भगवान ने मनुष्य के एक हाथ में पुरुषार्थ और दूसरे में श्रेय रखा है। दोनों एक साथ ही मिलते हैं। जो पुरुषार्थ से रहित हैं, उन्हें श्रेय भी नहीं मिलता।