बालक नरेंद्र को अपने बचपन में एक खेल बड़ा ही प्रिय था। वह अपने साथियों को लेकर पास के बगीचे में चला जाया करता और घने पत्तों वाले आम के वृक्ष की एक मोटी डाली पर औंधा लटक जाता। साथी नीचे खड़े और ढंग के खेल खेला करते। बगीचे का माली डरा कि कहीं नरेंद्र उस पेड़ पर से गिर न जाए और हाथ-पाँव तोड़ न बैठे। सो उसने सब बच्चों को इकट्ठाकर कह— “देखो तुम उस पेड़ के नीचे मत खेला करो। वहाँ एक ब्रह्मराक्षस रहता है। कभी यह नाराज हो गया तो तुम लोगों को खा जाएगा।” ब्रह्मराक्षस क्या चीज होती है; बाबा !— "नरेंद्र ने जिज्ञासावश पूछा।"
“जो लोग किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं। असमय में मरने के कारण भूत बन जाते हैं। असमय में मृत्यु होने से उनकी आत्मा इधर-उधर भटकती रहती है और लोगों को परेशान किया करती है"।— माली ने कहा।
“ तो उस पेड़ के नीचे कौन मारा गया था और कब? किसने उसकी हत्या की थी।”
“यह तो मुझे नहीं पता, बेटा!”
“तो फिर तुम्हें कैसे पता है कि वहाँ ब्रह्मराक्षस रहता है”? “लोग कहते हैं।”
“लोग तो कहते हैं, परंतु तुमने कभी उसे देखा है? “नरेंद्र एक के बाद एक प्रश्न किए जा रहा था। इन प्रश्नों को सुनकर माली घबरा उठा; क्योंकि वह एक प्रश्न का जवाब नहीं दे पता था की दूसरा प्रश्न तैयार मिलता है। सो घबड़ा कर वह बोला— “बेटा नरेंद्र! तुमसे बातों में तो भगवान ही जीते। मैं तो केवल इतना ही कहे देता हूँ कि तुम उस पेड़ के नीचे मत खेला करो। कल से कुछ हो गया, ब्रह्मराक्षस ने तुम्हें कुछ कर दिया तो मैं नहीं जानता।”
“अच्छा बाबा! अच्छा! नहीं खेलेंगे।" इतना नाराज क्यों होते हो— नरेंद्र ने कहा और अपने साथियों के साथ वहाँ से भाग चला।
उसी दिन शाम को नरेंद्र घर से गायब हो गया। पहले तो परिवार वालों ने सोचा कि वहीं-कहीं खेल रहा होगा; परंतु जब बहुत देर हो गई तो चिंता हुई। बच्चा बड़ा शरारती है, कहीं कोई दुर्घटना न हो गई हो; यह भय सबको सताने लगा। खोज-बीन हुई। नरेंद्र को मित्रों के घर तलाश किया। बालसखा तो सब चुपचाप सो गये थे। उन्हें उठा-उठाकर पूछा गया कि नरेंद्र को कहीं देखा था। सभी ने एक ही उत्तर दिया कहीं नहीं। उन बालसखाओं के अभिभावक भी चिंतित हो उठे क्योंकि चंचल और शरारती होने के कारण नरेंद्र उन्हें भी अपने बच्चों के समान प्रिय था। इसलिए उनकी भी नींद जाती रही और वे भी खोजबीन में लग गए। नरेंद्र के स्वभाव से परिचित किसी वृद्ध व्यक्ति ने पूछा— “आज नरेंद्र को किसी ने कोई काम करने से रोका था?” नहीं तो। और रोकने से मानता भी कहाँ है?” नरेंद्र के किसी निकट संबंधी ने कहा।
लड़कों से पूछा गया तो उक्त घटना का पता चल गया और सभी उसी आम पेड़ तले जाकर रुके, जिसमें कि माली ब्रह्मराक्षस का निवास बताया और आवाज लगाई— नरेंद्र! ओ नरेंद्र!
“मैं यहाँ हूँ बापू— ऊपर से नरेंद्र की आवाज आई।
“नीचे उतरो बेटा। सब लोग कैसे परेशान हो रहे हैं।" और नरेंद्र नीचे उतरा तो पूछा कि, "वहाँ क्या कर रहे थे?" नरेंद्र ने बताया— “ब्रह्मराक्षस की प्रतीक्षा। मैं उससे मिलना चाहता हूँ।”
चलो भाई घर चलकर सोओ। यहाँ कोई राक्षस-वाक्षस नहीं रहता। माली ने तुमसे झूट बोला था और नरेंद्र को घर ले जाया गया। सत्य को जानने के लिए निर्भीक जिज्ञासु, यही नरेंद्र आगे चलकर स्वामी विवकानंद के नाम से विश्वविख्यात हुआ, जिसने सब धर्मो का तत्त्व निचोड़ एक वाक्य के रूप में कहा— 'निर्भीकता और साहसिकता'।