संत तुकाराम को किसी किसान ने एक गट्ठा गन्ने दिए। उनकी पत्नी इसके लिए कहती भी रहती थी। रास्ते में बच्चे मिलते गए और माँगने वालों को वे एक-एक देते भी गए। घर पहुँचने तक केवल एक गन्ना ही शेष था।
पत्नी के हाथ में एक गन्ना दिया तो उनने पूछा— "एक, बस! और कहाँ गए। तुकाराम ने सारा हाल सुना दिया।" पत्नी को बड़ा क्रोध आया, उसने पति की पीठ पर गन्ना इतने जोर से मारा कि उसके दो टुकड़े हो गए।
संत ने क्रोध नहीं किया। हँसते रहे और दो टुकड़ों में से एक अच्छा भाग पत्नी को देते हुए सराहना करने लगे— "ठीक बीच में से तोड़ देने की कला में तुम कितनी प्रवीण हो।पत्नी का आवेश ठंडा हो गया।"
संत की गरिमा उसने समझी और अपनी भूल के लिए क्षमा माँगी। तुकाराम ने इतना ही कहा— क्रोध से प्रेम की शक्ति अपार है।