डेल कारनेगी कहते थे कि भूतकाल पर विचार मत करो क्योंकि अब वह फिर कभी लौटकर आने वाला नहीं है। इसी प्रकार भविष्य के बारे में साधारण अनुमान लगाने के अतिरिक्त बहुत चिन्तित एवं आवेशग्रस्त होना व्यर्थ है। क्योंकि कोई नहीं जानता कि परिस्थितियों के कारण वह न जाने किस ओर करवट ले। हमें सिर्फ वर्तमान के बारे में सोचना चाहिए और वही करना चाहिए जो आज की परिस्थितियों में सर्वोत्तम ढंग से किया जा सकता है। हमारी आशा कुछ भी, क्यों न हो प्रसन्नता के केन्द्र वर्तमान के प्रति जागरूकता बरतना और सर्वोत्तम ढंग से निर्वाह करना ही होना चाहिए।
रोलेण्ड विलियम्स बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी जिम्मेदारियाँ और गतिविधियाँ भी सुविस्तृत थीं। पर वे अपनी मेज पर उन्हीं फाइलों को आने देते थे जिन्हें आज ही निपटाया जा सकता है। इसी सिद्धान्त को अपना कर वे अत्यन्त सफल व्यवस्थापक बन सके।
प्रकृति परिवर्तनशील है उसकी दौड़ इतनी तेज है कि उसकी चाल नाप सकना सम्भव नहीं। नदी में पैर डालकर थोड़ी देर में उन्हें ऊपर उठाया जाय तो मात्र इतने क्षणों से असंख्यों टन पानी आगे बढ़ गया होगा। और पीछे से आने वाले ने उसकी जगह ले ली होगी। इस चाल के साथ किसी का दौड़ सकना सम्भव नहीं। इसी प्रकार भूतकाल की घटनाओं का आकलन करते हुए आज का निर्माण व्यर्थ है। इसी प्रकार भविष्य की उन कल्पनाओं में उड़ते रहने से कोई लाभ नहीं जो कभी-कभी आशा के विपरीत अनोखे ढंग से बदल जाती हैं।
भूत के घटनाक्रमों का सही निष्कर्ष इतना ही है कि हम उन परिवर्तनों से कुछ सीखें और उस नसीहत को ध्यान में रखते हुए आज का कार्यक्रम बनायें। इसी प्रकार भविष्य को यदि सचमुच उत्तम बनाना है तो उसका भी एक ही तरीका है कि वर्तमान का श्रेष्ठतम उपयोग कर गुजरें और उन बोये हुए मीठे फलों का अवसर आने पर चखें। काम कम और चिन्ता अधिक यह बर्बादी का बहुत बुरा तरीका है।
जार्ज बर्नाडशा कहते थे कि हर समय व्यस्त रहो। इससे तुम्हारी वे शक्तियां बच जायेंगी जो सपनों और कल्पनाओं की चक्की में पिसती हैं और शरीर और मन को बुरी तरह निचोड़ देते हैं।
मनुष्य के पसीने में सम्पदाएँ भरी हुई हैं और पसीने की बूंदों के साथ सम्पदाएँ टपकती हैं। रुचि पूर्वक आज के कामों में संलग्न होने से बढ़कर तत्काल आनन्द प्राप्त करने का और कोई तरीका नहीं है।
जिन्हें जीवन से सचमुच प्यार है और वे उस उपलब्धि का बढ़ा चढ़ा रसास्वादन करना चाहते हैं उनके लिए जीवन विज्ञानियों का एक ही परामर्श है कि अपनी मस्ती किसी भी कीमत पर न बेची जाय अपनी स्वतन्त्रता में विवेक के अतिरिक्त और किसी को भी हस्तक्षेप न करने दिया जाय।
अनुकूल परिस्थितियाँ, लोगों की अनुकम्पाएँ, समृद्धि की सम्भावनाओं की आशा रखने में कोई हर्ज नहीं। पर हिम्मत एकाकी चल पड़ने की होनी चाहिए। हमारा संतोष और आनन्द इस बात पर केन्द्रित रहना चाहिए कि हमने भले काम किये, दायित्व निभाये और जो किया उसमें पूरा श्रम और मनोयोग लगाया। इस आधार पर हम हर घड़ी प्रमुदित रह सकते हैं भले ही परिणाम इच्छा के अनुरूप हों या प्रतिकूल।