वानप्रस्थ का अर्थ पलायन नहीं है। इसमें जीवन में जहाँ साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा में निरत रहने का अनुशासन है, वहाँ एक अनुबन्ध यह भी है कि वन क्षेत्र में रहा जाय। आरण्यक ही उस उच्चस्तरीय जीवनचर्या के लिए उपयुक्त स्थान हो सकते हैं। घिचपिच बसे, कोलाहल भरे नगरों और गन्दे गली−कूचों में ऐसा वातावरण होता है जिसमें आध्यात्मिकता पनपती नहीं। उस घुटन भरी विषाक्तता में उच्चस्तरीय भावनाएँ पनपने नहीं पाती और किया हुआ स्वाध्याय तथा सुना हुआ सत्संग निरर्थक चला जाता है। वातावरण की श्रेष्ठता कई कारणों पर अवलम्बित है। उनमें से एक तो अनिवार्य ही है और यह है पेड़−पौधों की सघनता और निकटता। वानप्रस्थ का शब्दार्थ है—वनप्रदेश में निवास व्यवस्था। ऊँचे विचार ऐसे ही क्षेत्रों में पनपते और फूलते−फलते हैं। इसलिए ऋषि आरण्यक एवं आश्रम वन−क्षेत्रों में होते पाये गये हैं।