ज्ञानेन्द्रियाणि च मनश्च मनोमयः स्यात्कोशो ममाहमिति वस्तु विकल्प हेतुः। संज्ञादि भेद कलनाकलितो बलीयस्तित्पूर्वकोशमभिपूर्य विजृम्भते यः॥ विवेक- 169
अर्थात्- ‘मैं’ ‘मेरा’ आदि निश्चयों का कारण ‘मन’ और ‘ज्ञानेन्द्रियां’ ही ‘मनोमयकोश’ हैं। यह विभिन्न रूपों और क्रियाओं के आधार पर विभिन्न नामों से जाना जाने वाला, बड़ा बलवान् और अन्नमय तथा प्राणमय कोशों को व्याप्त किये रहता है।