दैव सत्ताओं का धरा द्वार पर आगमन

September 1985

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सर्वांगपूर्ण मनुष्य जिस बीज से उत्पन्न हुआ है, उसके कोई लक्षण इस धरती की रासायनिक संरचना से दृष्टिगोचर नहीं होते। यहाँ सभी कुछ ऐसा अलौकिक है कि यदि उसे दैवी अनुदान कहा जाय तो कुछ ऐसा अलौकिक है कि यदि उसे दैवी अनुदान कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी।

पृथ्वी पर यदा-कदा ऐसे विलक्षण घटनाक्रम घटते रहते हैं, जो इस मान्यता की पुष्टि करते हैं। उड़न-तश्तरियों (यू. एफ. ओ.-अनआइडेन्टी फाइड फ्लाइंग आब्जेक्ट्स) का पृथ्वी के वायु मण्डल में प्रकट होकर फिर चले जाना ऐसी ही अबूझ पहेलियों में से है।

पश्चात् देशों में उड़नतश्तरियों को यू.एफ.ओ. के नाम से जाना जाता है। सन् 1969 में अमेरिका की हवाई सेना ने यू. एफ. ओ. अनुसंधान की 22वीं वर्षगाँठ को मनाया। इसकी रिपोर्ट का 8400 पृष्ठों में प्रकाशित किया गया। जिसमें 12864 मायावी दृश्यों का प्रदर्शन किया गया है।

अमेरिका के 54 प्रतिशत व्यक्ति उड़नतश्तरी को सत्य मानते हैं। 11 प्रतिशत का मत है कि इस प्रकार के दृश्य ब्रह्मांड की विलक्षणता के कारण हो सकते हैं। अमेरिका के प्रसिद्ध उड़नतश्तरी विशेषज्ञों (यूफोलौजिस्ट) जे. एलैन हाइनीक एवं जेम्स हार्डर को मान्यता दी जाती है। वे आजकल कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय में कार्यरत हैं। इन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान एवं अनुभवों से यू. एफ. ओ. के अस्तित्व को प्रमाणित किया है। समय-समय पर जिन अनेकों व्यक्तियों ने उड़न तश्तरियां देखीं उनके व्यक्तित्वों को भी इसने एकत्र किया है।

18 अक्टूबर 1973 को मैंसफील्ड के पास 750 मीटर की ऊँचाई पर एक अलौकिक दृश्य देखा गया। अमेरिकी सेना के कैप्टन लॉरेन्स कौहन ने उस चमकीले दृश्य को देखा तो उसने भयभीत होकर अपने हैलीकाप्टर को नीचे उतारा। उसके साथ चार व्यक्ति और भी थे। कैप्टन लॉरेंस ने बताया कि धातु निर्मित यह एक उड़नतश्तरी 150 मीटर की ऊँचाई पर उनके निकट स्थिर बनी रही। इसकी लम्बाई 15-18 मीटर तक थी। उसने बताया कि मुझे अचानक धक्का सा लगा। मेरा हैलीकाप्टर उस विचित्र तश्तरी की आकर्षण शक्ति से 1000 मीटर की ऊँचाई तक उठता चला गया।

2 नवम्बर 1971 को डैल्फोस के निवासी रोनाल्ड जौन्सन ने अचानक ही एक गड़गड़ाहट की ध्वनि सुनी। जमीन से 60 से.मी. की ऊँचाई पर उसने एक चमकीले दृश्य को देखा और वह उड़न तश्तरी सीधी ऊपर की ओर बढ़ती चली गयी। रोनाल्ड 10 मिनट तक बेहोश रहा। उसने 25 मीटर व्यास की उड़नतश्तरी को अपने माता-पिता को भी दिखाया। धीरे-धीरे यह चमक कम होती चली गयी।

5 नवम्बर 1975 को सात नवयुवक लकड़हारे अपने घर को लौट रहे थे। अचानक ही उन्हें परिभ्रमण करती हुई उड़न-तश्तरी दृष्टिगोचर हुई। 22 वर्षीय ट्रेविस्वाल्टन ट्रक से कूद कर इसकी ओर दौड़ा। उसके साथी तो भयभीत होकर लौट गये। लेकिन वह वहाँ से गायब हो गया। 6 दिन बाद उसने अपने साथी हैवर को टेलीफोन से सूचित किया कि “मुझे यू. एफ. ओ. में व्यक्ति ले गये थे, जिसकी लम्बाई 15 मीटर थी। उनकी विशाल भूरी आँखें थी और सिर पर बाल भी नहीं थे।’’ इन सभी व्यक्तियों के साक्षात्कार के लिए लाइडिटैक्टर का प्रयोग किया गया, जिसमें पाँच व्यक्तियों को प्रामाणित ठहराया गया।

श्रीमती जान्सन ने उड़न तश्तरियों के फोटो भी लिए हैं। क्योंकि उनके कृषि फार्म पर ये कई बार उतर चुकी हैं। इनमें भेड़िये जैसी आकृति की लड़की को उन्होंने अपने समीप आते हुये कई बार देखा है।

यू. एफ. ओ. की विलक्षणताओं का पता लगाने हेतु ‘एरियल फैनोमैना रिचर्स आर्गनाइजेशन’ की स्थापना हुई है। जिसमें विभिन्न प्रकार की घटनाओं को प्रामाणिकता की कसौटी पर कसा जाता है।

इतिहासकार एरिक व्होन दानिकेन के अनुसार विश्व के परिभ्रमण के समय उन्होंने ऐसे तथ्य एकत्र किये हैं जिनसे ज्ञात होता है कि बाह्य अन्तरिक्ष के जीवधारी पृथ्वी पर आये हैं।

