प्राणाग्नि के जब-तब फूटने वाले शोले

September 1985

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घटना 2 जुलाई 1051 की है। अमेरिका के सेण्ट पीटर्स वर्ग (फ्लोरिडा) के एक मुहल्ले मेरी स्ट्रीट में रहने वाली श्रीमती मेरी हार्डी रोजर अपने मकान में विचित्र ढंग से जली हुई मरी पाई गई। 2 जुलाई की पूर्व सन्ध्या को हार्डी रोजर ने अपने मित्रों को एक पार्टी दी थी और उसका घर आधी रात तक चहल-पहल से भरा रहा था। मित्रों के ठहाके गूँज रहे थे। देर रात गए पार्टी समाप्त हुई और हार्डी रोजर अपने मित्रों को विदा कर हल्के चित्त से आकर अपने बिस्तर पर लेट गई। सुबह देर तक उसके मकान का दरवाजा बन्द रहा। मकान मालकिन पी. कार्पेण्टर ने सोचा कि रात में देर तक जागने के कारण रोजर अभी तक सो रही है। उसके काम पर जाने का समय हो गया है, इसलिए उसे जगा देना चाहिए।

यह सोचकर श्रीमती कार्पेन्टर ने रोजर के घर का दरवाजा खटखटाया किन्तु अन्दर से कोई उत्तर नहीं मिला। दो तीन बार दरवाजा खटखटाने के बाद जब कोई उत्तर नहीं मिला तो श्रीमती कार्पेन्टर ने सोचा कि रोजर को ज्यादा ही गहरी नींद आ गई होगी इसलिए स्वयं ही दरवाजा खोलकर उसे जगा देना चाहिए। यह सोचकर दरवाजा खोलने के लिए मकान मालकिन ने पीतल की बनी हुई कुण्डी पर जैसे ही हाथ रखा, उसके मुँह से चीख निकल गई। पीतल की कुण्डी इतनी गरम हो गई थी जैसे उसे घण्टों आग से तपाया गया हो। उसी से मिसेज कार्पेन्टर का हाथ जल गया था।

उसकी चीख सुनकर पास ही रहने वाले दोनों पड़ोसी निकल आए। मिसेज कार्पेन्टर ने उन्हें सारी बात बताई और कहा कि शायद फ्लैट में कोई दुर्घटना घट गई है। दुर्घटना की सम्भावना का अनुमान लगा कर दोनों पड़ोसियों ने दरवाजे को कन्धे से धक्का देना शुरू किया। दो चार धक्कों में ही कुण्डी निकलकर अलग हो गई और तीन व्यक्ति अन्दर प्रविष्ट हुए।

फ्लैट के भीतर कमरे की दोनों खिड़कियाँ खुली हुई थीं और कमरे की छत तथा दीवारें कालिख से इस तरह पुती हुई थी जैसे किसी ने वहाँ आग लगाई हो। कमरे का तापक्रम भी असाधारण रूप से गरम था और वहाँ रखा हुआ आदमकद शीशा इतनी अधिक आँच के कारण टूटकर पिघल गया था एवं बुरी तरह टुकड़े-टुकड़े हो गया था। किन्तु आश्चर्य की बात यह थी कि कमरे में धुँए या जलने की गन्ध का कहीं नामो-निशान तक नहीं था।

