लोकमान्य तिलक अपने भविष्य के विषय में कभी विचार नहीं करते थे। उन्होंने अपनी भरी जवानी में पूना में न्यू इंग्लिश स्कूल नामक एक विद्यालय की स्थापना की थी। उसमें कार्य करते हुए वे वेतन के रूप में अपने निर्वाह के लिये केवल 30 रुपये लेते थे। एक दिन उनके एक मित्र ने कहा- ‘इतनी छोटी-सी राशि में से तो आप अपने देहावसान के बाद शरीर के दाह संस्कार के लिये भी कुछ नहीं बचा सकेंगे।’ तिलक जी ने धीरे गम्भीर स्वर में कहा− इसकी चिन्ता समाज को होनी चाहिए। यदि लोगों को ठीक प्रतीत होगा तो वे देह का अग्नि संस्कार कर देंगे।