नयी शक्ति दूँगा (kavita)

September 1985

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नये देश को मैं नयी शक्ति दूंगा।

जगा देश सारी मिटी कालिमा है। चतुर्दिक छिटकने लगी लालिमा है। निशानाथ सोये जगा अंशुमाली, मगर अर्चना की अभी रिक्त थाली। प्रगति पथ पर वेग से बढ़े चलें जो, करोड़ों पगों को नई शक्ति दूँगा।

नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा।

न होगा कभी दृष्टि से लक्ष्य ओझल, बनेगा हमारा हृदय-बल ही सम्बल। अतुल शक्ति अपने पगों में छिपी है, झुकेगा किसी दिन इन्हीं पर हिमाचल। धरा पर नया स्वर्ग बनकर रहेगा, मनुज को विवशता से मैं मुक्ति दूँगा।

नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा।

जवानी न रुकती कभी आँधियों से, जवानी सहमती न बरबादियों से। जवानी ने चाहा तो फिर करके छोड़ा, जवानी ने डरकर कभी मुँह न मोड़ा। कसम खाके उठी जवानी हमारी, मैं बलि की जवानों को आसक्ति दूँगा।

नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा।

अभी कल्पना हो सकी है न पूरी, अभी साधना रह गई है अधूरी। अभी तो खुला द्वार केवल प्रगति का, अभी लक्ष्य में शेष है और दूरी। बिना लक्ष्य की प्राप्ति के जो न लौटे, मैं ऐसी प्रखर शक्ति के व्यक्ति दूँगा।

नये देश को मैं नयी शक्ति दूँगा।

अज्ञात

*समाप्त*


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