आत्मीयता के आधार पर पनपती घनिष्ठता

September 1985

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घनिष्ठता अपने आप में एक शक्ति है। उसके कारण निकटवर्ती लोगों में तो विचारों का, सम्वेदनाओं का आदान-प्रदान चलता ही रहता है पर वह इससे भी आगे एक कदम बढ़कर अन्य जीवधारियों के बीच भी एक सुनिश्चित तथ्य की तरह काम करता है। पशु-पक्षी, कीट पतंगे अपने वर्ग वालों तक अपनी इच्छाओं और जानकारियों से अवगत कराते रहते हैं। यदि ऐसा न हो तो उनकी जीवनचर्या ही न जान सकें।

चींटी, दीमक, मधु-मक्खी, तितली, जुगनूँ और अपने वर्ग वालों को अपनी जानकारियों को साथियों तक पहुँचाकर उनका सहयोग करते रहते हैं। प्रजनन क्रिया के लिए दूसरे पक्ष को आमन्त्रण देने के लिए उनके पास एक ही साधन है विचार सम्प्रेषण। इसका एक कारण गन्ध को बताया जाता है। पर यह मोटा अनुमान मात्र है। गन्ध में इतने स्तर, वर्ग और उतार-चढ़ाव नहीं होते जिसके आधार पर जीव जगत की सहकारिता का आधार मजबूत बना रहे।

इसी प्रकार सुपरनेचर पुस्तक के लेखक लॉयेल वेस्टन ने “माइन्ड ओवर मैटर” के अंतर्गत लिखा है कि चींटी समुदाय में भी विचार-सम्प्रेषण की, टेलीपैथी की विलक्षण क्षमता आत्मीयता पर ही आधारित है। जब तक चींटी समुदाय की रानी चींटी स्वस्थ रहती है, सभी चींटियां समुदाय में या समुदाय से अलग होकर एकाकी सहज स्वाभाविक रूप से कार्य करती हैं। रानी चींटी की भूमिका अभिभावक के रूप में मानी जा सकती है।

‘टेलीपैथी’ विषय पर गहन शोध करने वाले अमेरिकन जॉन गैदर प्रैट ने अपने प्रसिद्ध शोध-ग्रन्थ “पैरासाइकोलॉजी” में मनुष्यों के दैनिक जीवन के अनेकानेक पालतू पशुओं का भी जिक्र किया है जिनमें टेलीपैथी की विशेष क्षमता पाई जाती है। इस संदर्भ में उन्होंने एक डुलेन परिवार का दिया है।

कितने ही पशु-पक्षियों को अपने पालने वाले प्रेमियों के साथ इतनी घनिष्ठता होती है कि वे अपनी भाव सम्वेदनाओं से आकुल होकर उस प्रियजन को कितनी ही कठिनाई सहकर भी ढूँढ़ निकालते हैं और उस तक पहुँचने का प्रयत्न करते हैं।

एक व्यक्ति आने निवास स्थान आरोरा, इलीनॉयस को छोड़कर 200 कि.मी. दूर मिशीगन जिले के लॉनसिंग शहर में रहने के लिए चला गया, किन्तु अपने पालतू वफादार कुत्ते ‘टॉनी’ को अपने पुराने घर पर ही छोड़ना पड़ा। डुलेन परिवारी-हरिजन उस समय- अत्यधिक आश्चर्यचकित हुए जब उन्होंने अपने उसी पालतू कुत्ते टॉनी को 6 सप्ताह बाद लॉनसिंग की गलियों में साथ घूमते देखा।

