साहस और भय की प्रतिक्रिया

July 1987

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बाजीगरी का व्यवसाय करते और अपने चमत्कारी करतबों से असंख्यों का मनमोहने वाले फ्रांसीसी ऐमिल ग्रेविए का, एक बार मन आया कि उदरपूर्णा का साधन जुटाने वाले साधनों को ही आजीवन नहीं पकड़ना चाहिए; वरन कुछ ऐसा भी करना चाहिए, जिससे जनसाधारण पर अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व की छाप छोड़ी जा सके।

बहुत दिनों विचार करने के बाद उसने सोचा कि अमेरिका के नियाग्रा जल-प्रपात के ऊपर रस्सी बाँधकर उसके ऊपर चलकर दिखा दिया जाए और लोगों की दृष्टि से असंभव समझे जाने वाले इस कार्य को संभव कर दिखाया जाय। इसके लिए उसने अपने घर के समीप ही वैसे अभ्यास आरंभ कर दिए। प्रायः एक वर्ष उसमें लग गया, पर इतने भर से उसे विश्वास हो गया कि वह संसार के सबसे बड़े नियाग्रा जल-प्रपात के ऊपर बिना किसी सहारे के चलकर दिखा सकता है। उसने इस अनोखेपन का विज्ञापन शुरू किया तो पढ़ने वालों ने किसी उन्मादी का मखौल या आत्महत्या का प्रयास ही समझा। तो भी यह सोचकर कि ऐसा अचरज आँखों देखने का फिर कभी अवसर न मिले, देखने वाले लाखों की संख्या में जमा हो गए।

प्रपात के दोनों छोरों पर मजबूत खंभे गाड़े गए और उनके बीच एक साधारण मोटाई का रस्सा कस दिया गया। प्रपात के किनारे पर पहुँचकर उसने धीरे-धीरे रस्से पर चलना आरंभ कर दिया। संतुलन ऐसा सही बना रहा कि न तो रस्सा लहराया और न यात्री लड़खड़ाया। मध्यम चाल से चलते हुए उसने, वह रास्ता पार कर लिया। दर्शक इसे असंभव का संभव होना देखकर हर्षोंमत्त हो गए।

ऐमिल ग्रेविए ने उसी समय दूसरे दिन इससे भी बड़े जोखिम भरे खेल दिखाने की घोषणा कर दी। आज कल की अपेक्षा भी दूनी संख्या में लोग थे। तमाशा आरंभ हुआ। वह दो पायों की एक कुर्सी भी साथ लेता आया, जहाँ चाहता वहीं रस्से पर उसे टिका देता और सरकस के कलाकार की तरह कुर्सी पर चलता। उलटा चलकर दिखाता और नाचता-फुदकता भी पर नियंत्रण कभी नहीं खोया। यह प्रदर्शन कल के साधारण से कई गुना खतरनाक था। जब वह रस्से से नीचे उतरा तो लोगों ने उसे नोटों की मालाओं से लाद दिया। प्रचुर धन उपहार में मिला। यहाँ उसने तीसरे प्रदर्शन की घोषणा की। एक आदमी पीठ पर बिठाकर ले चलेगा। जो उसकी पीठ पर बैठेगा, मिलने वाली उपहार-राशि में से आधी वह उसे देगा। उस विराट भीड़ में से एक ही आदमी निकला— ब्लाँदा। उसने पीठ पर बैठना स्वीकार कर लिया। दोनों चल पड़े, पीठ पर चढ़े व्यक्ति ने अभी आधी भी दूरी पार न की थी कि उसको प्रपात की भयंकरता और रस्सी के अविश्वास का भय लगा। वह घिघियाने लगा। पीठ पर से उतरने की जिदकर जान बचाने की प्रार्थना करने लगा। इस नई मुसीबत से बाजीगर का भी धैर्य टूटने लगा। ऐसी असंतुलन की जोखिमभरी हरकत से दोनों के ही नीचे गिरने का डर था। शारीरिक व मानसिक संतुलन बनाए रखकर उसने सवार की आँखों पर पट्टी बाँधी। उसे अपनी छाती के साथ कसकर बाँध किसी प्रकार ढाढ़स दिलाते हुए, दूसरे किनारे तक वे दोनों पहुँच गए।

इस प्रदर्शन से उसकी ख्याति भी बढ़ी, धन भी मिला। वायदे के अनुसार सवार ब्लाँदा को उसका हिस्सा दे दिया गया, किंतु इस अवधि में जो भय उसके मन-मस्तिष्क पर छाया रहा, उसने ऐसी दहशत ब्लाँदा के मन में बिठा दी कि वह 'डिप्रेशन' व भय की स्थिति से ग्रस्त हो अस्पताल में भरती हो गया। सारा जीवन उसका अस्पताल में ही बीता।

लोग इन दोनों घटनाओं के संबंध में तरह-तरह की चर्चा करतें रहें। ऐमिल ग्रेविए ने उनका समाधान करते हुए कहा कि “यह मनोबल और संतुलन की सफलता थी”, जो पागल हुआ, उसकी मनःस्थिति एवं ऐमिल की जीवट व साहसिकता की समीक्षा करने वाले मनःशक्ति की दो भिन्न प्रकार की परिणतियाँ देखकर आश्चर्यचकित थे।


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