स्वप्नों के माध्यम से शरीर और मन की विवेचना

February 1985

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जो आज पीड़ित है या होने वाला है उसकी कष्ट पीड़ित या उलझन भरी स्थिति स्वप्न में दिखाई पड़ने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ किसी रोग ने जड़ जमा ली है। ऐसे स्वप्न एकाकी दिखाई पड़ते हैं। उनके साथ अलग से जंजाल गुँथा हुआ नहीं होता। घर गृहस्थी की, काम धंधे की, तिजारत व्यापार की बातें जन स्वप्नों के साथ जड़ी हुई ही होती।

जिस अंग में पीड़ा है उसी को कोई दवा रहा है, मालिश कर रहा है, जाँच पड़ताल कर रहा है ऐसा प्रतीत होता है। पीड़ा का प्रवेश हो रहा है, या निकल रही है ऐसा प्रतीत होता है। कभी−कभी ऐसा भी लगता है कि कोई अन्य व्यक्ति यह सलाह दे रहा है कि तुम्हारे इस अंग में कुछ गड़बड़ी मालूम पड़ती है। कभी कोई व्यक्ति किसी औषधि सेवन की सलाह देता है। कभी−कभी ऐसा भी होते देखा गया है कि इसके स्थान पर अमुक वस्तु लेनी चाहिए। पीड़ित अंग का संकेत ऐसे स्वप्नों में अवश्य होता है। कभी अच्छा होने का कभी स्थिति बिगड़ने की सूचना भी किसी मित्र शत्रु परिचित अपरिचित के मुख से सुनाई पड़ती है। किन्हीं स्वप्नों में अपनी और किसी दूसरे से पूछा जाता है और किन्हीं में अपनी ओर से किसी दूसरे से परामर्श दिया जाता है।

कई बार अपने से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता किसी तीसरे व्यक्ति की चर्चा से रोग का प्रसंग आ जाता है। इलाज का प्रसंग तो नहीं बन पड़ता पर सहानुभूति स्वरूप देखने के लिए कोई आता है या हम स्वयं किसी को सहानुभूति दिखाने जा पहुँचते हैं। कभी कोई महामारी फैलती है उससे अनेकों व्यक्ति आक्रान्त होते हैं। स्वयं सेवकों की तरह उनकी सेवा करने पहुँचते हैं। या भयभीत होकर सुरक्षा के लिए वह स्थान छोड़कर अन्यत्र कहीं जाने के लिए चल पड़ते हैं। इन सभी प्रकार के स्वप्नों की किस्में यह बताती हैं कि शरीर के किसी भाग में रोग का प्रवेश हो चुका है या होने वाला है।

कभी−कभी मृत्यु के स्वप्न भी दिखते हैं। हम मर गये या कोई और मर रहा है। किसी की मरण यात्रा में अपना या अपने मित्रों का जाना हो रहा है, यह मात्र चेतावनी होती है। मृत्यु का स्वप्न शुभ माना गया है। उसमें अनिष्ट की आशंका नहीं होती। उनसे भयभीत होने की जरूरत नहीं है और ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए यह दुर्घटना अपने साथ घटेगी। कभी−कभी दूसरों की मृत्यु के सपने किन्हीं सम्बन्धियों, पड़ोसियों के सम्बन्ध में घटित होते देखे गये हैं। कई बार अपने किसी अवयव में हलकी चुभन, दर्द या जलन का अनुभव होता है। नींद खुलती नहीं। सपना चलता रहता है। यह संकेत है कि उसके अंग में कुछ होने वाला है।

किसी अन्य व्यक्ति को किसी गम्भीर रोग से ग्रसित देखा जाय, उस प्रकार के समाचार मिलें, अपने को चिन्ता होने लगे और उसके रोग का इलाज कराने की पूछताछ करने की भाग−दौड़ करनी पड़े तो समझना चाहिए, कि प्रत्यक्षतः इस समय वह रोग अपने में नहीं है तो नहीं भविष्य में वैसा होने की आशंका है नहीं। किसी पुस्तक या पत्रिका का किसी रोग विशेष के सम्बन्ध में लेख पढ़ने को मिले तो भी कुछ दाल में काला होने की आशंका समझी जा सकती है।

जो रोग अपने को अभी है उसका विवेचन चल पड़े तो समझना चाहिए कि यह अब अच्छा होने की स्थिति में आ पहुँचा। जो नहीं है उसका ऊहापोह चलना इस बात का चिन्ह है कि नवागन्तुक रोग के आक्रमण होने की आशंका है। चिकित्सा जोरों से चल रही हो और किसी श्रद्धा भाजन चिकित्सा द्वारा अमुक उपचार करने का प्रबन्ध किया जा रहा हो या परामर्श किया जा रहा हो तो समझना चाहिए कि रोग का अन्त समीप है।

यही घटनाक्रम स्त्री बच्चों या किसी घनिष्ठ कुटुम्बी के सम्बन्ध में घटित होता दिखाई पड़े तो समझना चाहिए कि यह उनके सम्बन्ध में पूर्व सूचना है।

