कर्मेन्द्रियैः पंचभिरञ्चितोऽयं, प्राणों भवेत् प्राणमयस्तु कोशः। येनात्मवानन्नमयोऽन्नपूर्णः, प्रवर्ततेऽसौ सकल क्रियासु॥ —विवेक.-167
अर्थात्- ‘अन्नमय कोश’ जिससे युक्त होकर अन्न से तृप्त होता है और समस्त कर्मों में प्रवृत्त होता है, वह पाँच कर्मेन्द्रियों से युक्त प्राण-समुच्चय (प्राण-अपान-समान-उदान-व्याण आदि) ही ‘प्राणमय कोश’ कहलाता है।