“डाॅ. नारमन बिन्सेंट पीले” अमेरिका के गिरजों के परामर्शदाता मंत्री थे और मनोवैज्ञानिक चिकित्सक भी। न्यूजर्सी के गिरजाघर में एक दिन उनका प्रवचन था। भाषण समाप्तकर वह बाहर आए तो एक स्त्री उनके पास आई और याचक स्वर में बोली— “मैं जब भी किसी गिरजा में जाती हूँ, मेरी बाँहों में बड़े जोर की खुजली उठती है। आश्चर्य है कि गिरजाघर से वापस होते ही, खुजली कम हो जाती है।
डाँ. पीले ने पूछा— “आप किस कुर्सी पर बैठी थीं। संभव है उसमें किसी ने कोई ऐसी वस्तु लगा दी हो जिससे खुजली भड़कती हो।” इस पर उस महिला ने बताया कि “ऐसा इसी गिरजाघर में नहीं हुआ। जब भी किसी गिरजाघर में जाती हूँ तो खुजली के कारण बुरी तरह परेशान हो उठती हूँ।”
डाॅ. पीले ने बहुत विचार करने के बाद उन्हें एक दिन घर मिलने को कहा। घर पर पहुँचने पर डाॅक्टर ने उससे बहुत स्नेह के साथ पूछा— “आपके जीवन में कहीं कोई त्रुटि, कोई पाप जैसा कर्म हो रहा हो, जिसे आप भयवश किसी से प्रकट न कर रही हों, ऐसा कुछ हो, मुझे बताइए।”
वह बेचारी पहले तो कुछ झेंपी, पर बाद में बताया कि “वह जिस फर्म में काम करती है, वहाँ से कुछ पैसा चुरा लिया करती है।” चोरी उसका एक स्वभाव बन गई। वे जब भी किसी गिरजाघर जाती इस पाप का उद्वेग मस्तिष्क में छा जाता और धीरे-धीरे खुजली उठने लगती। डॉक्टर ने उन्हें समझाया—" बेटी! तुम अपने स्वामी के पास जाकर अपनी भूल स्वीकार कर लो। फिर भविष्य में ऐसा न करना तो तुम्हें यह कभी नहीं होगा।"
महिला उद्विग्न हो उठी। बोली— “ऐसा करने से मुझे नौकरी से निकाल दिया जाएगा और लोगों की दृष्टि में उसका सम्मान खो जाएगा।” पर डाॅक्टर के समझाने पर वे वैसा करने के लिए राजी हो गई। उन्होंने अपने फर्म मैनेजर से जाकर सारी घटना ज्यों-की-त्यों कह दी। स्वामी पहले तो बहुत गुस्सा हुआ पर महिला की निष्कलुषता से वह प्रभावित हुए बिना भी न रह सका। उसने महिला को फिर वैसा न करने की चेतावनी देकर क्षमा कर दिया और नौकरी से नहीं हटाया। पर आश्चर्यजनक बात यह हुई कि उस दिन के बाद वे जिस किसी भी गिरजा में गई, कहीं भी उन्हें खुजली नहीं हुई।