मनुष्य एक सामान्य शरीर है। उसमें लिंग परिवर्तन कुछ रसायनों की न्यूनाधिकता से होता है। जन्मजात रूप से जननेन्द्रियों की बनावट में अन्तर भर होता है, किन्तु कामुकता का उभार तथा प्रजनन पूर्णतया उन विशिष्ट रसायनों के आधार पर होते है, जिन्हें हारमोन कहते हैं।
हारमोनों में कितने ही स्तर के हैं और वे शारीरिक मानसिक विकास में काम आते हैं। उनकी न्यूनाधिकता से मनुष्य का गठन सामान्य न रहकर असामान्य हो जाता है। कभी-कभी लम्बाई छः-सात फुट को भी पार कर जाती है और कभी-कभी उनमें अवरोध उत्पन्न होने पर वह तीन फुट जितना बौना भी रह जाता है। अशक्तता एवं सशक्तता भी बहुत कुछ इन्हीं पर अवलम्बित रहती है।
यौन प्रयोजनों में इनका बड़ा हाथ है। स्वाभाविक विकास न होने पर मनुष्य देखने में स्वस्थ प्रतीत होते हुए भी नपुंसक स्तर का रह जाता है। यह व्यथा पुरुषों की भांति स्त्रियों में भी पाई जाती है।
एन्ड्रोजन्स हारमोन की बहुलता से पुरुषोचित कामुकता विकसित होती है और कभी-कभी वह मर्यादाओं का अतिक्रमण भी करती देखी गई है। स्त्री प्रवृत्ति को उभारने में प्रोजेस्ट्रान हारमोन्स का हाथ है। वह अधिक हो तो कामुक चंचलता और अतृप्ति बनी रहती है। कम होने पर लज्जा, भय, उपेक्षा और खेद की प्रवृत्ति पाई जाती है।
इन दिनों इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है। पुरुष स्त्रियों का कामुक चिन्तन अधिक करते हैं और स्त्रियाँ पुरुषों सम्बन्धी चिन्तन में अधिक रुचि लेती हैं। इसका परिणाम सामान्यतः यह होता है कि स्वाभाविक प्रवृत्ति में अन्तर पड़ना आरम्भ हो जाता है। कड़ी मेहनत वाले खेलों में अधिक तत्परता दिखाने वाली युवतियों के चेहरे पर बाल उगने लगते हैं और आवाज पुरुषों जैसी भारी हो जाती है। अन्य महिला अवयवों में भी इस आधार पर अस्वाभाविकता आ जाती है। पुरुषों के चिन्तन पर यदि नारी अवयवों का आकर्षण छाया रहे तो वे भी विपरीत स्तर की प्रवृत्ति अपनाने लगते हैं।
लिंग परिवर्तन की घटनाएँ पूर्व काल में होती थीं या नहीं। इसका कोई निश्चित इतिहास नहीं है। मात्र इतनी ही जानकारी है कि पुरुषों में एक वर्ग “हिजड़ा” स्तर का होता है और वह नर या नारी में से किसी की भी भूमिका नहीं निभा सकता। पर अब जबकि चिकित्सा विज्ञान का अधिक विकास हुआ है और शल्य चिकित्सा अपने चमत्कार दिखाने लगी है तो पुरुष वर्ग में से बहुतों में स्त्री जननेन्द्रिय उभरने की सम्भावना क्रमशः तेजी से बढ़ रही है जबकि स्त्रियों के पुरुष बनने के अवसर कम मिलते हैं। उसमें शल्य क्रिया एक बार में ही पूरी नहीं हो जाती। वरन थोड़ा-थोड़ा करके उस प्रकरण को कई बार में निपटाना पड़ता है।
इस संदर्भ में व केवल प्रजनन संस्थान में पाये जाने वाले अवयवों को ही सारा श्रेय जाता है वरन् मस्तिष्क में विद्यमान पिटुटरी और पीनियल ग्रन्थियों की भी अपनी विशेष भूमिका है। वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षण उत्पन्न करती हैं। जिसमें पसीने की गंध साँस आदि में रहने वाले तत्वों का भी आकर्षण सम्मिलित है। इच्छित रंग रूप का भी। यदि यह मानसिक ग्रन्थियाँ पारस्परिक आकर्षण उत्पन्न न करें और अभीष्ट चुम्बकत्व उत्पन्न न करें तो यौनाचार भी शिथिल पड़ जाता है और सन्तानोत्पादन की सम्भावना भी घट जाती है।
दाम्पत्य जीवन की सफलता बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए घनिष्ठता उत्पन्न करें। इस प्रयास में प्रकृतिगत न्यूनाधिकता की पूर्ति भी सहज ही होने लगती है। ब्रह्मचर्य पालन में अकेली अन्य मनस्कता भी काम दे जाती है, उससे हारमोनों में उभार सहज ही शिथिल होने लगते हैं।