उन लोगों ने मेरी हार्डी को आवाज दी। पर कोई उत्तर नहीं मिला। मेरी हार्डी वहाँ हों तो उत्तर भी दें, उसके अवशेष तो राख की एक ढेरी के रूप में कमरे की ही एक खिड़की के पास पड़े थे। मिसेज कार्पेन्टर और दोनों पड़ोसियों ने उन अवशेषों को देखा तो दंग रह गए और तत्काल इस घटना की सूचना पुलिस को दी। पुलिस आई, उसने जाँच की परन्तु रहस्य सुलझने का कोई सूत्र हाथ में नहीं आ रहा था। पहले तो जाँच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मामला असाधारण रूप से की गई आत्म-हत्या का है परन्तु शीघ्र ही उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा क्योंकि आत्म-हत्या के लिए अपने शरीर को किसी भी प्रकार आग लगाई जाए किन्तु वह उस ढंग से राख में परिवर्तित नहीं हो सकता, जिस प्रकार मिसेज हार्डी का शरीर राख में परिणत हो गया था। आग लगने के बाद आखिर कोई भी व्यक्ति छटपटाता तो है ही और उस छटपटाहट के कारण मरणांतक स्थिति में पहुँचने तक भी आग निश्चित रूप से बुझ सकती है। फिर मानवी काया एवं उस पर भी अस्थियों की भस्मीभूत करने के लिए जितना ऊँचा भट्टी के स्तर का तापमान चाहिए, इतना तापमान आग के किसी प्रचण्ड भयंकर स्रोत से ही उत्पन्न हो सकता था। वहाँ पर कमरे की जो स्थिति थी और कमरे के सामान को क्षति पहुँची थी, उसके आधार पर किसी भी प्रकार यह नहीं कहा जा सकता कि कमरे में इतना उच्च तापमान पैदा हुआ हो।

जाँच अधिकारियों को जिस बात ने सबसे अधिक उलझन में डाला वह यह थी कि मेरी हार्डी की देह जिस स्थान पर राख हुई पड़ी थी, वहाँ फर्श पर बिछे कालीन पर आग लगने के बहुत ही सामान्य निशान थे। उसके पास ही रखी मेज पर पड़े हुए अखबार और कपड़ों को तो आग ने छुआ तक नहीं था। जाँच अधिकारी एडवर्ड डेविस इन विचित्र विरोधाभासों के कारण जब किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके तो उन्होंने प्रसिद्ध शरीर विज्ञानी डा. विंस्टन क्रागमैन की सहायता ली।

डा. विंस्टन क्रागमैन इस दुर्घटना के विभिन्न कारणों की सम्भावना पर विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मिसेज हार्डी रोजर उस रहस्यमयी आग की शिकार हुई हैं, जिसे विज्ञान की भाषा में “स्पांटेनियस ह्यूमन कम्बशन” (स्वतःदहन) कहते हैं। स्पांटेनियस ह्यूमन कम्बशन अथवा अनायास अपने आप जलने की यह प्रक्रिया ऐसी है जो पिछले दसियों वर्षों से वैज्ञानिकों को उलझन में डाले हुए है। इस रहस्यमयी आग के उत्पत्ति के कारणों को जानने के लिए विभिन्न प्रयोगों और अब तक इस तरह की घटी सैकड़ों घटनाओं में से करीब 100 घटनाओं का अध्ययन करने के बाद भी वैज्ञानिक यह पता नहीं लगा पाये हैं यह रहस्यमयी आग किस प्रकार और किन कारणों से उत्पन्न होती है? इसका स्त्रोत क्या है?

अपने आप शरीर में आग उत्पन्न होना और उस आग में जलकर शरीर का भस्मीभूत हो जाना ऐसा विचित्र रहस्य है कि सामान्य अग्निकाण्डों से उसकी तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि जिस किसी के भी साथ इस प्रकार की घटना घटती है पहले तो उसे इसका कोई लक्षण ही पता नहीं चलता। अचानक हार्ट अटैक की तरह बिना किसी पूर्व सूचना के अग्नि स्फोट होता है जो व्यक्ति इस रहस्यमयी अग्नि का शिकार होता है उसे सम्भवतः इसकी कोई यन्त्रणा भी अनुभव नहीं होती।

उपरोक्त घटना के पहले और बाद में भी इस तरह के ढेरों अग्निकाण्ड हुए हैं इनमें 7 दिसम्बर 1956 को होनोलूलू द्वीप में ऐसा ही अग्नि काण्ड घटित हुआ। उस द्वीप की एक साधारण-सी बस्ती में रहने वाली पचहत्तर वर्षीय महिला यग सिककिम इस घटना की प्रत्यक्ष साक्षी रहीं। उस दिन दोपहर को वृद्धा किम किसी घरेलू काम में व्यस्त थी अचानक उसे किसी काम से अपनी पड़ोसिन वर्जीनिया कॉगेट की याद आई। किम दयालु, व्यवहार कुशल और पर दुःखकातर महिला थी। उसके स्वभाव से सभी खुश रहते थे और कॉगेट तो उसकी विशेष रूप से आभारी थी क्योंकि वक्त बेवक्त उसे किम से सहायता मिल जाया करती थी इसलिए वह किम के कई छोटे बड़े काम कर दिया करती थी।

