा और आपकी माता का नाम सपदा। यह दोनों सगी बहने है। इसलिए हम दोनों मौसेरे भाई हो गए न?
धूप-छाव की तरह आपदा-संपदा के नियतिचक्र का राजा को स्मरण हो आया और आगंतुक की मौसेरा भाई जैसे सत्कार की व्यवस्था कर दी।