प्रैट महोदय ने इसी प्रकार के अन्य दो महत्वपूर्ण उदाहरण देते हुए लिखा है कि पश्चिमी वर्जीनिया के एक 12 वर्षीय लड़के ने एक कबूतर को पालतू बना लिया। कुछ समय पश्चात किसी रोग विशेष के कारण उस लड़के को उपचार के लिए आने शहर से 70 मील दूर एक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। एक रात को उस लड़के ने सींखचे से बाहर यकायक किसी पक्षी के फड़फड़ाने और चोंच से तार की जाली को नोंचते हुए देखा, वह पक्षी उस कमरे में प्रवेश पाने के लिए अत्यधिक व्यग्र हो अपनी चोंच लहू-लुहान किये जा रहा था। लड़के का कौतूहल बढ़ा और विस्तर छोड़कर, ज्यों ही सींखचे पर गया, तो उस पक्षी को पहचानकर उसकी आँखें भीग गईं। यह पक्षी और कोई नहीं उसका अपना वही कबूतर था जिसे उसने बहुत छुटपन से ही पाला-पोसा था।

ठीक इसी प्रकार की घटना एक स्वीडन परिवार की भी है। इस परिवार ने वन्य पक्षी नीलकण्ठ को अत्यधिक स्नेह पूर्वक पोषित परिवर्धित किया। जब ग्रीष्म कालीन लम्बे अवकाश को बिताने के लिए यह परिवार अपने निवास स्थान से सैकड़ों मील दूर एक प्राकृतिक सुरम्य स्थल को चला गया, पक्षी को अन्य परिवारी लोगों की देखरेख में छोड़ दिया गया। किन्तु इस पक्षी ने भी टेलीपैथी के माध्यम से उसी दिशा में उड़ान भरी और यात्रा के दूसरे दिन बाद वह परिवारी सदस्यों के भ्रमण के दौरान उन्हीं में मिल गया। वह जाकर अपने मुख्य स्वामी के कन्धे पर बैठ गया। यह सब देखकर परिवार के सभी व्यक्ति अत्यधिक आश्चर्य में पड़ गए।

“टेलीपैथी” विषय की गहन गवेषणाओं से वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि यद्यपि पशुओं में टेलीपैथी ग्रहण करने की क्षमता होती तो है, किन्तु कुत्ते में आत्मीयता के आधार पर यह क्षमता सबसे अधिक पनपी पायी जाती है। वे हमेशा आने वाली विपत्ति से गृह मालिकों को आगाह करते रहते हैं। रात्रिकालीन समय में आने वाली विपत्ति का उन्हें पूर्ण आगाह हो जाता है इसलिए परिवार वालों को समय रहते सावधान हो जाने के लिए अनेकानेक प्रकार के शारीरिक हाव-भाव से चेष्टायें करते हैं। इतने पर भी गृह मालिक नहीं समझ पाता है, तो वे भौंकने लगते हैं। इस प्रकार की घटनाएँ रिकार्ड की गई हैं जब कुत्ते का अकारण भौंकना समझकर नजर अन्दाज कर दिया गया, फलतः प्रातः उस परिवार में किसी की हत्या कर दिये जाने, लूट-पाट हो जाने अथवा किसी की मृत्यु हो जाने के तथ्य प्रकाश में आए हैं, कभी-कभी तो कुत्ते अपने मालिकों की दफनाई गई कब्रों को खोज निकालते हैं और उसके पास से हटना नहीं चाहते। ऐसे घटनाक्रम भी देखे जा रहे हैं जिसमें पुनः कब्र खोदने पर ये व्यक्ति जीवित पाये गये। अन्दर की गर्मी ने प्राण संचार आरम्भ कर दिया। चिकित्सक धोखा खा गए किन्तु कुत्ते ने धोखा नहीं खाया।

अपनत्व यदि सच्चा और गहरा हो तो घनिष्ठ जनों के मध्य समीपता एवं सहायता की सहज आतुरता उत्पन्न करता है। मैत्री इसी आधार पर पनपती है। इस आधार पर दूरस्थ व्यक्ति भी निकटवर्ती की तरह प्राण प्रिय लगते रहते हैं। यहाँ तक कि देवता एवं भगवान भी इस बन्धन को तुड़ाने का प्रयत्न नहीं करते।


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