जिज्ञासुओं में एक ने सुकरात से पूछा− ‘‘भगवान हैं?” उनने इनकार कर सिर हिलाते हुये कहा− ‘नहीं’।
दूसरे दिन वही प्रश्न एक दूसरे जिज्ञासु ने किया जो उनने कहा− ‘हैं’।
परस्पर विरोधी उत्तर सुनकर उनके प्रिय शिष्यों ने इस भिन्नता का कारण पूछा तो सुकरात ने कहा− ‘‘चर्म चक्षुओं से उसे आकृतिवान देखना चाहता है उसको ‘नहीं’ के निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ेगा। पर जो वस्तुओं के पीछे काम करने वाली शक्ति को अपनी विवेक बुद्धि से देख सकता है उसे ईश्वर की सत्ता और महत्ता का अनुभव करने में तनिक भी कठिनाई नहीं होगी।”