किम को किसी काम के सिलसिले में कॉगेट की याद आई तो उसके घर पहुँची। वहाँ पहुँचकर उसने जो कुछ देखा उससे किम की भय के मारे चीख निकल गई। किम ने देखा कि कॉगेट का शरीर नीली लपटें छोड़ता हुआ जल रहा है। उसकी चीख सुनकर आस-पास रहने वाले लोग दौड़ आए। उन्होंने भी वह दृश्य देखा। वे कॉगेट को बचाने का कोई उपाय करने की बात सोच ही रहे थे कि देखते ही देखते उसका शरीर मुट्ठी भर राख में बदल गया। आश्चर्य की बात यह थी कि कॉगेट न तो अचेत हुई थीं और न ही चीखी-चिल्लाई ही थीं।

सैन फ्राँसिस्को के लागूना होम में भी 31 जनवरी 1959 को ऐसी ही घटना घटी जिसका प्रत्यक्षदर्शी वहाँ का एक चपरासी था। लागूना होम में बूढ़े व्यक्तियों की देखभाल की जाती थी। सरकार की ओर से चलाया जाने वाला वह एक ऐसा संस्थान है, जहाँ वृद्ध व्यक्ति ही रहते थे। उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी चपरासी सिलेवेस्टर एलिस 31 जनवरी की शाम को चार बजे के लगभग जैक लार्वर को दूध का गिलास देने गया था, जो वृद्ध व्यक्तियों को होम की ओर से वितरित किया जाता था। जैक लार्वर ने दूध का गिलास ले लिया और पीने लगा। इसके बाद एलिस रसोई में चला आया।

कोई पन्द्रह मिनट के बाद एलिस लार्वर के कमरे में दूध का खाली गिलास वापस लेने के लिए पहुँचा जब वह लार्वर के कमरे में पहुँचा तो वहाँ उसने जो कुछ देखा वह बेहद भयावह दृश्य था। उसने देखा कि जैक लार्वर नीले रंग की लपटों में बुरी तरह जल रहा है। यह दृश्य देखकर उसने एक कम्बल लार्वर के शरीर पर लपेट देना चाहा परन्तु जैसे ही कमरे के कोने में रखा कम्बल लेकर उसके पास दौड़ता हुआ सा जाने लगा, पुलिस को कुछ फीट की दूरी पर आग की तेज असह्य आँच अनुभव हुई। उसे लगा कि वह भी उस आँच में झुलसने लगा है।

अपने को बचाते हुए एलिस ने कम्बल लार्वर पर फेंका और दौड़कर कमरे के बाहर आया तथा मदद के लिए चीखने पुकारने लगा। लोग मदद के लिए दौड़ आए। इसमें मुश्किल से पाँच सात मिनट लगे होंगे। सहायता के लिए आए संस्था के कर्मचारी तथा अन्य व्यक्ति लार्वर के कमरे में पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ राख का एक ढेर मात्र पड़ा है और कमरे के भी झुलसा देने वाली गर्मी व्याप रही है। आश्चर्य की बात तो यह थी कि एलिस ने जो कम्बल लार्वर के ऊपर फेंका था, उस पर कहीं-कहीं ही आग ने अपना प्रभाव दिखाया था। कमरे की सभी वस्तुएँ यथावत् सुरक्षित थीं। वहाँ न तो किसी प्रकार का धुँआ फैला हुआ था और न ही कोई चीज जलने की गन्ध आ रही थी।

