गुरुओं का निर्माण (kavita)

July 1985

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अद्वितीय है निर्माणों में, गुरुओं का निर्माण। जिनने फूँके चलती−फिरती प्रतिमाओं में प्राण॥1॥

विश्वामित्र और संदीपन, राम कृष्ण निर्माता। अंगुलिमाल, अंबपाली का जुड़ा बुद्ध से नाता॥ थे चाणक्य कि चन्द्रगुप्त के अनुपम भाग्य विधाता। और शिवा भी थे समर्थ के सपनों के उद्गाता॥ गुरु के अनुदानों की महिमा अनुपम और महान। अद्वितीय है निर्माणों से गुरुओं का निर्माण॥ 2॥

दयानन्द बन सके मूलशंकर, गुरु की गरिमा से। बने विवेकानन्द नरेन्द्र भी, गुरु की ही महिमा से॥ एकलव्य वो धन्य हुआ, केवल गुरु की गरिमा से। ‘जगतगुरु’ बन गया देश, इस तरह कि गुरु गरिमा से॥ पावनतम गुरु-परंपरा के अनगिन हैं अनुदान। जिनने फूँके चलती−फिरती प्रतिमाओं में प्राण॥ 3॥

किन्तु पात्रता, प्रमाणिकता और समर्पण−भाव। कर पाता है गुरु-गरिमा का ग्रहण अचूक प्रभाव॥ मृदु माटी कर सहज समर्पण वाला सरल स्वभाव। कुंभकार से रहने देता नहीं दुराव-छुपाव॥ तभी शिल्प को मिल पाते हैं शिल्पी को वरदान। अद्वितीय है निर्माणों में, गुरुओं का निर्माण॥ 4॥

हमें मिला है इस युग से भी ऐसा ही सहयोग। नहीं हाथ से जानें दें यह अवसर और सुयोग॥ कर अपना शिष्यत्व प्रमाणित करें अचूक प्रयोग। ताकि कट सकें गुरु अनुकम्पा से सारे भव-रोग॥ करें समर्पण द्वारा आओ! नवयुग का उत्थान। अद्वितीय है निर्माणों में गुरुओं का निर्माण॥5॥

*समाप्त*


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