राजा शतायुध प्रजा निरीक्षण के लिये निकले। एक झोंपड़ी में जराजीर्ण वयोवृद्ध दिखा।
राजा रुक गये। कौतूहल वश पूछा− आपकी आयु कितनी है। देखने में शतायु की परिधि तक पहुँचे दिखते थे। वृद्ध ने झुकी गर्दन उठायी और कहा− मात्र पांच वर्ष।
राजा को विश्वास न हुआ। फिर से पूछा तो वही उत्तर मिला। वृद्ध ने कहा− पिछला जीवन तो पशु प्रयोजनों में निरर्थक ही चला गया। पाँच वर्ष पूर्व ज्ञान उपजा और तभी से मैं परमार्थ प्रयोजनों में लगा। सार्थक आयु तो तभी से गिनता हूँ।