सभी जीव−जन्तु परेशान (kahani)

February 1985

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सिंह द्वारा आये दिन अनेकों प्राणियों का वध होते रहने से सभी जीव−जन्तु परेशान थे। मिल−जुलकर उनने सिंह के साथ समझौता किया कि एक जानवर उसकी माँद पर पहुँच जाया करेगा। इससे उसे भी निश्चिन्तता रहेगी और अन्य प्राणी भी शान्तिपूर्वक रह सकेंगे।

ढर्रा बहुत दिन तक इसी प्रकार चलता रहा। एक दिन बुद्धिमान खरगोश की बारी आई। वह जान−बूझकर देर से पहुँचा। सिंह ने क्रुद्ध होकर विलम्ब का कारण पूछा−उसने बताया रास्ते में दूसरा स्वयं को वनराज बताने वाला बैठा है। उसने मुझे रोका और आपको गालियां दीं। सो किसी प्रकार चतुरता से बचकर आपके पास आ सका।

सिंह को इसी इलाके में दूसरा वनराज आने पर बड़ा क्रोध आया और उससे लड़ने के लिए खरगोश को साथ लेकर तत्काल चल पड़ा। खरगोश ने एक गहरे कुँए की तरफ इशारा किया वह इसी में छिपकर आपके विरुद्ध मोर्चा बन्दी कर रहा है।

झाँक कर देखने पर सिंह को अपनी परछाई दिखी। दहाड़ लगाई तो उलटकर प्रति−ध्वनि सुनाई दी। वह क्रोधांध होकर कुएँ में कूद पड़ा और डूबकर मर गया।

क्रोधांध की समझदारी कैसे चली जाती है और बुद्धिमानी से किस प्रकार विपत्ति टलती है यह दो निष्कर्ष इस कहानी से निकलते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118