प्रयाण गीत (kavita)

February 1985

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ज्ञान की मशाल है, सूर्य लाल−लाल है। नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥

रात का पता नहीं, हँसा प्रभात ज्ञान का, प्राण−प्राण लीन है, चढ़ा खुमार ध्यान का,

सहास अश्रु−पात, से भरा कमल−मृणाल है। ज्ञान की मशाल है, सूर्य लाल−लाल है। नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥

हँसी−हँसी है पाँखुरी, सहस्र दल खिले−खिले, कि प्राण की बयार से हृदय कमल हिल−डुले,

बौर से लदी−लदी कि कल्प वृक्ष डाल है। ज्ञान की मशाल है सूर्य लाल−लाल है। नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥

प्राण−पुष्प, तुम खिला−खिला के अर्घ्यदान दो, आज तक दिया नहीं वो दान दो, वो ध्यान दो,

जिन्दगी के देवता का एक ही सवाल है। ज्ञान की मशाल है सूर्य लाल−लाल है। नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥

अबोध, बोधमय हुआ, जगी प्रज्ञा, ऋतम्भरा, ऋद्धि−सिद्धि नाचती, हरी भरी वसुंधरा,

पास स्वर्ग का जुलूस, अब न अन्तराल है। ज्ञान की मशाल है, सूर्य लाल−लाल है। नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥

-लाखन सिंह भदौरिया

*समाप्त*


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