इस घटना की रिपोर्ट पुलिस में की गई। जाँच अधिकारियों ने पहले तो उसे आत्म-हत्या का असाधारण प्रयास माना परन्तु इस विचार की कहीं से भी पुष्टि नहीं होती थी। कमरे में ऐसी कोई वस्तु नहीं पाई गई जो ज्वलनशील हो फिर यदि लार्वर ने आत्मदाह ही किया था तो उस आग से आस-पास की वस्तुएँ कैसे प्रभावित रह गई थीं? यहाँ तक कि उसके ऊपर जो कम्बल फेंका गया था, वही बिना जले कैसे बच गया था? अन्त में जाँच अधिकारियों को अपना निष्कर्ष बदलना पड़ा और इस केस को फाइल कर दिया गया।

इस तरह की जितनी भी घटनाएँ अब तक प्रकाश में आई हैं और जिनका विश्लेषण किया गया है उनमें यह तथ्य आश्चर्यजनक रूप से सामने आया है कि यह आग केवल शरीर को ही जलाती है। धातुओं पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, अलबत्ता वह उन पर कुछ निशान जरूर छोड़ जाती है।

अध्यात्म विज्ञान में भौतिक अग्नियों की चर्चा आग, बिजली, आदि के अतिरिक्त शरीर में विद्यमान प्राणाग्नि का वर्णन किया गया है और उनमें से पाँच को प्रमुख और पाँच को गौण बताते हुए उनकी संख्या दस में गिनाई गई है। उन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं यह जीवन्त स्तर की अग्नियाँ हैं जो ऊर्जा तो निस्सृत करती हैं किन्तु पदार्थ को कम और काया एवं मनःसंस्थान को अधिक प्रभावित करती हैं इसी के माध्यम से ताँत्रिक प्रयोगों से आग्नेयास्त्र जैसा काम लिया जाता है। उस माध्यम से अग्निकाण्ड कराने से लेकर मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण जैसा कई प्रकार का छोटा-बड़ा आक्रमण हो सकता है।

योग साधना से शरीर का माँस मज्जा वाला स्थूल भाग तो घट जाता है पर नये प्रकार की ऊर्जा का उत्पादन होता है, जिसे योगाग्नि कहते हैं। इसे शक्ति-पुँज कह सकते हैं। दधीचि की हड्डियों में यही विशेषता थी जिस के कारण उनके द्वारा बना वज्र, वृत्रासुर जैसे दुर्धर्ष दानव का हनन कर सकने में समर्थ हुआ।

मनुष्य शरीर को बिजली के अनेकों चमत्कार पारस्परिक सान्निध्य में होते देखे जाते हैं। बलिष्ठों का प्रभाव दुर्बलों पर पड़ता है। इस प्रभाव के पीछे यह प्राण विद्युत ही काम करती है। मनुष्यों में से हर एक को एक हार्स पावर की मोटर माना जाय तो योगाभ्यास द्वारा बढ़ाई गई प्राण विद्युत का शक्ति भंडार हजार हार्स पावर की मोटर जितना भी हो सकता है। इस आधार पर उनकी निजी समर्थता दूसरों को प्रभावित करने वाली विशिष्टता तथा वातावरण को बदल देने की क्षमता का अभिवर्धन होता है।

यह प्राणाग्नि या योगाग्नि का संक्षिप्त परिचय हुआ। इसी के माध्यम से दक्ष गृह में सती ने अपने शरीर से योगाग्नि प्रकट करके आत्मदाह किया था। योगीजनों में से मूर्धन्य व्यक्ति अपने शरीर त्यागते समय इसी योगाग्नि को उत्पन्न करके अपनी अन्त्येष्टि स्वयमेव कर लेते हैं। प्रयत्नपूर्वक इस जीवन्त ऊर्जा को बढ़ाने और उसे चमत्कारों में नहीं महान प्रयोजनों में खर्च करके अति महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं। यह ऊर्जा कभी-कभी प्राकृतिक कारणों से अनायास भी उबल पड़ती है और ऐसे विलक्षण परिचय देती है जैसा कि उपरोक्त घटनाओं से विदित होता है।


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