मरने के उपरान्त भी प्राणसत्ता का अस्तित्व

September 1985

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मनुष्य रक्त मांस का बना भौतिक शरीर मात्र ही नहीं, उसका एक अन्य शरीर भी है। मरणोपरान्त वह उसी शरीर में निवास करता है। यद्यपि यह शरीर सूक्ष्म और अदृश्य है किन्तु उसकी सत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता। आये दिन इस प्रकार की अनेकानेक घटनाएँ घटती रहती हैं, जो सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व की साक्षियाँ देती हैं।

कुछ दिनों पूर्व इसी प्रकार की घटना हरदोई जिले के पनहइया गाँव में घटित हुई। सखाबक्श सिंह गाँव के मुखिया थे। उनका ट्रक ड्राइवर एक दोपहर घर के आँगन में विश्राम कर रहा था कि इतने में उसकी आँखें लग गईं। थोड़ी देर बाद वह कराहते हुए उठ बैठा और अपने सीने पर हाथ फेरने लगा। उसकी छाती में जले का निशान उभर आया था। सम्बन्धियों के पूछने पर उसने बताया- ‘‘जब मैं सो रहा था, तो एक यमदूत आया और मेरे प्रतिरोध के बावजूद मुझे उठा ले गया। जहाँ वह मुझे ले गया, वहाँ का वातावरण अद्भुत था, चारों ओर नीले रंग का एक दिव्य प्रकाश फैला हुआ था, बड़े-बड़े गगन-चुम्बी महल थे, सफेद दाढ़ियों वाला एक बाबा बैठा था। उसके समस्त शरीर से अलौकिक तेज निकल रहा था। मुझे देखते ही उसने उस सिपाहीनुमा दूत से कहा- ‘‘इतनी जल्दी इसे क्यों ले आये? वापस ले जाओ।” तत्पश्चात् दूत ने मुझे लौट चलने को कहा, किन्तु तब तक मैं वहाँ इतना रम चुका था, कि लौटने से इन्कार कर दिया। इस पर एक तप्त सलाख से उसने मुझे दागा और जमीन पर पटक दिया। इतने में मेरी नींद खुल गई।” आज भी उसके सीने पर वह निशान बना हुआ है।

एक ऐसी ही घटना न्यूयार्क, अमेरिका की है। नेल्सन नामक एक बाईस वर्षीय युवक कार में एक मित्र के साथ घूमने जा रहा था। पास ही सड़क पर एक भयंकर मोड़ था। कार तेज गति से जा रही थी। मोड़ में वह गाड़ी को सम्भाल न सका और सामने से आती एक बस से कार जा टकराई। एक तीव्र चीत्कार के साथ नेल्सन बेहोश हो गया। उसके मित्र को कोई विशेष चोट नहीं आयी। वह तुरन्त नेल्सन को पास के अस्पताल में ले गया। डॉक्टरों ने अथक प्रयास के बाद ही वह खतरे से बाहर हो सका। कुछ दिन पश्चात् जब नेल्सन स्वस्थ हुआ, तो बेहोशी के बाद का सारा वृतान्त हूबहू दुहराकर लोगों को सकते में डाल दिया। उसने जो कुछ सुनाया वह इस प्रकार है- ‘‘बस से जब कार टकराई, तो मेरे सिर पर तीव्र आघात हुआ। एक असह्य पीड़ा से मैं छटपटा उठा। फिर मुझे ऐसा आभास हुआ मानों मैं तृणवत् हल्का हो गया हूँ और ऊपर उठ रहा हूँ । मुझे मेरा शरीर गाड़ी के अन्दर क्षत-विक्षत दिखाई पड़ा। मित्र एक ओर पड़ा था। देखते-देखते वहाँ काफी भीड़ इकट्ठी हो गई। मेरे दोस्त ने दो अन्य व्यक्तियों की सहायता से मेरे घायल शरीर को कार से बाहर निकाला और एक अन्य कार से हॉस्पीटल ले आया। यहाँ कुछ समय बाद मैं पुनः अपने शरीर में प्रविष्ट कर गया।” इसी बीच उपस्थित लोगों के मध्य जो भी वार्ता हुई थी, उसने शब्दशः उसे सुना डाला।

