ईसा के उपदेश जो भलाई का द्वार खोलते हैं।

July 1985

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तुमने मुफ्त में पाया है। इसे मुफ्त में दो। अपने पास दौलत जमा न करो। परिग्रही मत बनो। विलासी मत बनो, अन्यथा वही तुम्हारे पैर की बेड़ी बनेगा।

तुम सर्प की तरह चतुर और कबूतर की तरह भोले बनो। चौकन्ने रहो ताकि अपने ओर विराने तुम्हें पथ भ्रष्ट न करें।

उनसे मत डरो, जो शरीर को घायल या नष्ट कर सकते हैं। डरने योग्य वे हैं जो तुम्हारी आत्मा को गिराते, चरित्र बिगाड़ते और अन्धेरे में धकेलते हैं।

यह न समझो कि मैं मेल−मिलाप बढ़ाने और सुख सुविधाएँ बरसाने आया हूँ। मैं तलवार की धार पर चलना सिखाता हूँ और छोटे परिवार की उपेक्षा कर बड़े परिवार में प्रवेश करने की शिक्षा देता हूँ।

जो अपने प्रियजनों को मुझसे अधिक चाहता है वह मेरे योग्य नहीं। जो अपने को बचाता है वह खोयेगा और जो उसे खोने में नहीं झिझकता वह उसे पायेगा।

एक विद्वान ने कहा- ‘‘मैं आपके आश्रम पर रहा करूंगा।” ईसा ने कहा- ‘‘लोमड़ियों की माद होती है और पक्षियों के बसेरे। तू मुझ निरन्तर भ्रमण करने वाले के साथ कहाँ टिकेगा।”

एक शिष्य ने पूछा- मेरा बाप मर गया है-आज्ञा दें तो उसे गाढ़ आऊँ। ईसा ने कहा- मुर्दों को मुर्दे गाढ़ने दे, तू मेरे साथ चल।

ईसा के साथ मछुए और दूसरे गिरे हुए लोग लगे रहते थे। धनियों ने कहा- यह आपको शोभा नहीं देता। ईसा ने कहा- वैद्य की रोगियों को जरूरत होती है। मैं पापियों और पतितों के बीच क्यों न जाऊँ?

निस्पृह ईसा को किसी ने समाचार दिया- आपके कुटुम्बी लोग बाहर बैठे प्रतीक्षा कर रहे हैं—ईसा ने कहा- मेरा कुटुम्बी वह है जो मेरे साथ चले। जिनको ईश्वर के आदेशों पर विश्वास है वे ही मेरे सच्चे कुटुम्बी हैं।

स्वर्ग का राज्य जिसके लिए है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए ईसा ने एक छोटा बालक गोदी में उठाया और सबको दिखाते हुए कहा- ‘जिसका मन इस बालक की तरह निर्मल है, स्वर्ग का राज्य उन्हीं के लिए है।’

धनी नीकुदेमुसन ने पूछा- ईश्वर के दर्शन कब होते हैं। ईसा ने कहा- नया जन्म होने पर। जब शरीर से ऊँचा उठकर मनुष्य आत्मा के लोक में प्रवेश करता है तो भगवान के दर्शन पाता है।

शिष्यों ने ईसा की नीति पूछी—सुनने कहा- सच कहने में डरना नहीं। मौत से अकारण उलझना नहीं और मरने का दिन आ खड़ा हो तो डरना नहीं। हमें विवेक और वीरता का समन्वय करना चाहिए।

ईसा को मृत्यु दण्ड मिला तो उनने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा- मेरा मरना तुम्हारे लिए अच्छा है क्योंकि मैं परलोक जाकर तुम्हारे लिए प्रेरक आत्माएँ भेज सकूँगा।

गेहूँ का दान जमीन में घुसकर भर नहीं जाता। वरन् अपने जैसे असंख्य दाने पैदा करता है।

ईश्वर से प्रेम करने का अर्थ है- जीवन, बुद्धि और मन को ईश्वर मय बनाना।

खून न कर, व्यभिचार न कर, चोरी न कर, झूठ मत बोल, ठगी न कर और पड़ौसी से अपने समान प्यार कर। धर्म का यही सार है।

लाठी का बदला लाठी, गाली का बदला गाली और खून का बदला खून नहीं हो सकता। तुम लोगों का दिल बदलने की कोशिश करो। जो कुरता छीने उसको दोहर भी दे दो। भलमनसाहत की मार बदला लेने की अपेक्षा अधिक कारगर होती है।

कहा गया है कि व्यभिचार करना पाप है। पर मैं कहता हूँ कि जो स्त्रियों को कुदृष्टि से देखता है और उनके बारे में अशुद्ध चिन्तन करता है वह व्यभिचार कर चुका।

पृथ्वी पर धन जमा न करो। इसमें चोरी होने, ईर्ष्या बढ़ने और अहंकारी विलासी होने कर डर है। अपने धन परलोक में जमा करो जहाँ वह घटता नहीं बढ़ता ही रहता है।

तुम वैभव और परमेश्वर दोनों की सेवा एक साथ नहीं कर सकते।

परमेश्वर के राज्य में धनवान का प्रवेश उतना ही कठिन है जितना सुई के छेद में से ऊँट का निकलना।

माँगों तो पाओगे। खोजोगे तो मिलेगा और खटखटाओगे तो खोला जायेगा।

रट्ट कोई जो हे प्रभु, कहता है, स्वर्ग में प्रवेश न पा सकेगा। द्वार उसी को खुला मिलेगा जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है।

धन्य वे हैं जो नम्र हैं। प्राणियों और पदार्थों पर उन्हीं का शासन होगा।

दान करना है तो उन्हें मत दो जिनका पेट भरा है। उनसे उपहास ही मिलेगा। देना हो तो उन्हें दो जो उसके बिना पिछड़ गये हैं और दुःख पाते हैं।

प्रभु का मार्ग सीधा बनाओ। समतल लाने के लिए खाई भरनी पड़ेगी और पहाड़ों को खोदना पड़ेगा।

देवालय के विश्राम घर में जो सट्टा लगा रहे थे और कबूतर बेचने खरीदने का धन्धा कर रहे थे। ईश्वर पुत्र ने उनकी चौकियाँ उलट दीं और कहा- ‘परमेश्वर के घर को डाकुओं की खोह न बनाओ।’

यह याजक को कहते हैं उन्हें सुनो, उनमें से जो उचित हो उसे अपनाओ। पर वे जो करते हैं सो न करो। क्योंकि इन पुरोहितों की कथनी और करनी में जमीन आसमान जैसा अन्तर पाया जाता है।

तुम जैसा सलूक दूसरों से अपने लिए चाहते हो, उनके साथ तुम वैसा ही व्यवहार आरम्भ कर दो।

लोक सेवा में निरत होकर तुम अपने गाँव और घर में सम्मान नहीं पा सकते। इसलिए अच्छा है कहीं अन्यत्र ढूँढो।

बड़ाई सुनने का लालच न करो। ढिंढोरा न पीटो न पिटवाओ। ढोंगी लोगों की तरह मंच सजाने और बढ़-बढ़कर बातें करने का प्रयत्न न करो। जो देना है दाँये हाथ से ही दे डालो ताकि बाँया हाथ उसे जान न पाये।

भलाई इसलिए करो कि ईश्वर को प्रसन्नता दूँ। दीपक की तरह जलो ताकि उजाला फैले। उचकने की कोशिश न करो। दीपक सदा दीवट पर रखा जाता है। उपयुक्त जगह उसे अनायास ही मिल जाती है।


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