सद्वाक्य

July 1987

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मन को महत्व न दो। वह उछल-कूद करते रहने वाले उस बंदर की तरह है, जिसे एक जगह बैठने में चैन नहीं। उसका आश्रय लेने वाला सूखे पत्ते की तरह हवा के साथ उड़ता फिरता है।


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