बोस्टन में इसी प्रकार की एक घटना तब घटित हुई जब 32 वर्षीय मॉम लाउरा स्पिटलर आने हृदय रोग के इलाज के लिए वहां के एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती हुईं। आरंभिक परीक्षण के बाद डॉक्टरों ने हृदय का ऑपरेशन करने का निश्चय किया। ऑपरेशन प्रारम्भ हुआ, किन्तु बीच में ही किसी कारणवश उसकी हृदय गति रुक गई। डॉक्टरों के लाख प्रयत्न के बावजूद भी धड़कन चालू न हो सकी। ऑपरेशन पूरा हो चुका था डॉक्टर इस कारण और भी परेशान थे, क्योंकि महिला गर्भवती थी। हृदय गति बन्द होने से गर्भस्थ शिशु को भी खतरा हो सकता था। इस सम्बन्ध में अभी वे बच्चे को ऑपरेशन द्वारा बाहर निकालने पर विचार कर ही रहे थे, कि अचानक धड़कन फिर आरम्भ हो गई। धीरे-धीरे स्पिटलर होश में आयीं आर इस बीच के सारे अनुभव को कह सुनाया- ‘‘एकाएक मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं अपने शरीर से बाहर निकल आयी हूं। डॉक्टरों से घिरे बिस्तर पर मुझे अपना शरीर स्पष्ट दिख रहा था और मैं यह भी देख रही थी, कि डॉक्टर मेरे मामले से परेशान हैं। उनके बीच जो कुछ बात-चीत हो रही थी, सब मुझे स्पष्ट सुनाई पड़ रहा था। इस वक्त स्वयं को मैं बिल्कुल भारहीन महसूस कर रही थी तथा हवा में इधर-उधर तैर सकती थी।” इस प्रकार के घटनाक्रम ओ.बी.ई. (आउट ऑफ बाड़ी एक्सपीरियन्स) नाम से जाने जाते हैं। ऐसे अनेकों अनुभवों का संकलन परामनोवैज्ञानिकों ने किया है।

मरणोपरान्त जिंदा होने की एक अन्य घटना इंग्लैण्ड की है। वारविकशायर में विल्सन ट्रेपर नामक एक व्यापारी अपने परिवार सहित रहता था। एक बार वह गम्भीर रूप से बीमार पड़ा। स्थिति नाजुक देखकर उसे दूरवर्ती अस्पताल ले जाने की बजाय पड़ौस के डॉक्टर को उपचार के लिए बुलाना उत्तम समझा गया। डॉक्टर आया, किन्तु तब तक ट्रैपर शान्त हो चुका था। फिर भी परिवार वालों के सन्तोष के लिए उसने उसकी शारीरिक जाँच की और ट्रैपर को मृत घोषित कर दिया। सभी रोने-चीखने लगे पर आश्चर्य, आधे घंटे बाद ही पुनः उसके शरीर में हलचल दिखाई दी। डॉक्टर को फिर बुलाया गया। चेकअप के बाद उसे जीवित पाया और अविलम्ब अस्पताल ले जाने की सलाह दी। उपचार के बाद ट्रैपर स्वस्थ हो गया और अपना मरणोत्तर अनुभव सुनाते हुए कहता- मेरी मृत्यु पर सभी विलाप कर रहे थे। मैं उन्हें स्पष्ट देख-सुन रहा था। मगर मुझ पर किसी की दृष्टि पड़ती ही नहीं थी। चिल्ला-चिल्ला कर मैं कह रहा था कि मुझे कुछ नहीं हुआ है, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, पर मेरी कोई सुनता ही नहीं था। कुछ समय पश्चात् यकायक यह अनुभूति समाप्त हो गयी, सारे दृश्य ओझल हो गये और मैं वापस अपने शरीर में आ गया।

अनेक बार ऐसा भी होता देखा गया है कि व्यक्ति मृत्यु-शैया पर पड़ा हो और मृत्यु से पूर्व सूक्ष्म लोक के उसे सारे दृश्य दिखाई पड़े हों। इसमें उस लोक का दिव्य वातावरण तथा वर्षों पूर्व मरे उसके सगे-सम्बन्धी भी सम्मिलित होते हैं। यदा-कदा दृश्य में ऐसे सम्बन्धी भी दिखाई पड़ जाते हैं, जिनकी मृत्यु की सूचना मरणासन्न व्यक्ति को होती ही नहीं।