इन सूचनाओं का तात्पर्य यह नहीं है कि अकाट्य भवितव्यता समझकर हाथ पैर फुला लिये जाँय और चिन्ता में डूब जाया जाय वरन् मात्र इतना है कि पूर्व सूचना के आधार पर अधिक सतर्कता बरती जाय और नये सिरे से शरीर का पर्यवेक्षण कराया जाय। कहीं कोई आशंका परिलक्षित हो तो समय रहते पर्यवेक्षण तथा निराकरण का दुहरा मार्ग अपनाया जाय। सतर्कता बुद्धिमानी की निशानी है। उसके सहारे अशुभ को भी टाला जा सका है और आशंका को निरस्त किया जा सकता है।

कई बार बहुत छोटी बात भी स्वप्न में बड़ी दिखाई पड़ती है। जैसे अपच होने पर पेट भारी रहता है। वायु रुक जाने से भारी पेट मालूम पड़ता है। मितली आती है और मुँह में खट्टा पानी भर आता है। यह सामान्य अपच के चिन्ह हैं आवश्यकता से अधिक खा जाने पर पेट पर छाया भारीपन स्वप्न में बढ़े−चढ़े रूप में दिखता है। लगता है पेट पर कोई बड़ा संकट आ गया। नींद खुलने पर उसका साधारण उपचार कर लेने, दस्त की एक गोली खा लेने पर से वह कठिनाई दूर हो जाती है। यदि कोई इस कारणवश कोई भयंकर स्वप्न देखने लगे और परेशानी होने लगे तो परेशानी व्यर्थ है नींद गहरी हो और मल−मूत्र त्यागने की अच्छा हो तो स्वप्न में इसके लिए स्थान तलाश करने के लिए जाना पड़ता है पर उपयुक्त स्थान नहीं मिलता। इस पर रात्रि में आँखें खुल जाती हैं। यह शारीरिक परेशानियों का स्वप्न रूप में प्रकट होने का प्रसंग हुआ। दूसरा क्षेत्र मानसिक है। उस क्षेत्र की उलझनें भी विग्रह बनकर प्रकट होती हैं।

किसी के साथ झगड़ा झंझट चल रहा हो। आक्रमण करने या होने की स्थिति बन रही हो तो वह बड़ी मार−काट के रूप में दिखाई देगी। सोते समय क्रोध में भरकर सोचा जाय तो ऐसे सपने दिखते रहेंगे कि उस व्यक्ति को अथवा किसी और को नीचा कैसे दिखाया जाय। इसके द्वारा अपने विरुद्ध षड़यन्त्र रचे जाते दिखाई पड़ते हैं। आर्थिक हो चुकी हो या होने वाली हो तो चोरी हो जाने जैसे सपने दिखाई देते हैं। बुरे सपने अधिक दिखते हैं उत्साहवर्धक कम। लाटरी खरीदने वाले, सट्टा लगाने वाले हर महीने सैकड़ों रुपये बहाते खर्च करते रहते हैं। पर इस आधार पर लाभ होने के स्वप्न कदाचित् ही दिखाई पड़ते हैं क्योंकि अचेतन मन पहले से ही यह मानकर चलता है कि यह निरर्थक माया जाल है। यदि यह सही रहा होता तो अपने जैसे असंख्यों लखपति करोड़पति हो गये होते। परीक्षा के दिनों में पढ़ाई अच्छी हुई है तो पास होने के सपने दिखे हैं और पढ़ाई में मन चुराते रहे हैं तो अंतर्गत वस्तुस्थिति समझता है और फेल होने के सपने दिखावेगा।

वस्तुतः स्वप्न मन के दर्पण हैं, विशेषतया अंतर्मन के। रहस्यमयी परतों का उनमें उभार−स्पष्टीकरण होता है। इनमें से सर्वथा निरर्थक कम होते हैं। शेष की व्याख्या विवेचना की जाय तो अपनी मनःस्थिति की जानकारी इस आधार पर अच्छी तरह प्राप्त की जा सकती है।

एक आदमी रस्सी में गाय बाँधकर घर लिये जा रहा था। रास्ते में दो फकीर उसे देखते हुए उधर से गुजरे। उनमें से एक बोला− आदमी ने गाय बाँध रखी है। दूसरे ने कहा−नहीं, गाय ने आदमी को बाँध रखा है। बात दोनों की किसी कदर सही थी। रस्सी का एक सिरा आदमी के हाथ में था दूसरा गाय के गले में। दोनों एक दूसरे को जकड़े हुए थे।

दोनों फकीरों में से किसका कहना अधिक सच है, यह जानने के लिए रस्सी आदमी के हाथ से छुड़ा दी गई। गाय जंगल की तरफ भागी और आदमी उसके पीछे−पीछे दौड़ा।

बूढ़े फकीर ने कहा− ‘‘देखा न, गाय ने ही आदमी को जकड़ रखा है न। आँखें खोलकर देखो−कौन किसके पीछे भाग रहा है।” आज संसार में यही तो हो रहा है। माया-वैभव ही आदमी को नचाता दिखाई पड़ता है।


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