मिथिला के पण्डित गंगाधर शास्त्री एक विद्यालय में पढ़ाते थे। उनका लड़का गोविंद भी उसी विद्यालय में पढ़ता था। गोविन्द भी पिता की तरह शिष्ट और अनुशासन−प्रिय था। सहपाठी उसको बहुत स्नेह और सम्मान देते थे। एक दिन शास्त्री जी के साथ गोविन्द विद्यालय नहीं पहुँचा। स्कूल बन्द करके जब वे चलने लगे तो विद्यार्थियों ने पूछा− गोविन्द आज क्यों नहीं आया? शास्त्री जी ने भारी मन से कहा− गोविन्द को अचानक दौरा पड़ा और वह वहाँ चला गया जहाँ से फिर कोई नहीं लौटता।
विद्यार्थी स्तब्ध रह गये। साथी के निधन का भारी दुःख हुआ। साथ ही इस बात का आश्चर्य भी ऐसी दुर्घटना होने पर भी शास्त्री जी पढ़ाने कैसे आ सके और बिना माथे पर शिकन लाये किस प्रकार रोज जैसी कथा कहते रहे। अपना असमंजस लड़कों ने शास्त्री जी के सामने प्रकट भी किया। पण्डित जी ने उत्तर दिया− बच्चों, पिता के हृदय से गुरु का कर्त्तव्य बड़ा होता है।