ऐसी ही एक घटना का उल्लेख सर विलियम बैरेट ने अपनी पुस्तक “द बुक ऑफ लिविंग डेड” में किया है। बोन शहर में एक महिला की तबियत प्रसव उपरान्त अचानक खराब हो गई। तुरन्त महिला डॉक्टर को बुलाया गया। स्थिति में सुधार न होते देख डॉक्टर कुछ परेशान-सी दिखने लगी। इस पर महिला ने कहा- डॉक्टर, परेशान मत हो। मुझे उस संसार में चली जाने दो। कितना सुन्दर दृश्य है वहाँ, कितने अच्छे वहां के लोग हैं कितने दिव्य प्रकाश से वहाँ का वातावरण आलोकित हो रहा है, इतने में एक ओर इशारा करते हुए अपने मृत पिता से बात करने लगी, मानो सचमुच ही रक्तमाँस का उनका शरीर वहाँ उपस्थित हो। वह कहने लगी- ‘‘पिताजी, मैं जल्द ही आ रही हूँ। देखिये न ये मुझे आने ही नहीं देते।’’ इसी बीच वह एक ओर मुड़ी और विस्फारित नेत्रों से शून्य में कुछ घूरने लगी। तभी उसकी बूढ़ी माँ उस कमरे में पहुँची। उसने माँ की ओर देखते हुए आश्चर्य प्रकट किया- माँ! यह जेनी पिताजी के साथ कैसे है? वह तो हैमवर्ग में पढ़ रही है? जेनी उस महिला की छोटी बहन थी। एक सप्ताह पूर्व किसी दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई थी, जिसकी खबर जानबूझकर उससे छुपायी गई थी। दो दिन पश्चात् उस महिला की मृत्यु हो गई।

न्यू साउथ वेल्स की एक घटना है। डेविड और हैरी दो भाई थे। हैरी बड़ा था और न्यू साउथ वेल्स से 15 मील दूर एक अन्य शहर में नौकरी करता था। कमरे में आग लग जाने से उसका आकस्मिक निधन हो गया। इसकी सूचना डेविड को नहीं थी। वह बीमार था। बड़े भाई की मृत्यु के पाँच दिन बाद उसका भी देहान्त हो गया। निधन से एक घंटा पूर्व वह एक दम बिस्तर पर उठ बैठा और पैताने की ओर इंगित करते हुए बोला- पिताजी, वहाँ हैरी खड़ा मुझे बुला रहा है। उसकी वह बात कमरे में खड़ी उसकी माँ और नर्स ने भी स्पष्ट सुनी।

ये सभी घटनाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि मरने के बाद हमारा अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता, वरन् इस भौतिक संसार को त्याग हम सूक्ष्म लोक के वासी बन जाते हैं। जहां अपने सूक्ष्म शरीर में निवास करते हैं। यहाँ भी हम अपना भौतिक जगत वाला स्वरूप बनाये रहते हैं, हमारी रुचि प्रवृत्ति, इच्छा-आकाँक्षा बिल्कुल इहलोक जैसी ही बनी रहती है। क्षुद्रात्मा-दुरात्मा को यहाँ भी लोगों को सताने-उत्पीड़ित करने में ही मजा आता है, जबकि देवात्मा-धर्मात्मा परमार्थ-परायणता का अवलम्बन लेते और कल्याण की बात सोचते हैं, दूसरों की सेवा-सहायता ही अपना कर्त्तव्य मानते और इसी में आनन्द अनुभव करते हैं। ऐसे सूक्ष्म शरीर धारी प्रेत-पितर समय-समय पर अपना अस्तित्व प्रकट करते और अपनी सेवाओं से दूसरों को लाभान्वित बनाते देखे जाते हैं-

घटना ब्राइघम नामक इंग्लैंड के एक कस्बे की है। एक रात जॉनस्नो नामक बैंक कर्मचारी अपने कमरे में अकेले सो रहा था। बीबी-बच्चे किसी सम्बन्धी के यहां गये हुए थे। ठीक आधी रात को उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई जगा रहा हो। आंखें खोलीं, तो सामने सचमुच ही कोई खड़ा दिखाई पड़ा। बेड लाइट की रोशनी में उसने गौर से देखा, वहाँ उसका दिवंगत बाप खड़ा था, जिसकी मृत्यु के करीब दो वर्ष बीत चुके थे। मृत बाप को खड़ा देख, डर के मारे वह चीख पड़ा। भय से उसकी घिग्घी बँध गई, किन्तु इसी बीच आकृति जॉन के कुछ और करीब आ गयी तथा भय निवारण करते हुए कहा- जॉन! मेरे बेटे, डरो मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ, कोई हानि पहुँचाने यहाँ नहीं आया, अपितु एक महत्वपूर्ण सन्देश देने आया हूँ। तुम जिस बस से कल यात्रा करने वाले हो, उसका एक्सिडेंट होने वाला है, उससे यात्रा मत करना।’ इतना कह आकृति अदृश्य हो गई। दूसरे दिन शाम को स्नो को पता चला, कि जिस बस से यात्रा नहीं करने की चेतावनी उसके मृत पिता ने रात को दी थी, वह सचमुच ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उसके सभी सवार मारे गये।

