मंत्री ने राजा से कहा—" यदि अवसर मिले, कोई चालाकी से चूकता नहीं। अवसर मिले तो ही धूर्तता की रोक-थाम हो सकती है।"
राजा ने कहा— इसका अर्थ यह हुआ कि संसार में भलमनसाहत है ही नहीं; मंत्री ने कहा— "है तो, पर उसे जीवित या सुरक्षित तभी रखा जा सकता है, जब रोक-थान का समुचित प्रबंध हो। छूट मिले तो कदाचित ही कोई बेईमानी से चूके।"
बात राजा के गले न उतरी, मंत्री ने ताड़ लिया और अपनी बात का प्रमाण देने के लिए उपाय किया।
प्रजा में घोषणा कराई गई कि अभी राज-काज के लिए हजार मन दूध की आवश्यकता पड़ेगी। सभी प्रजाजन रात्रि के समय खुले पार्क में रखे हुए कड़ाहों में, अपने-अपने हिस्से का एक एक लोटा दूध डाल जाय।
रात्रि के समय पार्क में बड़े-बड़े कड़ाहे रखा दिए गए। चौकीदार का कोई प्रबंध नहीं किया गया। स्थिति का पता कानो-कान सभी को लग गया। रात्रि का समय और चौकीदार का न होना, इन दो कारणों का लाभ उठाकर प्रजाजनों ने दूध के स्थान पर पानी डालना आरंभ कर दिया। इतने लोटा दूध होगा तो हमारे एक लोटे पानी का किसी को पता भी न चलेगा। सभी ने एक ही तरह सोचा और सभी ने पानी डाला।
दूसरे दिन मंत्री राजा को लेकर दूध के कड़ाह दिखाने ले गया। सभी पानी से भरे थे। दूध का नाम तक न था। राजा ने समझा कि ईमानदारी के जीवित रखने के लिए चौकीदारी की कितनी आवश्यकता है?