धन्वन्तरि के विद्यालय (kahani)

September 1985

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धन्वन्तरि के विद्यालय में वागभट्ट आयुर्वेद पढ़ रहे थे। उनकी पीठ में एक भयंकर फोड़ा हो गया। उपचार के लिए एक जड़ी की आवश्यकता पड़ी। गुरुदेव ने उसका नाम बताया, आकृति समझाई और वन प्रदेश में उसे खोजने के लिए भेजा।

वागभट्ट तीन महीने तक ध्यानपूर्वक जड़ी-बूटियाँ खोजते रहे। अनेकों प्रकार की देखी समझी तो पर अभीष्ट औषधि मिली नहीं। वे वापस लौट आये।

धन्वन्तरि ने विवरण सुना तो ज्ञानवृद्धि और नई खोजों पर प्रसन्नता व्यक्त की।

दूसरे दिन छात्र को लेकर वे पड़ौस के खेत में गये और अभीष्ट औषधि उखाड़ लाये। सेवन कराई तो छात्र कुछ ही दिन में अच्छा हो गया।

अवसर पाकर वागभट्ट ने गुरुदेव से पूछा- भगवन्! औषधि तो पास में ही खड़ी थी, फिर मुझे इतने कष्ट साध्य प्रयास के लिए क्यों भेजा?

धन्वन्तरि ने कहा- वत्स, प्रयोजन लाभ की तुलना में ज्ञान और अनुभव का सम्पादन अधिक महत्वपूर्ण है। तुम इस कारण इतना पुरुषार्थ कर सके वह लाभ अनायास की उपलब्धि से कहाँ मिल पाता।


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