कंजूस गहरे गड्ढे में गिर पड़ा (kahani)

July 1985

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एक बार की बात है। एक कंजूस गहरे गड्ढे में गिर पड़ा। पानी में डुबकियाँ लगाने लगा। किसी उदार व्यक्ति ने मुँडेर पर बैठकर सान्त्वना दी और कहा अपना हाथ लाओ। मैं पकड़कर खींच लूँगा, पर वह इस प्रस्ताव को स्वीकार न कर रहा था।

इतने में सेठ जी का पड़ौसी आ पहुँचा। वह उनकी प्रकृति को भली-भाँति जानता था, सो उनने उस प्रस्ताव को दूसरे शब्दों में रखा। हाथ बढ़ाते हुए कहा- ‘‘लो लाला जी मेरा हाथ, इसे पकड़ कर ऊपर चढ़ जाओ। वे तुरन्त तैयार हो गये और ऊपर निकल आये।”

निकालने वाले आपस में हँसने लगे और बोले देखा- ‘लाओ’ और ‘लो’ का अन्तर।

जिसे किसी को देना ही नहीं उसे देने की आवश्यकता भगवान क्यों अनुभव करने लगे?


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