वैभव की कमी नहीं, पर आवश्यकता जितना ही समेटें

September 1985

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पक्षियों को देखिए! पशुओं को देखिए! वे प्रातः से लेकर सांयकाल तक उतनी खुराक बीनते चलते हैं जितनी वे पचा सकते हैं। पृथ्वी पर बिखरे चारे दाने की कमी नहीं। सवेरे से शाम तक घाटा नहीं पड़ता। पर लेते उतना हैं जितना मुंह मांगता और पेट संभालता है। यही प्रसन्न रहने की नीति है।

जब उन्हें स्नान का मन होता है, तब इच्छित समय तक स्नान करते हैं। उतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं जिसमें उनका शरीर समा सके। कोई इतना बड़ा नहीं बनाता। जिसमें समूचे समुदाय को बिठाया सुलाया जाय।

पेड़ पर देखिए! हर पक्षी ने अपना छोटा घोंसला बनाया हुआ है। जानवर अपने रहने लायक छाया का प्रबंध करते हैं। वे जानते हैं कि सृष्टा के साम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं। जब जिसकी जितनी जरूरत है आसानी से मिल जाता है। फिर संग्रह की अनावश्यक जिम्मेदारी किस लिए उठाई जाय। आपस में लड़ने का झंझट क्यों मोल लिया जाय। हम इतना ही लें, जितनी तात्कालिक आवश्यकता है।

ऐसा करने से हम सुख शांतिपूर्वक रहेंगे भी और उन्हें भी रहने देंगे जो उसके हकदार हैं।


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