गत वर्ष कोटा (राजस्थान) में इसी से मिलती-जुलती एक घटना घटी। रामलखन पिठौरा गाँव का एक समृद्ध किसान था। जून का महीना था। दिन में काफी तेज गर्मी पड़ती, जिसका असर रात को भी बना रहता। रात इतनी गर्म होती, कि कमरे में नींद नहीं आती। इसलिए रामलखन अपने पत्नी-बच्चों सहित घर की छत पर सोता। एक रात जब वह गहरी नींद में सो रहा था, तो पास ही किसी के कराहने की आवाज से उसकी नींद उचट गई। आँखें खुलीं, तो छत पर उससे कुछ ही दूर एक लहू-लुहान व्यक्ति खड़ा दिखाई पड़ा, उसका सिर फटा हुआ था और रक्त अविरल बह रहा था। जिससे उसके सारे कपड़े खून में सन गये थे। इस वीभत्स दृश्य को देख भय से वह चीख पड़ा । पास ही उसके पत्नी और बच्चे सो रहे थे। गुहार से सभी जग पड़े। पत्नी ने कारण पूछा, तो रामलखन ने सारा हाल कह सुनाया, परन्तु तब तक वह दृश्य गायब हो चुका था। पत्नी ने इसे उसका भ्रम समझा और सो जाने को कहा। उस रात फिर कुछ असामान्य नहीं घटा। दूसरे दिन आधी रात को फिर वही दृश्य दिखाई पड़ा। पत्नी ने मन का भ्रम कह पुनः उसे सुला दिया। तीसरी रात भी वही भय। इस प्रकार यह क्रम पाँच दिनों तक चलता रहा। छठवें दिन किसी कारणवश उसकी पत्नी अपने बच्चों समेत कमरे में ही सो गई। अकेला रामलखन ही छत पर सोया। मध्यरात्रि के करीब फिर वह आकृति प्रकट हुई। इस बार उसने रामलखन को नाम लेकर पुकारा। वह जगा, किन्तु लगातार छः दिनों से उसका साक्षात्कार होते-होते रामलखन का भय कुछ कम-सा हो गया था। साहस बटोरकर उसने उससे प्रश्न किया- ‘तुम कौन हो और क्या चाहते हो?’ आकृति ने जवाब दिया- मैं किशुन। कभी मेरा यहाँ मकान था। वर्षों पूर्व एक बरसात में मकान ढह गया और मैं उसी के नीचे दब गया। तभी से मुझे आपका इन्तजार था। मैंने ही यह जमीन खरीदने के लिए आपको प्रेरित किया। अब जब आपने इस जमीन को खरीदकर मकान बना लिया है, मैं आपके सामने उपस्थित हूं। मेरी मदद कीजिए। मुझे उस स्थान से बाहर निकालिए। बहुत पीड़ा हो रही है। इसके बदले में मैं आपको अपार सम्पदा दूँगा।’

आकृति की गिड़गिड़ाहट पर रामलखन को दया आ गई। उसने पूछा- ‘आखिर मुझे करना क्या होगा?’ किशुन नामधारी उस आकृति ने पुनः कहा- ‘सामने वाले कमरे के बाँये कोने में मैं दबा पड़ा हूं, वहाँ खोदकर मुझे मुक्त करो।’ आकृति के आदेशानुसार रामलखन तत्क्षण उठा तथा कमरे का कोना खोदना प्रारम्भ किया। करीब दो फुट खोदने पर उसे एक बाम्बी नजर आयी। बाम्बी के दिखते ही प्रेत के कथनानुसार उसने और खोदना बन्द कर दिया। दूसरे दिन अर्धरात्रि को किशुन फिर आया। उसने सहायता के लिए रामलखन को धन्यवाद ज्ञापन किया एवं एक स्थान का पता बताया। वहाँ खोदने पर रामलखन को ढेर सारे सोने-चाँदी के सिक्के मिले। बाद में उसने जब किशुन के बारे में लोगों से पूछताछ की, तो इसी नाम के एक व्यक्ति का पता चला जो वर्षों पूर्व उस मकान के गिरने से दबकर मर गया था।

जीवन शाश्वत है सनातन है। मरण धर्मा तो बस यह एक शरीर है। इस शरीर की कितनी चिन्ता मनुष्य को रहती है। इस क्षण भंगुर काया को तृष्णा, वासना के दलदल में न फंसने देकर मनुष्य अपनी आत्मिक प्रगति के प्रयास सतत् करता रहे, यही एक तत्त्वदर्शन भारतीय मनोविज्ञान एवं दर्शन का रहा है। इसका अवलम्बन लेकर उस अनन्त यात्रा को सही दिशा दी जा सकती है।


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