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Akhand Jyoti
Year 1985
Version 2
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February 1985
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स्वर्ग जाने की आकाँक्षा पूर्ण करने से पूर्व हमें स्वर्ग अपने भीतर उगाना चाहिए।
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Page Titles
धर्म न तो अवैज्ञानिक है और न अनुपयोगी
तप का अवलम्बन एवं साधना की सार्थकता
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आत्मिकी का परिष्कार एवं उसकी चमत्कारी परिणतियाँ
मानवी काया की चेतन सत्ता का वैज्ञानिक विवेचन
कृष्ण से भेंट करने युधिष्ठिर गये (kahani)
ध्यान योग का उद्देश्य और स्वरूप
मनोनिग्रह ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
महावीर साधना में लीन (kahani)
बीज जैसी जीवन की तीन गतियाँ
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गुह्य योग साधनाओं का पात्रता सम्बन्धी अनुशासन
भक्त का स्तर एवं भगवान की मनुहार
सन्त मंसूर (kahani)
प्रकृति का अनुसरण कीड़े मकोड़ों जैसा आचरण नहीं
दुनिया के दर्पण में अपना ही चेहरा दिख पड़ता है।
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काम विज्ञान का आध्यात्मिक स्वरूप
ज्ञान और विज्ञान एक दूसरे का अवलम्बन अपनाएँ
सुकरात से पूछा (kahani)
भीतर की दुनिया हर हालत में सही रहे
धर्म का व्यावहारिक स्वरूप
समष्टि की हलचलों का व्यष्टि चेतना पर प्रभाव
जो मान लिया गया वह अन्तिम नहीं है।
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समरसता एवं सहानुभूति पर आधारित ज्योतिर्विज्ञान
बड़ा संयमी असुर था (kahani)
सतत् गतिशील उस विराट् की एक झाँकी
धन प्राप्त करने का आशीर्वाद (kahani)
सम्भव है मनुष्य देवताओं का वंशज रहा हो
स्वप्नों के माध्यम से शरीर और मन की विवेचना
साधना से सिद्धि
पण्डित गंगाधर शास्त्री (kahani)
सम्भावित घटनाक्रमों के पूर्वाभास
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क्या यह भवितव्यता टाली नहीं जा सकती?
राजा शतायुध (kahani)
तनाव जन्य व्यथा से कैसे छूटें?
सभी जीव−जन्तु परेशान (kahani)
प्रज्ञा परिजनों के लिये विशेष ज्ञातव्य
विशेष धारावाहिक लेखमाला-1 - जिज्ञासा, संदेह और उसका समाधान
Quotation
प्रयाण गीत (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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