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Akhand Jyoti
Year 1985
Version 2
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September 1985
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भूत अब लौटने वाला नहीं । भविष्य का कोई निश्चय नहीं। सम्भालने और बनाने योग्य तो वर्तमान ही है।
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Page Titles
वैभव की कमी नहीं, पर आवश्यकता जितना ही समेटें
मौन साधना की महिमा
तर्क पर भावना का अंकुश अनिवार्य
आस्ट्रेलिया के हार्वर नगर में (kahani)
“भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ”
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मनस्विता के विकास की आवश्यकता
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‘कर्मफल और उसके परित्याग” सिद्धाँत की अपूर्णता
जार्ज बर्नार्डशा (kahani)
आत्मबोध का प्रथम सोपान “सोहम्” साधना
हजरत उमर से मिलने उनके घर आया (kahani)
योग साधना का मजाक न बने!
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धन्वन्तरि के विद्यालय (kahani)
क्या हम बन्दर की औलाद हैं?
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चेहरे से उल्लास टपकता (kahani)
समग्र अध्यात्म के त्रिविधि आधार
अन्तः का परिमार्जन-परिष्कार
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एक सुन्दर मकान बनाया (kahani)
कामुकता प्रधानतया मानसिक है।
संगीत सृष्टि का भाव भरा उल्लास
असाधारण सुन्दर (kahani)
आइन्स्टीन जा समय से पहले ही चले गये
कामक्षरण को रोकें उसे सही दिशा दें।
अण्डे बहा ले गया (kahani)
जैसा अन्न जल खाइये, तैसा ही मन होय
ज्योतिर्विद्या की समुचित जानकारी जन जन तक पहुंचे
प्रसन्नता आज के कामों के साथ जोड़ दें
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स्वास्थ्य सुधार के लिए रंगों की उपयोगिता
आत्मीयता के आधार पर पनपती घनिष्ठता
हवाना होकीची नामक एक बालक (kahani)
मरने के उपरान्त भी प्राणसत्ता का अस्तित्व
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जापान में बौद्ध धर्म के (kahani)
प्रेत ऐसे भी होते हैं।
प्रसन्नता साधनों पर नहीं, संकल्पों पर निर्भर
स्वप्न सर्वथा निरर्थक ही नहीं होते
तन कर खड़े रहो जीत तुम्हारी है।
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अत्यधिक गम्भीर न रहें।
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बैजामिन फ्रेंकलिन (kahani)
देवात्मा हिमालय की खोज अभी बाकी है।
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दैव सत्ताओं का धरा द्वार पर आगमन
प्राणाग्नि के जब-तब फूटने वाले शोले
गायत्री सर्वतोमुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
भगवान निराकार सर्वव्यापी (kahani)
प्रज्ञा पुराण के चार खण्ड प्रकाशित
गुलाब के फूल (kahani)
तीर्थ यात्रा पर निकलिये
नयी शक्ति दूँगा (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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