अफ्रीका के दोयो जाति और दक्षिण अमेरिका के कयापो जाति का विश्वास है कि उनके त्यौहारों में उनके देवता अंतरिक्ष से आते हैं और त्यौहार के बाद चले जाते हैं। पेरू देश के लीमा शहर के पास मरुस्थल में दो यान उतरने का प्रमाण उन्होंने पाया है। अपने ग्रह के नहीं हैं। इनके लोक-लोकान्तरों से आने की बात ही सही मालूम पड़ती है।

सन् 1979 में ब्रेवेर्सवाइल, इन्डियाना में पत्थरों के कब्रिस्तानी टीले की खुदाई कराने पर 9 फीट आठ इंच लम्बा एक नर कंकाल निकला। कंकाल की गरदन के चारों तरफ माइका से बना हार लिपटा हुआ था और पैर के पास कच्ची मिट्टी से बनी मनुष्य की एक प्रतिमा खड़ी थी। 5 फीट ऊँचे और 71 फीट घेरे वाले इस टीले की खुदाई इन्डियाना के सुप्रसिद्ध पुरातत्वज्ञों, न्यूयार्क तथा ओहियो के मूर्धन्य वैज्ञानिकों और एक स्थानीय चिकित्सक डा. चार्ल्स ग्रीन के देखरेख में कराई गई थी। यह टीला मि. राबिन्सन के निजी स्वामित्व में था। अतः नर कंकाल राबिन्सन के पास ही सुरक्षित एक मिल में रखा गया था। बाद में यह एक भयंकर बाढ़ में बह गया। इस विलक्षण आकार-प्रकार के जीव की पृथ्वी वासी होने की मान्यता नहीं स्पष्ट होती। इस कंकाल की बनावट भी विचित्र थी तथा यह अधिक पुराना भी न होने से लगता है कि पिछले एक दो शतकों में कभी किसी उड़नतस्तरी के ध्वस्त होने पर यह यहीं रह गया।

सुप्रसिद्ध जीवाश्म विज्ञानी विलियम जे. मीस्टर को पुराने जीव जन्तुओं के फासिल्स एकत्र करने का बहुत शौक था। जून सन् 1968 में ट्राइलोवाइट नामक अकेशरुकीय जीव के जीवाश्म ढूंढ़ते हुए वे सपरिवार डेल्टा, यूटाह से 43 मील पश्चिम एन्टिलोप स्प्रिंग पहुँच गये। यह स्थान ट्राइलोवाइट से भरा पूरा माना जाता था। मीस्टर ने जैसे ही दो इंच मोटे पत्थर के पहिये पर हथौड़े से वार किया। वैसे ही शैल पट्ट दो भागों में पुस्तक की भांति खुल गया। शैल पट्ट पर सैण्डल पहने हुए मनुष्य के पद चिन्ह अंकित थे। सैण्डल पहने हुए व्यक्ति द्वारा पैरों तले अनेकों जीवित ट्राइलोवाइट कुचल दिये गये थे। सैण्डल सवा दस इंच लम्बी और साढ़े तीन इंच चौड़ी थी।

ट्राइलोवाइट, केंकड़े और झींगी समुदाय के सदस्य थे जो समुद्र में पाये जाते थे। 320000000 वर्ष तक फलते-फूलते रहने के बाद 280000000 वर्ष पूर्व ट्राइलोवाइट विलुप्त हो गये थे। मनुष्य के उद्भव विकास के सम्बन्ध में वैज्ञानिक मान्यताओं-धारणाओं के आधार पर मानव का इस धरती पर पर्दार्पण कोई 1000000 से 2000000 वर्ष से अधिक पुराना नहीं है और सभ्य बनने तथा जूते बनाने पहनने की कला तो उसने कुछ हजार वर्षों से ही सीखी है।

मीस्टर ने पद चिन्ह युक्त शैल खण्ड को यूटाह विश्व विद्यालय के धातु विज्ञानी प्राध्यापक मेल्विन कूक को दिखाया जिन्होंने इस दुर्लभ फुट प्रिंट को किसी भू-विज्ञानी विशेषज्ञ को दिखाने के लिए परामर्श दिया। मीस्टर ने “द डेजर्ट न्यूज” नामक पत्रिका में इस पद चिन्ह के बारे में पूर्ण विवरण प्रकाशित कराया। जिससे प्रभावित होकर यूहाट विश्वविद्यालय के म्यूजियम आफ अर्थ साइन्सेस के संग्रहाध्यक्ष जेम्स मेडसन ने पद चिन्हों का निरीक्षण विश्लेषण करने पर पाया कि ये पद चिन्ह 30 से 60 करोड़ वर्ष पुराने हैं। जेम्स ने बताया कि 600000000 वर्ष पूर्व इस धरती पर न तो मनुष्य थे और नहीं बन्दरों का उद्भव विकास हुआ था। यह पहेली बनी हुई है कि वह फॉसिल्स फिर किसका था?

ऐसे घटनाक्रम जिनका कोई तर्क सम्मत समाधान नहीं है एवं ऐसी विलक्षण खोजें जो अति मानवी मालूम पड़ती हैं, इस मान्यता की पुष्टि करती हैं कि मनुष्य यहाँ नहीं उपजा, कहीं और से सम्भवतः देवलोक से आया है। अभी जब तक इस सम्बन्ध में गुत्थियाँ नहीं सुलझ जातीं, इस अविज्ञात पर शोध जारी रहनी चाहिए।


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